
इंसाफ टाइम्स डेस्क
ज़ियाए हक फाउंडेशन की ओर से बिहार के तीन मशहूर और प्रसिद्ध शायरों रहबर गयावी, मज़हर वसतवी, और डॉ. नसर आलम नसर के सम्मान में एक शानदार महफ़िल ए एजाज़ी और मुशायरा का आयोजन किया गया। यह प्रोग्राम 2 फरवरी 2025, रविवार को पटना के इलाके फलवारी शरीफ में आयोजित हुआ।
साबिर सहरसावी की अध्यक्षता में होने वाले इस प्रोग्राम का आयोजन मोहम्मद ज़ियाउल अजीम (ट्रस्टी ज़ियाए हक फाउंडेशन), डॉ. सालेहा सिद्दीकी (चेयरपर्सन ज़ियाए हक फाउंडेशन), और डॉ. नसर आलम नसर (रुकन ज़ियाए हक फाउंडेशन) ने किया था। इस मौके पर फाउंडेशन की सामाजिक, कल्याणकारी और अदबी सेवाओं की सराहना की गई। ज़ियाए हक फाउंडेशन की विशेष कोशिश है कि वे उन शायरों और अदीबों को खोजे जो अपने कला में माहिर होने के बावजूद नज़रअंदाज़ किए जाते हैं, और उन्हें अदब की दुनिया में पहचान दिलवाएं।
प्रोग्राम की निज़ामत मशहूर शायर सैयद रिजवान हैदर और क़ाज़िम रज़ा ने की। महफ़िल की शुरुआत में कारी अब्दुल वाजिद इर्फानी ने क़ुरआन पाक की तिलावत की, जिसके बाद डॉ. नसर आलम नसर ने नात पाक पेश करके महफ़िल को मोअत्तर किया। इसके बाद मोहम्मद ज़ियाउल अजीम ने फाउंडेशन का परिचय कराते हुए शायरों का विस्तार से परिचय दिया और उनके अदबी कारनामों पर रोशनी डाली।
मुशायरे की शुरुआत तीनों शायरों के कलाम से हुई, जिन्होंने अपने अशआर से महफ़िल को गर्माया:
- मज़हर वसतवी ने कहा:
“फसले गुल, रंगे चमन, बाद-ए-सबा का मतलब,
हर कली को है पता नाज़-ओ-आदा का मतलब।” - डॉ. नसर आलम नसर ने कहा:
“ऐ रब्बे काएनात तेरा दिल से शुक्रिया,
लाखों में इंतखाब के काबिल बना दिया।” - चौंच गयावी ने कहा:
“महफ़िल में भीड़ अब तो मुतशायरों की है,
है शायरों के वास्ते महदूद दायरा।”
साबिर सहरसावी ने महफ़िल के अंत में अपने तअस्सुरात का इज़हार किया और शायरों की सेवाओं को सराहा। उन्होंने ज़ियाए हक फाउंडेशन की कोशिशों को खराज-ए-तहसीन पेश करते हुए कहा कि इस संगठन ने तीनों शायरों का हुसन-ए-इंतिखाब किया और उनकी सेवाओं को मंज़ूर किया।
आखिर में मोहम्मद ज़ियाउल अजीम ने सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि फाउंडेशन की कोशिश है कि उर्दू ज़बान और अदब की तर्वीज की जाए और हर व्यक्ति को इस ज़बान के जरिए अपनी तहज़ीब और संस्कृति से जुड़ने का मौका मिले।
इस प्रोग्राम में मदरसा ज़ियाए उलूम के तलबा और फूलवारी शरीफ की अन्य अज़ीज़ शख्सियतों ने शिरकत की। इस प्रोग्राम को सफलतापूर्वक मुकम्मल करने में डॉ. सालेहा सिद्दीकी, डॉ. नसर आलम नसर, और मोहम्मद ज़ियाउल अजीम की मेहनत और कोशिशें शामिल थीं।