इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
पूर्णिया ज़िले के टेटगामा गांव में अंधविश्वास की आग ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया। 6 जुलाई की रात जादू-टोना के शक में गांव के ही एक परिवार के पांच सदस्यों की नृशंस हत्या कर दी गई। हत्या के बाद शवों को जलाकर सबूत मिटाने की कोशिश की गई। मृतकों में तीन महिलाएं शामिल हैं।
पुलिस के अनुसार, यह घटना एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा है, जिसमें पूरे गांव की मिलीभगत सामने आ रही है। अब तक तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जबकि 23 नामजद और करीब 200 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।
पुलिस सूत्रों के मुताबिक, गांव में एक बच्ची की मौत और अन्य कुछ बच्चों की बीमारी के लिए लोगों ने बाबूलाल उरांव और उनके परिवार को जिम्मेदार ठहराया। गांव में यह अफवाह फैली कि परिवार ‘जादू-टोना’ करता है। इसी अंधविश्वास के आधार पर गांववालों ने रात को घर पर हमला कर दिया।
परिवार के पांच सदस्यों—बाबूलाल उरांव (65), सीता देवी (60), कांता देवी (82), मंजीत उरांव (25), और रानी देवी (22)—की हत्या लाठी-डंडों और धारदार हथियारों से कर दी गई। फिर शवों को पेट्रोल छिड़ककर आग के हवाले कर दिया गया।
मृतकों का 16 वर्षीय बेटा सोनू उरांव इस हमले में बाल-बाल बच गया। उसने पुलिस को बताया कि हमला अचानक हुआ और गांव के हर घर से कोई न कोई इसमें शामिल था। “मेरे माता-पिता, भाई और दादी को मेरी आंखों के सामने पीटा गया। मैं किसी तरह भागकर जंगल में छिपा और बाद में पुलिस को खबर दी”।
धमदाहा थाना में आईपीसी की कई धाराओं सहित SC/ST अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया है।
बिहार पुलिस के DGP विनय कुमार ने बताया कि “हत्या के बाद शव जलाए गए, जिससे यह साबित होता है कि हमले के पीछे सोची-समझी साजिश थी। मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित कर दी गई है।
घटना के बाद झारखंड कांग्रेस की टीम ने गांव का दौरा कर पीड़ित परिवार को 21,000 रुपये की राहत राशि दी और बिहार सरकार से 10 लाख रुपये मुआवज़ा व न्याय की मांग की।
विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने इस नरसंहार को “बिहार में गिरती क़ानून व्यवस्था का प्रतीक” बताया।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर कहा, “ऐसी घटनाएं मानवता के खिलाफ हैं। बिहार सरकार को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।”
NCRB के आंकड़ों के मुताबिक, 2000 से अब तक देश में 2500 से अधिक महिलाएं ‘डायन’ बताकर मारी गईं।
ये घटनाएं मुख्यतः झारखंड, बिहार, ओडिशा और छत्तीसगढ़ में सामने आती हैं, जहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी, शिक्षा की स्थिति और अंधविश्वास आज भी गहराई से जड़े हुए हैं।
पूर्णिया की घटना ने एक बार फिर प्रशासन और सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है। कानून व्यवस्था की विफलता, सामाजिक जागरूकता की कमी और अंधविश्वास की जड़ें—तीनों इस त्रासदी के केंद्र में हैं।
राज्य सरकार पर अब दबाव है कि वह इस मामले में सख्त कदम उठाए, पीड़ित परिवार को मुआवजा और सुरक्षा दे और साथ ही पूरे राज्य में ‘डायन प्रथा उन्मूलन जागरूकता अभियान’ शुरू करे।