24 जनवरी: राष्ट्रीय बालिका दिवस – अधिकार, सुरक्षा और सशक्तिकरण का संकल्प

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

भारत में आज भी बालिकाओं को कई तरह के भेदभाव और चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। चाहे वह शिक्षा का अधिकार हो, सुरक्षा का सवाल हो या सामाजिक सम्मान का मुद्दा, बालिकाओं को हर क्षेत्र में संघर्ष करना पड़ता है। ऐसा लगता है मानो वह केवल अपने हक और अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए ही बनी हों। समाज और देश के विकास के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि बालिकाओं के महत्व को न केवल समझा जाए, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित और सशक्त भी किया जाए। देश की आधी आबादी को दरकिनार कर कोई भी राष्ट्र विकास के मार्ग पर आगे नहीं बढ़ सकता। शिक्षा जो प्रत्येक बच्चे का मौलिक अधिकार है, बालिकाओं के लिए और भी अधिक महत्वपूर्ण है। एक शिक्षित बालिका अपने परिवार, समाज और राष्ट्र के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। शिक्षा उन्हें आत्मनिर्भर बनाती है और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करती है। इसके बिना एक न्यायसंगत और समृद्ध समाज की कल्पना भी असंभव है। इसलिए न्यायसंगत समाज के निर्माण के लिए बालिकाओं का सशक्तिकरण आवश्यक है।

*समाज को सोच बदलने की जरूरत

बालिकाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए कानूनी प्रावधान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लेकिन केवल कानून बनाना पर्याप्त नहीं है, उनके प्रभावी क्रियान्वयन और बालिकाओं तक उनकी जानकारी सुनिश्चित करना भी जरूरी है। इसके साथ ही जागरूकता कार्यक्रमों और सामुदायिक भागीदारी के माध्यम से समाज का नजरिया बदलने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। आज भी समाज में कई प्रकार की विकृत मानसिकता मौजूद है। जैसे “लड़कियां पढ़कर क्या करेंगी, उन्हें तो शादी के बाद घर ही संभालना है,” “लड़कियां लड़कों के मुकाबले कमजोर होती हैं,” और “लड़कियां केवल घर के अंदर रहने के लिए बनी हैं।” ऐसी सोच बालिकाओं की क्षमता को बाधित करती है और समाज के विकास में बड़ी रुकावट बनती है। विकसित भारत के सपनों को पूरा करने के लिए समाज को इन विकृत मानसिकतों से बाहर आना होगा।

*हर दिन देश में औसतन 86 रेप दर्ज होते हैं

हर साल केवल बालिका दिवस मनाने के बजाय सरकार और समाज को मिलकर ऐसा वातावरण बनाने का प्रयास करना चाहिए, जिसमें बालिकाएं खुद को सुरक्षित और सशक्त महसूस कर सकें। जब तक बालिकाओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों की गारंटी नहीं दी जाती, तब तक बालिका दिवस जैसे आयोजनों का वास्तविक प्रभाव संभव नहीं हो सकता। सरकार को बालिकाओं के प्रति होने वाले अपराधों पर सख्ती से रोक लगाने और अपराधियों में भय उत्पन्न करने के लिए कानूनों को और अधिक प्रभावी बनाना चाहिए। क्योंकि अब भी देश में हर दिन औसतन 86 रेप के मामले दर्ज होते हैं, जिनमें से अधिकांश बालिकाओं से जुड़े होते हैं। यह स्थिति हमारे समाज की गंभीर समस्या को उजागर करती है और इसे बदलने के लिए तुरंत और सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है।

*बालिकाएं: देश की शक्ति और विकास का आधार

समाज को यह समझने की जरूरत है कि बालिकाएं केवल परिवार या समाज की जिम्मेदारी नहीं हैं, बल्कि वे देश की शक्ति और विकास का आधार हैं। हमें ऐसा माहौल बनाना होगा जिसमें हर बालिका अपने सपनों को साकार करने के लिए स्वतंत्र हो, अपनी प्रतिभा को पहचान सके और समाज की रीढ़ बन सके। बालिकाओं का सशक्तिकरण केवल एक अभियान नहीं, बल्कि समाज के मूलभूत ढांचे को मजबूत करने का सबसे महत्वपूर्ण कदम है। जब बालिकाएं सशक्त होंगी, तो समाज और राष्ट्र का हर क्षेत्र प्रगति की ओर अग्रसर होगा। राष्ट्रीय बालिका दिवस का असली उद्देश्य तभी पूरा होगा, जब हर बालिका निडर होकर अपनी पहचान बना सके और देश के विकास में अपनी पूरी भागीदारी निभा सके।

*24 जनवरी को ही क्यों मनाया जाता है राष्ट्रीय बालिका दिवस?

24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाने का मुख्य कारण इंदिरा गांधी से जुड़ा हुआ है। 24 जनवरी 1966 को इंदिरा गांधी ने देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी। एक बेटी के देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने के इस ऐतिहासिक दिन को बालिकाओं के सम्मान और उनके अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने के उद्देश्य से राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। हालांकि यह भी सच है कि इंदिरा गांधी के बाद देश में अब तक दूसरी कोई महिला प्रधानमंत्री नहीं बनीं। बालिका दिवस का असली महत्व तभी सार्थक होगा, जब बालिकाओं को उनके अधिकार, सुरक्षा और सम्मान की गारंटी मिलेगी। आइए इस बालिका दिवस पर हम यह संकल्प लें कि बालिकाओं को उनके हक और सम्मान से कभी वंचित नहीं किया जाएगा। उन्हें सशक्त बनाने और एक समान अवसर देने के लिए ठोस कदम उठाएंगे। केवल तब ही हमारा देश सही मायनों में विकसित हो सकेगा।

(ये स्टोरी इंसाफ़ टाइम्स की पत्रकार अनम जहां लिखी है)

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