इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
डिजिटल पर्सनल डेटा प्राइवेसी (डीपीडीपी) एक्ट, 2023 को लेकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया (पीसीआई) और इंडियन वुमेन प्रेस कॉर्प्स (आईडब्लूपीसी) ने गंभीर आपत्तियां जताई हैं। दोनों संस्थाओं ने इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को कुल 35 सवालों की सूची सौंपकर यह स्पष्ट किया है कि यह कानून पत्रकारों के काम करने की आज़ादी और संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत मिले अधिकारों पर सीधा असर डाल सकता है।
इन सवालों को 23 अगस्त को प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) के प्रधान महानिदेशक धीरेंद्र ओझा को सौंपा गया, ताकि वे मंत्रालय के सचिव एस. कृष्णन तक पहुंचा सकें। गौरतलब है कि 28 जुलाई को मंत्रालय के सचिव और प्रेस संस्थाओं — प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, आईडब्लूपीसी, डिजीपब और एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया — के प्रतिनिधियों के बीच बैठक हुई थी। यह बैठक प्रेस क्लब की पहल पर बुलाई गई थी, जब केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाक़ात का समय नहीं मिल सका था।
पत्रकार संगठनों का कहना है कि पहले के ड्राफ्ट बिलों — 2018, 2019 और 2021 — में पत्रकारिता को छूट दी गई थी, यहां तक कि जस्टिस श्रीकृष्ण समिति (2018) और जस्टिस ए.पी. शाह समिति (2012) ने भी इसकी सिफारिश की थी। सवाल उठाया गया कि आखिरकार 2023 के एक्ट में यह छूट क्यों हटा दी गई?
पत्रकारों ने आशंका जताई है कि:
आरटीआई एक्ट की धारा 8(1)(j) में संशोधन से भ्रष्टाचार से जुड़े दस्तावेजों तक पहुंच मुश्किल हो जाएगी।
सहमति और डेटा प्रोसेसिंग की बाध्यता रियल-टाइम रिपोर्टिंग और खोजी पत्रकारिता के लिए अव्यावहारिक है।
ह्विसिलब्लोअर और पत्रकारिता स्रोतों की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
कानून में दिए गए ब्लॉकिंग और भारी जुर्माने के प्रावधान स्वतंत्र पत्रकारिता पर दबाव डाल सकते हैं।
पत्रकार संगठनों ने मंत्रालय को लिखे पत्र में यह भी कहा कि एफएक्यू (FAQ) सिर्फ स्पष्टीकरण होते हैं और इनकी कोई कानूनी वैधता नहीं है। इसलिए उनकी मूल मांग यही बनी हुई है कि कानून में संशोधन कर स्पष्ट लिखा जाए — “पत्रकारीय कार्य को छूट है”।
अब देखना यह होगा कि सरकार पत्रकारों और प्रेस संस्थाओं की इन चिंताओं का जवाब किस तरह देती है।