
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2024 के दौरान धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ घृणा भाषणों में 74% की वृद्धि दर्ज की गई है। वॉशिंगटन डी.सी. स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ऑर्गनाइज्ड हेट (CSOH) के इंडिया हेट लैब प्रोजेक्ट द्वारा जारी इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2023 में 668 घटनाओं की तुलना में 2024 में यह संख्या बढ़कर 1,165 हो गई।
प्रमुख निष्कर्ष
-घटनाओं का वितरण: ये 1,165 घटनाएं भारत के 20 राज्यों, दो केंद्र शासित प्रदेशों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में दर्ज की गईं। औसतन, प्रतिदिन तीन घृणा भाषण की घटनाएं हुईं।
-चुनावी प्रभाव: रिपोर्ट के अनुसार, 2024 के आम चुनाव और महाराष्ट्र व झारखंड के राज्य चुनावों के दौरान घृणा भाषणों में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई। विशेष रूप से, 16 मार्च से 1 जून के बीच, जो चुनावी अभियान का समय था, कुल घटनाओं का एक-तिहाई हिस्सा दर्ज किया गया।
-प्रमुख हस्तियों की भागीदारी: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, तेलंगाना के भाजपा विधायक टी. राजा सिंह, और महाराष्ट्र के भाजपा विधायक नितेश राणे जैसे प्रमुख नेताओं के भाषणों में घृणा भाषण के तत्व पाए गए।
-संगठनों की भूमिका: विहिप-बजरंग दल, जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) से संबद्ध हैं, ने 216 (32%) घटनाओं का आयोजन किया, जिससे वे घृणा भाषण आयोजनों के शीर्ष आयोजक बने। कुल मिलाकर, 307 (46%) घटनाएं संघ परिवार से जुड़े संगठनों द्वारा आयोजित की गईं।
घृणा भाषण के सामान्य विषय
रिपोर्ट में पाया गया कि घृणा भाषणों में अक्सर मुसलमानों और ईसाइयों को “बाहरी” या “घुसपैठिए” के रूप में चित्रित किया गया। मुसलमानों को हिंदुओं के लिए खतरा बताते हुए, उन्हें बांग्लादेशी प्रवासी या रोहिंग्या शरणार्थी के रूप में संदर्भित किया गया। इसके अलावा, मुसलमानों पर हिंदू संसाधनों को चुराने या गलत तरीके से प्राप्त करने के आरोप लगाए गए।
सोशल मीडिया की भूमिका
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, विशेष रूप से फेसबुक, यूट्यूब और इंस्टाग्राम, घृणा भाषणों के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार, 219 खतरनाक भाषणों में से 164 (74.9%) फेसबुक पर, 49 (22.4%) यूट्यूब पर, और 6 (2.7%) इंस्टाग्राम पर पहली बार साझा किए गए। चिंताजनक बात यह है कि 6 फरवरी 2025 तक, फेसबुक ने केवल 3 वीडियो हटाए हैं, जबकि शेष 98.4% वीडियो अभी भी विभिन्न प्लेटफॉर्म्स पर उपलब्ध हैं।
रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि भारत में घृणा भाषणों में वृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय है, जो सामाजिक सौहार्द और अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करती है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए सख्त कानूनी उपायों, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जिम्मेदारी, और जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है।