
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा श्रीनगर में प्रतिबंधित संगठन से जुड़े होने का आरोप लगाकर 668 इस्लामिक पुस्तकें जब्त करने की कार्रवाई ने एक बड़े विवाद को जन्म दिया है। जब्त की गई ये पुस्तकें इस्लामी विद्वान मौलाना अबुल आला मौदूदी की थीं, जिन्हें दुनियाभर में इस्लामी अध्ययन के लिए पढ़ा जाता है। इस कार्रवाई के खिलाफ विरोध शुरू हो गया है, और नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता,सांसद आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी** ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और इस्लामिक शिक्षा पर सीधा हमला करार दिया है।
*धार्मिक शिक्षा पर हमला?
पुलिस का कहना है कि जब्त की गई पुस्तकें “प्रतिबंधित संगठन की विचारधारा का प्रचार” कर रही थीं। हालांकि, अधिकारियों ने यह स्पष्ट नहीं किया कि इनमें ऐसा क्या था जिसे राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा माना गया।
सूत्रों के मुताबिक, ये किताबें मौलाना मौदूदी द्वारा लिखी गई थीं, जो इस्लामिक दर्शन और समाजशास्त्र के एक प्रसिद्ध विद्वान थे। मौदूदी की किताबें दुनियाभर के कई इस्लामिक शिक्षण संस्थानों में पढ़ाई जाती हैं। ऐसे में इन पुस्तकों को जब्त करना एक बड़ा सवाल खड़ा करता है – क्या अब इस्लामी शिक्षा भी संदेह के घेरे में आ गई है?
*आगा रुहुल्ला का तीखा सवाल
इस कार्रवाई के खिलाफ जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक और धार्मिक नेताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। नेशनल कॉन्फ्रेंस के वरिष्ठ नेता,सांसद आगा सैयद रुहुल्ला मेहदी ने सरकार पर निशाना साधते हुए कहा “पहले जामा मस्जिद में धार्मिक आयोजनों पर रोक लगाई गई, और अब हमारी धार्मिक किताबों को निशाना बनाया जा रहा है। क्या अब राज्य यह तय करेगा कि कश्मीरी क्या पढ़ सकते हैं और क्या नहीं?”
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक सदस्य ने कहा कि यह कार्रवाई न केवल धार्मिक समुदाय को निशाना बनाती है, बल्कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का भी गंभीर उल्लंघन है।
*क्या यह मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने की साजिश?
विश्लेषकों का मानना है कि सरकार धार्मिक शिक्षा पर अंकुश लगाने की कोशिश कर रही है। यदि किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाया गया है, तो क्या इसका यह अर्थ है कि उस संगठन से जुड़े किसी भी व्यक्ति की लिखी किताबों को पढ़ना भी अपराध हो गया?
इस्लामी शिक्षाविदों का मानना है कि यह कार्रवाई धार्मिक अध्ययन और मुस्लिम शिक्षा को सीमित करने की एक सोची-समझी योजना का हिस्सा हो सकती है। कई विशेषज्ञों का कहना है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अकादमिक अध्ययन पर एक बड़ा हमला है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है।
यह मामला अब सिर्फ श्रीनगर तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश में धार्मिक स्वतंत्रता और शैक्षिक स्वतंत्रता का बड़ा मुद्दा बन गया है। अगर इस्लामी अध्ययन की किताबों को जब्त किया जा सकता है, तो क्या कल अन्य धार्मिक और ऐतिहासिक साहित्य को भी निशाना बनाया जाएगा? यह सवाल अब पूरे भारत में गूंज रहा है।