इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
सोमवार को विधान परिषद में नेता प्रतिपक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने विधान परिषद में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने राज्य की कानून-व्यवस्था को लेकर सरकार को घेरते हुए व्यंग्यपूर्वक कहा कि अगर मुख्यमंत्री से शासन नहीं संभल रहा तो उन्हें अपने बेटे निशांत कुमार को ही मुख्यमंत्री बना देना चाहिए।
राबड़ी देवी ने सदन में कहा, “मुख्यमंत्री खुद गृह मंत्री हैं, लेकिन कानून-व्यवस्था की हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। अपराधियों के हौसले बुलंद हैं। अगर उनसे सरकार नहीं चल रही है, तो बेटे को ही मुख्यमंत्री बना दें।”
उनका यह बयान विपक्ष की उस आक्रोश की कड़ी में था, जिसमें राज्य में अपहरण, हत्या और लूटपाट की बढ़ती घटनाओं को लेकर सरकार को लगातार घेरा जा रहा है। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में मतदाता सूची से लाखों नाम हटा दिए गए हैं, जिससे लोकतंत्र की नींव पर चोट पहुंच रही है।
वहीं, नीतीश कुमार के सहयोगी राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रमुख और पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को सीधा राजनीतिक सुझाव देते हुए कहा कि उन्हें अब जदयू की कमान अपने बेटे निशांत कुमार को सौंप देनी चाहिए। उन्होंने यह बात निशांत कुमार के जन्मदिन के अवसर पर कही।
कुशवाहा ने कहा, “जदयू के हजारों कार्यकर्ता चाहते हैं कि निशांत कुमार को अब पार्टी नेतृत्व सौंपा जाए। वह शिक्षित हैं, युवा हैं और बिहार के भविष्य के लिए नई सोच रख सकते हैं। नीतीश कुमार को चाहिए कि वह अब अगली पीढ़ी को आगे लाएं।”
दोनों बयानों में अंतर स्पष्ट
हालांकि दोनों नेताओं ने निशांत कुमार को आगे लाने की बात कही, लेकिन उनका स्वर और मंशा बिल्कुल भिन्न थी।
राबड़ी देवी का बयान कटाक्ष और व्यंग्य के रूप में आया, जबकि उपेंद्र कुशवाहा ने इसे एक गंभीर राजनीतिक विकल्प के तौर पर सामने रखा।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह पहला अवसर है जब जदयू के बाहर और भीतर से निशांत कुमार के नाम को लेकर इस तरह की चर्चा हुई है। कुशवाहा का बयान जदयू में संभावित नेतृत्व परिवर्तन के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।
निशांत कुमार अब तक राजनीति में औपचारिक रूप से शामिल नहीं हुए हैं। हाल ही में अपने जन्मदिन पर उन्होंने महावीर मंदिर में पूजा-अर्चना की और एनडीए को मजबूत करने की अपील की थी, लेकिन उन्होंने किसी भी राजनीतिक भूमिका को लेकर कोई टिप्पणी नहीं की।
राबड़ी देवी और उपेंद्र कुशवाहा के बयानों के बाद राज्य में ‘परिवारवाद’ बनाम ‘नेतृत्व परिवर्तन’ की बहस फिर से तेज़ हो गई है। जदयू जहां अब तक खुद को ‘संगठन आधारित पार्टी’ बताती रही है, वहीं अब अंदर से भी नए नेतृत्व को लेकर आवाज़ें उठने लगी हैं।
एक तरफ़ राबड़ी देवी का कटाक्ष नीतीश सरकार की विफलता पर सवाल उठाता है, तो दूसरी ओर उपेंद्र कुशवाहा की टिप्पणी जदयू की भविष्य की रणनीति में एक संभावित बदलाव की ओर संकेत करती है। इन बयानों से साफ है कि 2025 के विधानसभा चुनाव से पहले बिहार की राजनीति में उबाल तेज़ हो चुका है।