इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
संसद की स्थायी समिति की ताज़ा रिपोर्ट ने उच्च शिक्षा के क्षेत्र में सामाजिक न्याय की गंभीर असमानताओं को उजागर किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 15(5), जो निजी शिक्षण संस्थानों में SC, ST और OBC छात्रों को आरक्षण का प्रावधान देता है, 11 साल बाद भी पूरी तरह लागू नहीं हो पाया।
रिपोर्ट के अनुसार, देश की 90% बहुजन आबादी (SC/ST/OBC) को निजी संस्थानों में केवल 12% प्रतिनिधित्व मिला है। आँकड़े बताते हैं कि SC छात्रों की हिस्सेदारी महज़ 0.89%, ST की 0.53% और OBC की 11.16% है। समिति ने इसे “लोकतंत्र के आदर्शों के साथ अन्याय” करार दिया है।
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता वाली इस समिति ने सुझाव दिया है कि संसद तत्काल कानून बनाकर निजी संस्थानों में OBC के लिए 27%, SC के लिए 15% और ST के लिए 7.5% आरक्षण सुनिश्चित करे। साथ ही, इन आरक्षित सीटों का खर्च सरकार द्वारा वहन करने की व्यवस्था हो, ताकि निजी संस्थान आर्थिक नुकसान का हवाला न दे सकें।
रिपोर्ट में मुफ्त कोचिंग, छात्रवृत्ति, ब्रिज-कोर्स, भेदभाव-निवारण सेल और संवेदनशीलता प्रशिक्षण को भी ज़रूरी बताया गया है, ताकि आरक्षित वर्ग के छात्र शिक्षा से वंचित न हों।
कांग्रेस नेताओं ने रिपोर्ट के हवाले से केंद्र सरकार पर तीखे हमले किए। AICC के SC विभाग प्रमुख राजेंद्र पाल गौतम ने कहा, “सरकारी संस्थानों की कमी और निजी कॉलेजों की ऊँची फीस ने बहुजन छात्रों को शिक्षा से बाहर कर दिया है। अनुच्छेद 15(5) लागू करना अब अनिवार्य है।”
आदिवासी कांग्रेस के चेयरमैन डॉ. विक्रांत भूरिया ने आरोप लगाया, “सरकार ने योजनाबद्ध तरीके से सरकारी संस्थानों को कमजोर किया और शिक्षा को निजी हाथों में सौंप दिया। यह लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है।”
OBC विंग प्रमुख अनिल जयहिंद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधते हुए कहा “EWS आरक्षण 48 घंटे में पास हुआ, लेकिन 11 साल से SC/ST/OBC छात्रों का संवैधानिक हक़ लागू नहीं हुआ। यह बहुजन समाज के साथ विश्वासघात है।”
अनुच्छेद 15(5) को UPA-1 सरकार ने 93वें संविधान संशोधन के ज़रिए जोड़ा था। 2008 में अशोक कुमार ठाकुर बनाम भारत संघ, 2011 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन केस, और 2014 में प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट केस में सुप्रीम कोर्ट ने इसकी संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इसके बावजूद, निजी संस्थानों में आरक्षण लागू करने के लिए अब तक कोई ठोस कानून नहीं बना।
रिपोर्ट को दिग्विजय सिंह ने “मंडल आयोग के बाद सामाजिक न्याय का नया मील का पत्थर” बताया है। अब निगाहें संसद पर हैं कि क्या यह रिपोर्ट बहुजन छात्रों के लिए वास्तविक बदलाव का आधार बनेगी, या महज़ एक और दस्तावेज़ बनकर रह जाएगी।