
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
हकीम अजमल खान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे। वे एक कुशल चिकित्सक, प्रख्यात शिक्षाविद और सामाजिक सुधारक थे। उन्होंने यूनानी चिकित्सा को नया जीवन दिया और भारतीय शिक्षा तथा राजनीति में अमूल्य योगदान दिया। उनका जीवन संघर्ष, समर्पण और सेवा का प्रतीक था।
उनका जन्म 11 फरवरी 1868 को दिल्ली में हुआ। हकीम अजमल ख़ान के परिवार के सभी सदस्य यूनानी हकीम थे उन्हीं की देखरेख में चिकित्सा की पढ़ाई की और एक हकीम के रूप में विख्यात हुए।
हकीम अजमल खान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता थे। 1918 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और 1921 में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन के अध्यक्ष बने। वे अकेले ऐसे नेता थे, जो कांग्रेस, मुस्लिम लीग और खिलाफत आंदोलन के अध्यक्ष रहे। यह उनकी अद्वितीय नेतृत्व क्षमता को दर्शाता है।
उन्होंने खिलाफत आंदोलन और असहयोग आंदोलन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रेरित होकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाई और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया। उनका मानना था कि भारत की स्वतंत्रता हिंदू-मुस्लिम एकता के बिना संभव नहीं है, इसलिए उन्होंने सांप्रदायिक सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए कई प्रयास किए।
हकीम अजमल खान ने यूनानी चिकित्सा में अहम रोल अदा किया। उन्होने यूनानी चिकित्सा को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से विकसित किया। वे केवल एक चिकित्सक नहीं, बल्कि चिकित्सा के सुधारक भी थे। उन्होंने “आयुर्वेदिक और यूनानी तिब्बिया कॉलेज” की स्थापना की, जो आज भी भारत के प्रमुख चिकित्सा संस्थानों में गिना जाता है। इसके अलावा, उन्होंने “हिंदुस्तानी दवाखाना” की स्थापना की, जिससे आम जनता को सस्ती और प्रभावी दवाएं उपलब्ध हो सकीं। उनकी चिकित्सा कुशलता और जनसेवा को देखते हुए उन्हें “मसीहा-ए-हिंद”की उपाधि दी गई।
उनके प्रयासों से यूनानी चिकित्सा को वैश्विक पहचान मिली। उन्होंने पारंपरिक चिकित्सा पद्धति को आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान से जोड़ने का कार्य किया, जिससे यह अधिक प्रभावी बन सकी।
वे शिक्षा के महत्व को भी समझते थे और मानते थे कि देश की प्रगति के लिए शिक्षा सबसे आवश्यक है। वे जामिया मिलिया इस्लामियाके संस्थापक सदस्यों में से एक थे। 1920 में उन्होंने इस संस्थान को अलीगढ़ से दिल्ली स्थानांतरित करने में अहम भूमिका निभाई।
उनका उद्देश्य केवल शिक्षा प्रदान करना नहीं था, बल्कि राष्ट्र निर्माण में योगदान देने वाले जागरूक नागरिक तैयार करना था। उन्होंने जामिया मिलिया इस्लामिया को आर्थिक संकट से उबारने और इसे एक राष्ट्रीय शिक्षण संस्थान बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
29 दिसंबर 1927 को हकीम अजमल खान का निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत अमर है। उनकी याद में चिकित्सा के क्षेत्र में कई शोध कार्य किए गए हैं। उनके नाम पर “अजमलिन”और “अजमलन” जैसी दवाओं का नामकरण किया गया।
उनका जीवन यह सिखाता है कि यदि कोई व्यक्ति समर्पण, मेहनत और ईमानदारी से कार्य करे, तो वह समाज और राष्ट्र की उन्नति में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।