दिल्ली में कांग्रेस आखिर आर-पार के मूड में क्यों?

✍️ अब्दुल -रकीब नोमानी
पॉलिटिकल एडिटर इंसाफ़ टाइम्स

चुनाव आयोग की घोषणा के साथ ही दिल्ली विधानसभा चुनाव की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है। दिल्ली की सभी 70 विधानसभा सीटों पर मतदान 5 फरवरी को होगा, वही परिणाम 8 फरवरी को घोषित किए जाएंगे। इस चुनाव में तीन प्रमुख दल आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस आमने-सामने है। लोकसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी और कांग्रेस ने गठबंधन कर चुनाव लड़ा था, लेकिन विधानसभा चुनाव के ठीक पहले दोनों दल अब एक-दूसरे के खिलाफ खड़े हैं। जिससे मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। बीजेपी की तरह कांग्रेस भी आम आदमी पार्टी के कार्यकाल को लेकर लगातार हमलावर है। ऐसा माना जा रहा था कि कांग्रेस की ओर से आम आदमी पार्टी को दिल्ली विधानसभा चुनाव में कुछ रियायत मिलेगी। यहां तक कि अगर गठबंधन न भी हो तो कांग्रेस पूरी मजबूती से चुनाव में नहीं जायेगी, जिससे आम आदमी पार्टी की सत्ता वापसी आसानी से हो सकेगी। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। कॉंग्रेस अपने इंडिया गठबंधन सहयोगी की परवाह किए बगैर पूरी आक्रमकता के साथ केजरीवाल को घेर रहे हैं। कांग्रेस के इस आक्रामक रुख के कारण लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बना ‘इंडिया गठबंधन’ भी अब दरार की स्थिति में दिख रहा है। जिसने दिल्ली के साथ देश के राजनीति में एक तरह से हलचल पैदा कर दी है। हालांकि इंडिया गठबंधन के कई घटक दल अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के साथ खड़े हैं। जिनसे इंडिया गठबंधन के कई दल बयानों के तीर में आमने-सामने हैं। जिनसे गठबंधन के भविष्य को लेकर भी कई सवाल उठ रहे हैं। इस लेख के ज़रिए समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर दिल्ली में कांग्रेस आर-पार के मूड में क्यों है?

*केजरीवाल के खिलाफ़ कॉंग्रेस की घेराबंदी

लोकसभा चुनाव के समय कॉंग्रेस और आम आदमी पार्टी भले ही साथ चुनाव में उतरी थी, लेकिन अब दोनों की राहें अलग हो गई है। कॉंग्रेस इस बात को अच्छे से समझ रही है कि पिछले 11 साल से दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का कब्जा है। ऐसे में बीजेपी से ज्यादा उनको लड़ाई के केंद्र में आम आदमी पार्टी को शामिल रखना होगा। इसी रणनीति के हिसाब से कॉंग्रेस ने दिल्ली से आने वाले अपने दो बड़े नेता अजय माकन और संदीप दीक्षित से सबसे पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस कराया, जिनमें दोनों को पूरी छुट दी कि वो पूरी आक्रमकता के साथ केजरीवाल को घेरे। संदीप दीक्षित ने जहां अरविंद केजरीवाल को शीला दीक्षित जी का राजनीतिक कातिल कहा वही अजय माकन ने अपने प्रेस कांफ्रेंस में केजरीवाल को भ्रष्टाचारी के साथ एंटी नेशनल तक बोल दिया। कॉंग्रेस यहीं तक नहीं रुकती है, जब सीलमपुर में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी शामिल हुए तो उन्होंने भी 10 साल के विफलताओं को लेकर केजरीवाल को जमकर घेरा। आगे उन्होंने अपने भाषण में कहा कि मोदी और केजरीवाल दोनों नहीं चाहते कि दलितों पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को उनका हक मिले। समान भागीदारी और संविधान की रक्षा के लिए लगातार आवाज़ सिर्फ कॉंग्रेस उठा रही है।

