गुजरात में दलित दूल्हे की घोड़ी चढ़कर गई बारात: पुलिस सुरक्षा के बावजूद फेंके गए पत्थर

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

गुजरात के बनासकांठा जिले के गदलवाड़ा गांव में एक ऐतिहासिक घटना घटी, जहां दलित समुदाय के वकील मुकेश पारेचा ने घोड़ी पर सवार होकर अपनी बारात निकाली। यह गांव में पहली बार था जब किसी दलित दूल्हे ने घोड़ी चढ़कर बारात निकाली।

*पुलिस सुरक्षा की मांग

मुकेश पारेचा ने 22 जनवरी को बनासकांठा जिले के पुलिस अधीक्षक को पत्र लिखकर अपनी शादी में किसी अप्रिय घटना की आशंका जताई और पुलिस सुरक्षा की मांग की। उन्होंने अपने पत्र में उल्लेख किया, “हमारे गांव में, अनुसूचित जाति के लोगों ने कभी घुड़चढ़ी नहीं की है। मैं घुड़चढ़ी करने वाला पहला व्यक्ति होऊंगा। किसी अप्रिय घटना की संभावना को देखते हुए हमें पुलिस सुरक्षा दी जाए।”

*पुलिस की कड़ी निगरानी

पुलिस ने उनकी बारात की सुरक्षा के लिए 145 पुलिसकर्मियों की तैनाती की, जिसमें एक इंस्पेक्टर और तीन सब-इंस्पेक्टर शामिल थे। बारात की निगरानी के लिए ड्रोन कैमरों का भी उपयोग किया गया। गढ़ पुलिस थाने के SHO के. एम. वसावा ने कहा, “हमने एक इंस्पेक्टर और तीन सब-इंस्पेक्टर सहित शादी के बंदोबस्त में 145 कर्मियों को तैनात किया था। बारात शांतिपूर्ण तरीके से निकाली गई।”

इस पूरे मामले पर ‘द मूकनायक’ ने विस्तार से रिपोर्ट किया है। उनकी रिपोर्ट के अनुसार, यह बारात गांव में सामाजिक समानता की दिशा में बड़ा कदम थी, लेकिन इसे भी बिना विवाद के पूरा नहीं किया जा सका।

*उत्पीड़न का प्रयास

बारात के दौरान, जब मुकेश पारेचा घोड़ी से उतरकर अपनी कार में बैठे और लगभग 500 मीटर चले, तो किसी ने उनकी गाड़ी पर पत्थर फेंका। इसके बाद SHO वसावा ने स्वयं कार चलाई और उन्हें सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया। इस मौके पर वडगाम से विधायक जिग्नेश मेवाणी भी मौजूद थे।

*राजस्थान में भी ऐसी घटना

दो हफ्ते पहले राजस्थान के अजमेर जिले के लवेरा गांव में भी एक दलित दूल्हे की बारात पुलिस सुरक्षा में निकाली गई थी। वहां भी दूल्हे के परिवार ने घोड़ी पर बारात निकालने पर ऊंची जाति के लोगों द्वारा विरोध की आशंका जताई थी, जिसके चलते प्रशासन ने लगभग 200 पुलिसकर्मियों की तैनाती की थी।

इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि आधुनिक भारत में भी जातिगत भेदभाव और उत्पीड़न की समस्याएं बनी हुई हैं। दलित समुदाय के लोगों को अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, और समाज में समानता स्थापित करने के लिए अभी भी लंबा रास्ता तय करना बाकी है।

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