
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) के कर्नाटक राज्य अध्यक्ष अब्दुल मजीद ने कर्नाटक पुलिस पर मुस्लिम आरोपियों के प्रति भेदभावपूर्ण रवैया अपनाने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार पहले से ही मुस्लिम समुदाय के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है, और राज्य की पुलिस भी अगर आरोपी मुस्लिम हो तो उसके साथ दोहरा मापदंड अपनाती है।
एसडीपीआई अध्यक्ष ने उत्तर कन्नड़ जिले के होन्नावर में हाल ही में गोकशी के एक मामले में 80 से अधिक लोगों को हिरासत में लेने और एक युवक फैजान को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस द्वारा उसके पैर में गोली मारने की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि किसी भी अपराधी को सजा मिलनी चाहिए, लेकिन कानून को हाथ में लेकर आरोपी को गोली मारना पूरी तरह गैरकानूनी है।
*पुलिस की कार्रवाई में भेदभाव का आरोप
अब्दुल मजीद ने यह भी याद दिलाया कि दिसंबर 2018 में प्रीश मेस्ता की रहस्यमयी मौत के बाद, दक्षिणपंथी संगठनों ने कारवार, होन्नावर, कुमटा और मंडगोद (उत्तर कन्नड़ जिला) में बंद बुलाया था। कुमटा में प्रदर्शन हिंसक हो गया था, आरएसएस और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने IGP की गाड़ी तक में आग लगा दी थी, पुलिस पर पथराव किया था, कई अधिकारी घायल हुए थे, और कई वाहनों को तोड़ा गया था। इसके बावजूद, उत्तर कन्नड़ पुलिस ने किसी प्रदर्शनकारी पर गोली नहीं चलाई।
लेकिन, होन्नावर में सिर्फ मवेशी चोरी के आरोपी फैजान को पुलिस ने पैर में गोली मार दी। अब्दुल मजीद ने सवाल किया कि जब आरोपी मुस्लिम होता है, तो पुलिस की लाठियां, गोलियां और कठोर कार्रवाई तुरंत बाहर आ जाती हैं, लेकिन अन्य मामलों में पुलिस निष्क्रिय रहती है।
*बड़े अपराधों में कार्रवाई क्यों नहीं?
एसडीपीआई अध्यक्ष ने सवाल उठाया कि बेलकेरी बंदरगाह से 450 करोड़ रुपये मूल्य के 3,100 मीट्रिक टन लोहे की चोरी और उसकी अवैध बिक्री में शामिल लोगों पर पुलिस ने कोई गोली क्यों नहीं चलाई?
उन्होंने यह भी कहा कि इस अन्याय पर कर्नाटक सरकार के प्रभारी मंत्री मंकल एस. वेद्या को कम से कम बयान देकर निंदा करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।
*पुलिस की कार्रवाई पर उठाए गंभीर सवाल
अब्दुल मजीद ने पुलिस की कार्रवाई पर कई अहम सवाल उठाए:
- प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों की निगरानी में आरोपी कैसे फरार हो सकता है?
- अगर वह भागने की कोशिश कर रहा था, तो क्या प्रशिक्षित पुलिसकर्मी उसे बिना गोली मारे पकड़ नहीं सकते थे? क्या पुलिस इतनी कमजोर है?
- मौका-ए-वारदात के निरीक्षण (महज़िर) के दौरान क्या गवाहों या पत्रकारों की मौजूदगी जरूरी नहीं थी?
- मौका-ए-वारदात की वीडियो रिकॉर्डिंग क्यों नहीं की गई?
*न्यायिक जांच की मांग
एसडीपीआई अध्यक्ष अब्दुल मजीद ने कहा कि कर्नाटक पुलिस कहीं “पुलिस स्टेट” में तो नहीं बदल रही, जहां अदालत के फैसले से पहले ही आरोपियों को सजा दे दी जाती है? उन्होंने इस पूरे मामले की उच्च स्तरीय न्यायिक जांच कराने की मांग की है।