कांग्रेस ने अपनी रणनीति को और मजबूत करते हुए आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेताओं के खिलाफ अपने कई कद्दावर नेताओं को मैदान में उतारा है। नई दिल्ली सीट से पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ संदीप दीक्षित को मैदान में उतारा है, जो पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र हैं। यह मुकाबला अब “पूर्व मुख्यमंत्री बनाम पूर्व मुख्यमंत्री के बेटे” का बन चुका है। इसके अलावा कालकाजी सीट पर मुख्यमंत्री आतिशी के खिलाफ कांग्रेस ने अपनी महिला अध्यक्ष अल्का लांबा को चुनावी मैदान में उतारा है। अन्य महत्वपूर्ण सीटों पर भी कांग्रेस ने दमदार उम्मीदवार उतारे हैं जैसे बादली से प्रदेश अध्यक्ष देवेन्द्र यादव, बल्लीमारन से हारून यूसुफ और सीलमपुर से आप के बागी विधायक अब्दुल रहमान वही ओखला सीट पर कांग्रेस ने अरीबा खान को आप के अमानतुल्लाह खान के खिलाफ़ मैदान में उतारकर आप को सीधी चुनौती दी है। इन रणनीतिक कदमों से कांग्रेस ने साफ संदेश दे दिया है कि वह दिल्ली की इस लड़ाई में किसी भी तरह पीछे हटने वाली नहीं है।

*कॉंग्रेस ने प्रचार के लिए बनाई राजनीति
आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं के खिलाफ कांग्रेस ने ना सिर्फ अपने कद्दावर नेताओं को मैदान में उतारा है, बल्कि अब उन्हें घेरने के लिए आक्रामक प्रचार रणनीति भी अपना रही है। इसके लिए कांग्रेस ने अपने स्टार प्रचारकों में मल्लिकार्जुन खरगे, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी, सचिन पायलट, अशोक गहलोत, अजय माकन, संदीप दीक्षित, सुखविंदर सिंह सुक्खू, सलमान खुर्शीद, कन्हैया कुमार, रेवंथ रेड्डी और काजी निजामुद्दीन जैसे बड़े चेहरों को शामिल किया है। इसके अलावा कांग्रेस दिल्ली में 20 विधानसभा सीटों को चिन्हित कर रही है, जहां से नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी अपनी पदयात्रा करेंगे। इसकी शुरुआत वे नई दिल्ली विधानसभा सीट से करेंगे। यह एक बड़ा संदेश देने की कोशिश है कि कांग्रेस अब किसी भी हाल में अरविंद केजरीवाल के प्रति नरमी नहीं बरतने वाली है। अब जो लड़ाई होगी वह आर-पार की होगी।इसके साथ कांग्रेस पार्टी समय-समय पर अपने शासित राज्यों कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री और बड़े नेताओं से प्रेस कॉन्फ्रेंस कर किए गए वायदों को पूरा करने की बात भी कर रही है। जहां पहले से कॉंग्रेस जनता से किए वायदे को पूरा कर रही है। ताकि लोगों को किए वायदे में विश्वास दिखे। कुल मिलाकर देखा जाए तो कांग्रेस किसी भी हाल में नरमी बरतने की स्थिति में नहीं है। दिल्ली कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष देवेन्द्र यादव ने कहा “अगर हम आप के साथ रहते तो आज दिल्ली में कहीं भी नजर नहीं आ रहे होते।

