
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक 17 वर्षीय दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात की अनुमति देते हुए कहा है कि कानून यौन शोषण की शिकार महिलाओं को गर्भपात का अधिकार प्रदान करता है। न्यायमूर्ति महेश चंद्र त्रिपाठी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार की खंडपीठ ने चिकित्सीय गर्भपात अधिनियम (MTP) की धारा 3(2) का हवाला देते हुए यह निर्णय दिया।
मामले के अनुसार, आरोपी ने पीड़िता को बहला-फुसलाकर भगाया और उसके साथ कई बार दुष्कर्म किया। बाद में, जब पीड़िता के पेट में दर्द हुआ, तो चिकित्सा जांच में वह साढ़े तीन महीने की गर्भवती पाई गई। चूंकि गर्भावस्था 19 सप्ताह की हो चुकी थी, पीड़िता के वकील ने तर्क दिया कि यह स्थिति उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है, और वह नाबालिग होने के कारण बच्चे की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहती।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यौन उत्पीड़न के मामले में किसी महिला को गर्भपात कराने से मना करना और उसे मातृत्व की जिम्मेदारी से बांधना, उसके सम्मान के साथ जीवन जीने के मानवाधिकार से वंचित करने के समान है।” अदालत ने यह भी कहा कि पीड़िता को दुष्कर्म करने वाले व्यक्ति के बच्चे की मां बनने के लिए बाध्य करना उसकी मुश्किलें बढ़ाएगा।
इस निर्णय के साथ, अदालत ने पीड़िता को चिकित्सकीय रूप से गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी, जो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण माना गया।