इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
महाराष्ट्र सरकार द्वारा विधानमंडल के मानसून सत्र में पेश किया गया जनसुरक्षा विधेयक 2024 (Special Public Safety Bill) राज्य की सियासत और नागरिक समाज में हलचल मचा रहा है। सरकार जहां इस विधेयक को आंतरिक सुरक्षा और नक्सल गतिविधियों के नियंत्रण के लिए आवश्यक बता रही है, वहीं विपक्ष और अधिकार समूह इसे लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों पर हमला करार दे रहे हैं।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ विधायक अबु आसिम आज़मी ने विधानसभा में इस विधेयक पर तीखा विरोध दर्ज कराते हुए कहा कि “यह विधेयक जनता की आवाज़ दबाने और विरोध को अपराध घोषित करने की एक खतरनाक साजिश है। अगर सरकार इसी राह पर चलती रही तो यह लोकतंत्र नहीं, पुलिस राज बन जाएगा।”
उन्होंने आगे कहा “डॉ. राममनोहर लोहिया ने चेताया था कि जब सड़कों पर सन्नाटा होता है, तब संसद आवारा हो जाती है। यह बिल उसी सन्नाटे को कानूनी शक्ल देने की कोशिश है।”
राज्य के 36 जिलों में 78 से अधिक स्थानों पर इस विधेयक के विरोध में धरने, मौन जुलूस और प्रदर्शन आयोजित किए गए। मुंबई, पुणे, नागपुर, बीड, नांदेड़, सिंधुदुर्ग और रायगढ़ सहित कई जिलों में किसान संगठनों, श्रमिक यूनियनों, छात्र समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने सड़कों पर उतर कर इस विधेयक को “तानाशाही प्रवृत्ति वाला” बताया।
वामपंथी दलों, कांग्रेस, आप और शिवसेना (उद्धव गुट) ने भी विधेयक को निरस्त करने की मांग की है। सीपीआई (एम) ने इसे “नव-फासीवादी हमला” बताया है।
*विधेयक में निम्नलिखित मुख्य प्रावधान शामिल हैं
सरकार को यह अधिकार कि वह किसी संगठन को “राज्य विरोधी” या “अवैध” घोषित कर सके।
पुलिस को बिना वारंट के तलाशी और गिरफ्तारी की अनुमति।
किसी व्यक्ति को 90 दिनों तक हिरासत में रखने का प्रावधान।
राज्य सरकार को ऐसे किसी व्यक्ति की संपत्ति जब्त करने का अधिकार, जिसे वह “सुरक्षा के लिए खतरा” माने।
विधेयक के आलोचक इसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन मानते हैं, जो नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति और शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार देता है। कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यह विधेयक पुराने औपनिवेशिक कानूनों जैसे टाडा (TADA) और यूएपीए (UAPA) से भी अधिक कठोर हो सकता है!
राज्य सरकार के अनुसार, यह विधेयक केवल लेफ्ट विंग एक्स्ट्रीमिज्म यानी वामपंथी उग्रवादियों को नियंत्रित करने के उद्देश्य से लाया गया है। संशोधित प्रारूप में राजनीतिक दलों, नागरिक समूहों या शांतिपूर्ण आंदोलनों को इससे बाहर रखने का दावा किया गया है।
बिल को लेकर राज्य में एक ओर जहां विधानसभा के भीतर बहस तेज है, वहीं दूसरी ओर सड़क पर जनता की नाराज़गी साफ़ दिखाई दे रही है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि क्या सरकार इस बिल को पारित कर पाती है या जनदबाव में इसे वापस लेती है।