*कांग्रेस चाहती थी इंडिया गठबंधन के घटक दल आप को समर्थन ना दें

कांग्रेस नेतृत्व चाह रहा था कि इंडिया गठबंधन के घटक दलों का समर्थन आम आदमी पार्टी को न मिले और दोनों पार्टियां आमने-सामने चुनाव लड़ें। ठीक वैसे ही जैसे हरियाणा, गुजरात और गोवा जैसे राज्यों में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ा था। लेकिन समाजवादी पार्टी, एनसी और एनसीपी (शरद) जैसे दलों ने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल को अपना समर्थन दे दिया। इसके बाद कांग्रेस नेतृत्व को यह महसूस हुआ कि उन्हें पूरी ताकत से लड़ाई लड़नी चाहिए। इसके चलते कांग्रेस ने पहली बार चुनाव से पहले सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए। दिल्ली के बड़े नेता अजय माकन, अल्का लांबा और संदीप दीक्षित जैसे नेताओं को यह छूट दी गई कि वे पूरी आक्रामकता के साथ आम आदमी पार्टी को घेरें। जिनसे कॉंग्रेस दिल्ली के लड़ाई में सही से शामिल कर सके। कांग्रेस की रणनीति यह थी कि दिल्ली विधानसभा चुनाव के कारण इंडिया गठबंधन में कोई दरार न आए। इसे और अच्छे से समझा जा सकता है कि अजय माकन ने अरविंद केजरीवाल को “एंटी नेशनल” तक कह दिया। इसके बाद भी उन्होंने लगातार कहा कि वे अपने बयान पर कायम हैं और यह उनकी व्यक्तिगत सोच है। अजय माकन एक और प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले थे, जिसमें वे केजरीवाल के खिलाफ अपनी बात रखते। लेकिन अंतिम समय में यह प्रेस कॉन्फ्रेंस रद्द कर दी गई। कांग्रेस नेतृत्व को यह अच्छे से पता था कि अगर माकन अपनी आक्रामक टिप्पणी के साथ केजरीवाल के खिलाफ बयान देंगे, तो इससे इंडिया गठबंधन में और दरार आ सकती है। ऐसे में यह स्थिति कांग्रेस के लिए कठिन हो सकती थी। क्योंकि कॉंग्रेस अपने सर पर इंडिया गठबंधन के बीच दरार पैदा करने का सेहरा नहीं लेना चाहती थी। इसलिए कांग्रेस आलाकमान ने माकन की प्रेस कॉन्फ्रेंस को कैंसिल कर दिया। लेकिन फिर भी घटक दलों का साथ केजरीवाल को मिला। जिनपर कॉंग्रेस के बड़े नेता और राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि विपक्षी गठबंधन “इन्डिया” में कॉंग्रेस को अलग थलग करने की जो साजिश चल रही है उस पर कॉंग्रेस बैकफुट पर नहीं है। कॉंग्रेस भी आरपार के मूड में है। जिन्होंने आगे दो टूक कहा कि दिल्ली में कॉंग्रेस का पहला दुश्मन आप है। कॉंग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने नाते सबको साथ लेकर चलने के लिए तैयार हैं लेकिन इनके लिए बाकी पार्टियों को भी सहयोग करना होगा।

*कांग्रेस हर हाल में अपना खोया हुआ वोट वापस पाना चाहती है

दिल्ली में कांग्रेस के आरपार लड़ाई में कूदने का सबसे बड़ा कारण अपना खोया हुआ वोट वापस पाना है। क्योंकि पिछले दो विधानसभा चुनाव से कांग्रेस पार्टी 0 सीट पर सिमट रही है। जबकि 2013 से पहले 15 साल तक दिल्ली पर कांग्रेस का कब्जा रहा था। आज हालत ये हो गई है कि 70 विधानसभा सीट वाली दिल्ली में कांग्रेस का एक भी विधायक नहीं है। कभी दिल्ली में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 47 हुआ करता था, वह अब घटकर 4.26 प्रतिशत पर पहुंच गया है। कांग्रेस इस बात को अच्छे से समझ रही है कि अगर उसे अपना खोया हुआ वोट बैंक वापस पाना है, तो उसे खुलकर आम आदमी पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलना होगा। इसलिए कांग्रेस पार्टी इंडिया गठबंधन के सहयोगियों की परवाह किए बिना आक्रामकता को बरकरार रखे हुए है। क्योंकि वे जानते हैं कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो वे दिल्ली से पूरी तरह वोट प्रतिशत में भी गायब हो जाएंगे। इसके साथ ही अलग-अलग राज्यों में इंडिया गठबंधन की क्षेत्रीय पार्टियों के दबाव के कारण कांग्रेस पार्टी हिंदुस्तान के अलग-अलग हिस्सों में सिमट जाएगी। यही कारण है कि कांग्रेस पार्टी केजरीवाल के लिए थोड़ी भी नरमी नहीं बरत रही है। जबकि इंडिया गठबंधन के घटक दल साफ कह रहे हैं कि दिल्ली में बीजेपी का मुकाबला सिर्फ आम आदमी पार्टी ही कर रही है। इसके अलावा कांग्रेस यह भी समझ रही है कि दिल्ली में केजरीवाल के खिलाफ अधिक आक्रामकता बरकरार रखने से पंजाब के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश जाएगा। जहां आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से पंजाब की सत्ता छीनी हैं। जहां बीजेपी की पैठ अब तक वहां नहीं बन पाई है। कहें तो कांग्रेस अपने दिल्ली के आरपार की लड़ाई से पंजाब को भी साधने के फिराक में है।

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