इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर तमाम राजनीतिक दल तैयारियों में जुट गए हैं जिसके कारण चुनाव की घोषणा से पहले ही सियासी गर्मी तेज़ हो गई है। कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन की तरफ़ से वोटर अधिकार यात्रा निकाली गई जिसमें चुनाव आयोग पर फ़र्ज़ी वोटर जोड़ने और भाजपा को फायदा पहुंचाने के आरोप लगाए गए वहीं चुनाव से ठीक पहले बिहार में SIR अभियान पर भी सवाल उठाए गए।
इनके अलावा विकास, रोज़गार, पलायन, शिक्षा , गरीबी और फैक्ट्रियां के मुद्दे भी चर्चा के केंद्र में हैं। लेकिन बात बिहार चुनाव की हो तो इन तमाम मुद्दों के इतर जातियां ही मुख्य केंद्र में रहती हैं। इसी क्रम में बिहार कांग्रेस के बैनर तले अति पिछड़ा न्याय यात्रा जननायक कर्पूरी ठाकुर स्मृति भवन पटना से शुरू की गई है जो 40 दिन तक बिहार के सभी 38 ज़िलों को कवर करेगी और अति पिछड़े वर्ग के हक, सम्मान और न्याय की नई इबारत लिखेगी।
यात्रा के संयोजक कुणाल बिहारी के मुताबिक यह यात्रा राजनीतिक कम और सामाजिक ज़्यादा है। हम बिहार के सभी जिलों में जाएंगे और उनकी समस्याओं को सुनेंगे तथा कांग्रेस पार्टी की टेबल पर पहुंचाएंगे एवं पार्टी के घोषणा पत्र में शामिल किया जाएगा। वही कांग्रेस के अति पिछड़ा विभाग के अध्यक्ष शशिभूषण पंडित ने कहा कि यात्रा का मुख्य उद्देश्य अति पिछड़ा वर्ग में सचेतन पैदा करना है कि हम अपने अधिकार की लड़ाई खुद लड़ेंगे एवं जननायक कर्पूरी ठाकुर जी की मूल अवधारणा सामाजिक एकजुटता के साथ आवाज बुलंद करने की चेतना पैदा कर आबादी के अनुपात में सामाजिक व राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित करेंगे। आगे उन्होंने कहा कि इस समाज का इस्तेमाल लालू यादव व नीतीश कुमार दोनों ने किया तथा नीतीश कुमार ने 65 प्रतिशत आरक्षण तो किया जिस पर कोर्ट ने रोक लगा दी लेकिन उसे 9वीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया जिसके कारण यह वर्ग शिक्षा व नौकरी से वंचित रह गया।
यात्रा में मुख्य रूप से हर ज़िले में तीन बिंदुओं पर चर्चा की जाती है जिसमें अति पिछड़े वर्ग के लिए काम कर रहे लोगों को अति पिछड़ा सम्मान पत्र एवं काम करने के इच्छुक लोगों को अति पिछड़ा न्याय योद्धा राहुल गांधी के द्वारा हस्ताक्षर किए सर्टिफिकेट दिए जाते हैं तथा कर्पूरी चौपाल का आयोजन कर वैचारिक फिल्म की स्क्रीनिंग की जाती है एवं इस पर चर्चा की जाती है।
कांग्रेस की अति पिछड़ा न्याय यात्रा के दौरान पार्टी ने कई अहम मांगें उठाई हैं। इसमें अति पिछड़ों पर अत्याचार रोकने के लिए विशेष कानून बनाने, स्थानीय निकायों में आरक्षण 29% से बढ़ाकर 33% करने और 38% आबादी को ध्यान में रखते हुए स्वतंत्र अति पिछड़ा आयोग गठित करने की बात शामिल है।
पार्टी ने शिक्षा और नौकरी में आरक्षण 18% से बढ़ाकर 25% करने, इस आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने और विधानमंडल, सरकार व संगठन में आबादी के अनुसार उचित प्रतिनिधित्व देने की मांग भी रखी है। इसके अलावा ठेका और आपूर्ति कार्यों में अति पिछड़ों को आरक्षण व विशेष छूट देने और किसी जाति को EBC वर्ग में शामिल करने के लिए स्पष्ट मानक तय करने की मांग की गई है।
पटना से शुरू हुई यात्रा सीधे कर्पूरी ठाकुर के पैतृक गांव पितोंझिया (अब कर्पूरीग्राम) उनके आवास पहुंची जहां माल्यार्पण कर समस्तीपुर, मधुबनी, दरभंगा, सुपौल, मधेपुरा एवं सहरसा पहुंची। आगामी कुछ दिनों तक यात्रा अररिया, किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार, भागलपुर एवं खगड़िया होते हुए गुजरेगी।
अति पिछड़ा वर्ग (EBC) बिहार की कुल आबादी का लगभग एक-तिहाई है। इसमें नाई, धोबी, तेली, कहार, मछुआरा, कुशवाहा-मौर्य, हलवाई, नोनिया, लोहार, माली, गड़ेरिया जैसी दर्जनों जातियाँ शामिल हैं। संख्या ज़्यादा होने के बावजूद जातीय बिखराव और शिक्षा–आर्थिक पिछड़ेपन के कारण यह वर्ग लंबे समय तक राजनीति में हाशिये पर रहा।
ऐतिहासिक तौर पर जननायक कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले 1978 में इन्हें अलग से आरक्षण देकर राजनीतिक पहचान दिलाई थी। बाद में नीतीश कुमार ने पंचायत चुनावों में अति पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देकर इनके बीच मजबूत पकड़ बनाई। यही कारण है कि लंबे समय तक जदयू का कोर वोटबैंक माना जाता रहा है।
2020 के विधानसभा चुनाव में महागठबंधन चंद हज़ार वोटों के अंतर से ही सत्ता से बाहर रह गया। नतीजतन, अब सभी दलों को अहसास है कि बिना EBC समर्थन के बहुमत असंभव है। इसी वजह से कांग्रेस ने अलग से अति पिछड़ा विभाग बनाकर शशिभूषण पंडित(कुम्हार) को इसका अध्यक्ष बनाया। वही राजद ने धानुक जाति से आने वाले मांगनी लाल मंडल को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर अति पिछड़े को साधने की कोशिश की है। भाजपा ने भी बिहार में इस वर्ग को साधने के लिए खूब खींचतान की है जिसमें उसने अपने सबसे बड़ा चेहरा तेली समाज से आने वाले नरेंद्र मोदी और 2020 विधान सभा चुनाव नीतीश कुमार के साथ जीतने के बाद इबीसी समाज से आने वाली रेनू यादव को उपमुख्यमंत्री का पद दिया। अगर बिहार चुनाव के इतिहास के पन्ने पलटा जाए तो इबीसी समाज की सियासत तमाम पार्टियां ने अपने अपने हिसाब से की है लेकिन इसको एकजुट करने के लिए जननायक कर्पूरी ठाकुर ने सबसे पहले आरक्षण देकर पहल की उसके बाद इसका चुनावी महत्व हर दल को समझ में आया।
ऐसे में कांग्रेस इस यात्रा के ज़रिए न सिर्फ अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत करना चाहती है, बल्कि सामाजिक न्याय की राजनीति को भी नए सिरे से परिभाषित करने का प्रयास कर रही है, ताकि इस बड़ी आबादी वाले वर्ग को अपने साथ जोड़ा जा सके।