
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार को बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) के अध्यक्ष रवि मनु भाई परमार की नियुक्ति को लेकर नोटिस जारी किया है। यह नोटिस एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान जारी किया गया, जिसमें याचिकाकर्ता ने परमार पर भ्रष्टाचार के पुराने आरोपों का हवाला देते हुए उनकी नियुक्ति को चुनौती दी है।
*’भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद नियुक्ति’
याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट के युवा अधिवक्ता बृजेश सिंह ने अदालत में दायर अपनी याचिका में आरोप लगाया है कि रवि मनु भाई परमार की नियुक्ति पूरी तरह अवैध है। उन्होंने कहा कि बीपीएससी जैसे संवैधानिक पद पर केवल ‘बेदाग छवि’ वाले व्यक्ति को ही नियुक्त किया जाना चाहिए। याचिका में कहा गया है कि परमार पर भ्रष्टाचार और जालसाजी के आरोप लगे हुए हैं, जिससे उनकी ईमानदारी पर सवाल उठते हैं।
*70वीं प्रीलिम्स के विवाद के बीच उठा मामला
यह विवाद तब और बढ़ गया जब बीपीएससी की 70वीं प्रीलिम्स परीक्षा को लेकर अभ्यर्थियों ने सवाल उठाए। अभ्यर्थियों का कहना था कि आयोग की निष्पक्षता पर संदेह हो रहा है, क्योंकि उसके अध्यक्ष पर पहले से गंभीर आरोप लगे हुए हैं। परीक्षा के परिणाम घोषित होने के बाद भी इसे पटना हाईकोर्ट में लंबित मामले के फैसले पर निर्भर बताया गया है।
*नियुक्ति को रद्द करने की मांग
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से परमार की नियुक्ति को रद्द करने की मांग की है। उन्होंने तर्क दिया कि बिहार सरकार ने संवैधानिक पद पर नियुक्ति के लिए निर्धारित आवश्यकताओं का उल्लंघन किया है।
*सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई पर नजर
इस मामले में अब सबकी नजर बिहार सरकार के जवाब पर है। सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद रवि मनु भाई परमार को बीपीएससी अध्यक्ष क्यों नियुक्त किया गया।
*हाईकोर्ट में लंबित है परीक्षा मामला
बीपीएससी ने 70वीं प्रीलिम्स परीक्षा का परिणाम जारी करते हुए यह स्पष्ट किया है कि यह फैसला पटना हाईकोर्ट के अंतिम निर्णय पर निर्भर करेगा। यदि हाईकोर्ट का फैसला आयोग के खिलाफ आता है, तो परिणाम रद्द किए जा सकते हैं।
यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार क्या दलील पेश करती है और इस मामले में क्या निर्णय लिया जाता है।