
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
कंबाइंड मूवमेंट फॉर कॉन्स्टिट्यूशनल राइट्स ऑफ माइनॉरिटीज (CMCRM) द्वारा इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर, नई दिल्ली में “मलेरकोटला भाईचारा उत्सव” का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में मुसलमानों और सिखों के सामाजिक एकता और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा पर जोर दिया गया। इस अवसर पर कई प्रतिष्ठित सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक नेताओं ने भाग लिया और अल्पसंख्यकों के अधिकारों को लेकर अपने विचार साझा किए।
*एकता की ज़रूरत पर बल
कार्यक्रम की अध्यक्षता ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष और पूर्व राज्यसभा सांसद मौलाना उबैदुल्लाह खान आज़मी ने की। उन्होंने कहा, “गुलाम बनाने वालों ने हमें बांटने से पहले हम एक थे। उन्होंने ‘बांटो और राज करो’ की नीति अपनाई और आज उनके काले उत्तराधिकारी उसी नीति को जारी रखे हुए हैं। हमें पहले से भी ज्यादा मज़बूती से इसका मुकाबला करना होगा।”
तख्त श्री दमदमा साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी केवल सिंह ने कहा, “संविधान सभी भारतीय नागरिकों को समान अधिकार देता है, लेकिन वास्तविकता में यह सिद्धांत लुप्त होता जा रहा है। 75 साल बाद भी हम खुद को धोखा दे रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा कि “देश की आज़ादी के लिए सिख और मुसलमान दोनों ने बलिदान दिए और आज भी हम किसानों के हक के लिए संघर्ष कर रहे हैं।”
*मलेरकोटला: भाईचारे की मिसाल
कार्यक्रम में एडवोकेट शरफुद्दीन अहमद ने कहा कि “भारत में मुसलमानों और सिखों के खिलाफ भेदभाव बढ़ रहा है। हमें एकजुट होकर संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए आगे बढ़ना होगा।” उन्होंने कहा, “मलेरकोटला का इतिहास हमें सिखाता है कि भाईचारे और एकता के ज़रिए हम किसी भी षड्यंत्र को नाकाम कर सकते हैं। हमें इस मॉडल को पूरे देश में लागू करने की कोशिश करनी चाहिए।”
दिल्ली सिख गुरुद्वारा मैनेजमेंट कमेटी के पूर्व अध्यक्ष सरदार परमजीत सिंह सरना ने कहा, “अगर हम एकजुट नहीं हुए, तो हमारी दोनों समुदायों को गंभीर खतरा होगा। सरकार हमारी एकता में बाधा डालने की कोशिश करेगी, लेकिन देश की अखंडता के लिए हमें हाथ मिलाना होगा।”
*मलेरकोटला: ऐतिहासिक विरासत
मलेरकोटला के ऐतिहासिक संदर्भ को याद करते हुए, कश्मीर के मीरवायज़ मौलाना पारे हसन अफज़ल फिरदौसी ने बताया कि “कैसे मलेरकोटला के नवाब शेर मोहम्मद खान ने गुरु गोविंद सिंह के बेटों की शहादत के खिलाफ आवाज उठाई और अत्याचार के खिलाफ खड़े हुए। उनका यह बलिदान सिख-मुस्लिम भाईचारे की एक मज़बूत नींव बना।”
*वक्ताओं के विचार
इस अवसर पर कई अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने भी अपने विचार रखे, जिनमें शामिल थे:
-अस्सलम शेर खान (पूर्व केंद्रीय मंत्री) – “भारत में अगर कोई वास्तविक शक्ति है, तो वह सिख और मुस्लिम समुदायों में है। इतिहास हमारे योगदान का गवाह है।”
-पर्मपाल सिंह सबरा (संयोजक, अलायंस ऑफ सिंह ऑर्गनाइज़ेशन) – “सिख-मुस्लिम एकता ही देश में समानता और न्याय की गारंटी दे सकती है।”
-परमजीत सिंह गाज़ी (चीफ एडिटर, सिख सियासत) – “2014 के बाद भारत की राजनीतिक स्थिति में जो बदलाव आया, उसने अल्पसंख्यकों के सामने नई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं, जिनसे निपटने के लिए एकता ज़रूरी है।”
-बीबी रंजीत कौर (सदस्य, दिल्ली गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी) – “हम हमेशा अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों के समर्थन में खड़े रहेंगे।”
*सामूहिक संघर्ष की आवश्यकता
कार्यक्रम के संयुक्त संयोजक एडवोकेट मनोज सिंह दहान ने कहा कि “मुसलमानों और सिखों के बीच स्थापित हो रही यह सामाजिक एकता आगे चलकर सभी अल्पसंख्यकों और कमजोर तबकों के लिए समानता और न्याय के नए रास्ते खोल सकती है।”
यह कार्यक्रम न केवल एक ऐतिहासिक स्मरण था बल्कि मुसलमानों और सिखों के बीच एकता को और मजबूत करने का एक व्यावहारिक कदम भी था। वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए सभी अल्पसंख्यकों को मिलकर एक सशक्त आंदोलन की रूपरेखा बनानी होगी, जिससे भारत के लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा की जा सके।