इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
पुणे जिले के मंचर कस्बे में 4 जुलाई को एक महिला पत्रकार पर हुए हमले ने प्रेस की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। समर्थ भारत समाचार पत्र की संपादक और SBP यूट्यूब चैनल की रिपोर्टर स्नेहा बर्वे पर उस समय हमला किया गया जब वह एक नदी किनारे अवैध निर्माण पर ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रही थीं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, स्नेहा बर्वे और शिकायतकर्ता सुधाकर बाबूराव काले जब सर्वे नं. 41/1 स्थित अवैध शेड और दुकानों का निरीक्षण कर रहे थे, तभी आरोपी पांडुरंग मोर्डे, उनके बेटे प्रशांत व निलेश मोर्डे, और अन्य आठ-दस लोगों ने उन्हें घेर लिया और लोहे की रॉड, लकड़ी के डंडों और लात-घूंसों से हमला कर दिया। हमले में बर्वे गंभीर रूप से घायल हो गईं और मौके पर ही बेहोश हो गईं।
घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो चुका है, जिसमें साफ देखा जा सकता है कि स्नेहा बर्वे मदद के लिए चिल्ला रही थीं, लेकिन हमलावरों ने उन्हें बख्शा नहीं। मौके पर मौजूद अन्य लोगों को भी पीटा गया, जिनमें से एक का हाथ टूट गया और एक अन्य को नाक में गंभीर चोटें आईं।
हालांकि घटना का वीडियो सार्वजनिक हो चुका है, लेकिन पुलिस की ओर से दर्ज प्राथमिकी में बेहद हल्की धाराएं लगाई गईं हैं—भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 118(2), 115(2), 189(2), 191(2), 190 और 351(2)—जो अधिकतम दो साल की सज़ा का प्रावधान देती हैं।
मुख्य आरोपी पांडुरंग मोर्डे स्थानीय स्तर पर एक प्रभावशाली व्यवसायी माना जाता है और उसका संबंध महाराष्ट्र की महायुति गठबंधन (भाजपा, शिवसेना, एनसीपी) से जोड़ा जा रहा है। बताया गया है कि वह पहले से हत्या के प्रयास जैसे गंभीर मामलों में जमानत पर है।
फिलहाल मोर्डे अस्पताल में भर्ती है और बाकी आरोपी पुलिस हिरासत में लिए गए, लेकिन बाद में उन्हें जमानत मिल गई। पत्रकार संगठनों का आरोप है कि राजनीतिक दबाव के चलते गंभीर धाराएं नहीं लगाई गईं, जिससे आरोपी आसानी से बच निकले।
नेटवर्क ऑफ वूमेन इन मीडिया इंडिया (NWMI) और कई अन्य मीडिया संगठनों ने इस हमले की कड़ी निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह प्रेस की आज़ादी पर हमला है और आरोपियों पर हत्या के प्रयास, महिला पर हमले, और गंभीर साजिश जैसी धाराएं लगनी चाहिए थीं। संगठनों ने महाराष्ट्र सरकार से पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की मांग की है।
स्नेहा बर्वे को पहले स्थानीय अस्पताल और फिर डी. वाई. पाटिल हॉस्पिटल, पिंपरी-चिंचवड़ में भर्ती किया गया, जहां उन्हें सिर, पीठ और शरीर में गंभीर चोटें पाई गईं। अभी भी वे अस्पताल में हैं और डॉक्टरों के अनुसार उन्हें लंबी देखरेख की आवश्यकता है। पीड़ा और मानसिक तनाव के चलते वे पुलिस को अब तक बयान नहीं दे सकी हैं।
जब पत्रकारों को सच्चाई सामने लाने के लिए मारा-पीटा जाए, और आरोपियों पर सिर्फ खानापूर्ति की जाए—तो यह लोकतंत्र नहीं, डर का शासन कहलाता है। स्नेहा बर्वे पर हमला अकेली घटना नहीं है, यह एक ट्रेंड है—जहां पत्रकारों की कलम को कुचलने की कोशिश हो रही है।
महाराष्ट्र सरकार और पुलिस प्रशासन को चाहिए कि वे इस घटना को उदाहरण बनाएं—ताकि अगली बार कोई पत्रकार रिपोर्टिंग करते वक्त अपनी जान को खतरे में न माने।