
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन करने के कारण गिरफ्तार किए गए छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद की रिहाई की मांग तेज हो गई है। देश-विदेश के 160 शिक्षाविदों, कलाकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को एक संयुक्त बयान जारी कर उमर खालिद समेत अन्य कार्यकर्ताओं की रिहाई की मांग की।
इस बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में प्रख्यात लेखक अमिताव घोष, अभिनेता नसीरुद्दीन शाह, इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री जयति घोष, सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और राजनीतिक विश्लेषक क्रिस्टोफ जाफरलोट सहित कई प्रमुख हस्तियां शामिल हैं।
*1600 दिन से जेल में बंद उमर खालिद
उमर खालिद 13 सितंबर 2020 से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं। गुरुवार को उनकी गिरफ्तारी के 1600 दिन पूरे हो गए। इस मौके पर जारी बयान में कहा गया, “यह संयोग ही है कि यह दिन महात्मा गांधी की हत्या की 77वीं बरसी भी है। हम इस समानता को अनदेखा नहीं कर सकते और न ही इसे नजरअंदाज किया जाना चाहिए।”
*”न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग”
बयान में उमर खालिद की गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत लंबे समय से जारी कैद पर गंभीर चिंता जताई गई। बयान में कहा गया, “हम यह देखकर बहुत व्यथित हैं कि एक होनहार और संवेदनशील युवा को, जो एक इतिहासकार के रूप में प्रशिक्षित हुआ और एक आलोचनात्मक विचारक के रूप में विकसित हुआ, उसे बार-बार निशाना बनाया गया और बदनाम किया गया।”
*”असली दोषियों पर कार्रवाई नहीं, प्रदर्शनकारियों को बनाया निशाना”
उमर खालिद को फरवरी 2020 में हुए उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के षड्यंत्र के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इस हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से अधिकतर मुस्लिम थे।
बयान में आरोप लगाया गया कि दंगों के असली दोषियों पर कार्रवाई करने के बजाय राज्य ने प्रदर्शनकारियों और कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया।
“उमर खालिद को जानबूझकर झूठे आरोपों में फंसाया गया है। उन्होंने हमेशा बहुलतावाद, धर्मनिरपेक्षता और संवैधानिक मूल्यों के पक्ष में तर्कपूर्ण भाषण दिए हैं, लेकिन उनके खिलाफ एक साजिश के तहत हिंसा भड़काने का झूठा आरोप लगाया गया।”
*अन्य कार्यकर्ताओं की भी रिहाई की मांग
बयान में उमर खालिद के अलावा गुलफिशा फातिमा, शरजील इमाम, खालिद सैफी, मीरान हैदर, अतहर खान और शिफाउर रहमान की भी रिहाई की मांग की गई है।
*”राजनीतिक असहमति को दबाने का प्रयास”
दिल्ली पुलिस का दावा है कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को बदनाम करने की एक बड़ी साजिश।का हिस्सा थी और इसे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ प्रदर्शन की आड़ में अंजाम दिया गया।
पुलिस ने यह भी आरोप लगाया कि प्रदर्शनकारियों के “विच्छेदकारी इरादे” थे और उन्होंने सरकार को अस्थिर करने के लिए “सविनय अवज्ञा की आड़” ली।
हालांकि, बयान में 2021 के दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया था, “राज्य की नजर में, संवैधानिक रूप से गारंटीकृत विरोध करने के अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है।”
“ट्रायल से पहले ही सजा”
संयुक्त बयान में आतंकवाद विरोधी कानूनों के दुरुपयोग की भी निंदा की गई। “ऐसे कानून और न्यायिक प्रक्रियाओं में देरी के कारण लोगों को बिना मुकदमे के लंबी सजा भुगतनी पड़ रही है। यह अन्यायपूर्ण है कि किसी को दोषी साबित किए बिना सालों तक जेल में रखा जाए।”
*”बराबरी और न्याय की दिशा में योगदान दें”
बयान के अंत में कहा गया।”हम उम्मीद करते हैं कि उमर और अन्य समान नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाले कार्यकर्ता जल्द ही स्वतंत्र होंगे, ताकि वे एक न्यायसंगत और समान भविष्य के निर्माण में योगदान दे सकें।”