
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
गुजरात के बनासकांठा जिले के कल्याणपुरा, वाव तालुका में एक शिव मंदिर उत्सव के दौरान दलित समुदाय को प्रवेश से वंचित करने का मामला सामने आया है। इस भेदभावपूर्ण रवैये पर राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग (NCSC) ने जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक को नोटिस जारी कर तीन दिनों के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
*क्या है पूरा मामला?
यह घटना 8 फरवरी को संपन्न हुए शिव मंदिर प्राण प्रतिष्ठा महोत्सव से जुड़ी है, जहां दलित समुदाय के लोगों को कार्यक्रम में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गई। स्थानीय हिंदू संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा विरोध दर्ज कराने के बावजूद, मंदिर प्रशासन ने इस भेदभाव को खत्म करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
इस मामले का खुलासा 16 जनवरी को गांधीनगर के इंद्रजीतसिंह सोधा ने किया था, जिसके बाद 25 जनवरी को सामाजिक कार्यकर्ताओं इंद्रवदन बारोट और शंकरभाई पटेल ने कल्याणपुरा गांव का दौरा कर मंदिर समिति के प्रमुख भलाभाई दैया से मुलाकात की। दैया ने समिति से परामर्श करने का आश्वासन दिया, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला।
*प्रशासन और सामाजिक संगठनों की प्रतिक्रिया
-1 फरवरी: अनुसूचित जाति नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे पर चर्चा की, जिसमें रघुवीर सिंह जडेजा भी शामिल थे।
-4 फरवरी: स्थानीय थाना अधिकारी (PSI) ने आयोजन समिति के साथ बैठक की, लेकिन कोई हल नहीं निकला।
-5-6 फरवरी: हिंदू युवा संगठन-भारत ने जिला प्रशासन को पत्र लिखकर इस भेदभाव पर कार्रवाई की मांग की।
-7 फरवरी: डीवाईएसपी समत वरात्रिया ने मध्यस्थता करने की कोशिश की, लेकिन मंदिर प्रशासन अपने फैसले पर अड़ा रहा। स्थिति को देखते हुए पुलिसबल की तैनाती की गई।
-9 फरवरी: इंद्रवदन बारोट ने मुख्यमंत्री, सामाजिक न्याय मंत्री और एनसीएससी को ज्ञापन भेजकर इस अन्याय के खिलाफ कार्रवाई की मांग की।
*एनसीएससी ने लिया संज्ञान
दलित समुदाय की लगातार उपेक्षा और न्याय की मांग को देखते हुए, एनसीएससी ने जिला प्रशासन को तीन दिनों के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। आयोग ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार की घटनाएं संविधान के समानता और बंधुत्व के सिद्धांतों का उल्लंघन करती हैं और इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
*न्याय की मांग जारी
हालांकि मंदिर उत्सव 8 फरवरी को समाप्त हो गया, लेकिन दलित समुदाय और सामाजिक संगठनों ने न्याय की मांग जारी रखी है। यह मामला गुजरात में जातिगत भेदभाव के खिलाफ लड़ाई का प्रतीक बन गया है और प्रशासन की निष्क्रियता पर सवाल उठा रहा है।
*क्या गुजरात सरकार और प्रशासन इस मामले में दोषियों पर कार्रवाई करेगा? या फिर यह भी एक और अनसुनी घटना बनकर रह जाएगी?