
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार में प्राथमिक शिक्षा निदेशक द्वारा जारी पत्र संख्या 321, दिनांक 27 जनवरी 2025 में राज्य के प्राथमिक और मध्य विद्यालयों में शिक्षकों की संख्या का एक मानक तय किया गया है। इस मानक के अनुसार, कक्षा 1 से 5 तक के 120 छात्र संख्या वाले स्कूलों में 4 शिक्षक और 121 से 150 छात्रों की संख्या होने पर 5 शिक्षक होंगे। वहीं, कक्षा 6 से 8 तक के मध्य विद्यालयों में 105 छात्रों तक 4 शिक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है, जिनमें एक विज्ञान और गणित के लिए, एक सामाजिक विज्ञान के लिए, एक हिंदी भाषा के लिए और एक अंग्रेजी भाषा के लिए होगा।
हालांकि, इस नए निर्देश में उर्दू शिक्षकों का उल्लेख नहीं किया गया है, जिससे उर्दू भाषा से जुड़े छात्रों और शिक्षकों को बड़ा झटका लगा है। राष्ट्रीय शिक्षक संगठन, बिहार के राज्य संयोजक मोहम्मद रफी ने इस पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए भविष्य में उच्च प्राथमिक स्तर पर शिक्षकों की बहाली नाममात्र ही होगी और कक्षा 6 से 8 तक उर्दू शिक्षकों को पदोन्नति मिलना भी मुश्किल होगा।
उन्होंने प्राथमिक शिक्षा निदेशक पंकज कुमार, अपर सचिव एस. सिद्धार्थ और मुख्यमंत्री बिहार को पत्र लिखकर मांग की है कि जिस तरह से प्राथमिक विद्यालयों में हिंदी शिक्षकों की नियुक्ति का उल्लेख किया गया है, उसी तरह उर्दू शिक्षकों का भी स्पष्ट उल्लेख किया जाना चाहिए। ताकि जहां उर्दू भाषी छात्र-छात्राएं हैं, वहां अनिवार्य रूप से उर्दू शिक्षकों की बहाली हो सके।
राष्ट्रीय शिक्षक संगठन के प्रदेश अध्यक्ष जनाब ताजुल आरिफीन, प्रदेश सचिव मोहम्मद ताजुद्दीन और कोषाध्यक्ष मोहम्मद हम्माद ने भी इस निर्णय पर नाराजगी जताते हुए कहा कि इस पत्र में शिक्षकों के यूनिट वाले कॉलम में उर्दू शिक्षकों का जिक्र नहीं करना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे सरकारी स्कूलों में उर्दू शिक्षकों का अनिवार्य पद खत्म हो जाएगा और इसका सीधा प्रभाव उर्दू भाषा की शिक्षा पर पड़ेगा।
शिक्षक संगठन ने सरकार से अपील की है कि इस नियम को लागू करने से पहले इसमें संशोधन किया जाए और हिंदी के साथ-साथ उर्दू शिक्षकों का भी उल्लेख किया जाए। साथ ही, छात्र संख्या के अनुपात में हिंदी और उर्दू शिक्षकों की समान रूप से बहाली सुनिश्चित की जाए, ताकि उर्दू भाषा और शिक्षा की उपेक्षा न हो।