इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में आदिवासी अधिकारों के लिए सक्रिय ‘मूलनिवासी बचाओ मंच’ (एमबीएम) के संस्थापक सदस्यों में से एक, रघु मिड़ियामी को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने 27 फरवरी को गिरफ़्तार किया है। उन पर प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) से कथित संबंध होने का आरोप है।
पृष्ठभूमि: सिलगेर आंदोलन और मिड़ियामी की भूमिका
रघु मिड़ियामी ने 2021 में सिलगेर गांव में स्थापित अर्धसैनिक बलों के शिविर के विरोध में प्रमुख भूमिका निभाई थी। 13 मई 2021 को स्थापित इस शिविर के विरोध में 17 मई को हुए प्रदर्शन में पुलिस फायरिंग से तीन ग्रामीणों की मौत हुई थी, जिसके बाद से यह आंदोलन जारी है। मिड़ियामी ने इस आंदोलन का नेतृत्व करते हुए सरकार की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी।
एनआईए की कार्रवाई और आरोप
एनआईए ने मिड़ियामी को दो साल पुराने एक मामले में गिरफ़्तार किया है, जिसमें पहले ही दो व्यक्तियों को प्रतिबंधित 2,000 रुपये के नोटों और माओवादी साहित्य के साथ गिरफ़्तार किया गया था। एनआईए का दावा है कि मिड़ियामी सीपीआई (माओवादी) के लिए धन संग्रहण और वितरण में शामिल थे। हालांकि, मिड़ियामी के वकील शालिनी गेरा का कहना है कि एफआईआर में उनकी कोई विशेष भूमिका नहीं बताई गई है।
एमबीएम पर प्रतिबंध और प्रतिक्रिया
पिछले साल अक्टूबर में छत्तीसगढ़ सरकार ने एमबीएम को प्रतिबंधित संगठन घोषित किया था, आरोप लगाया कि यह माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में सरकारी पहलों का विरोध कर रहा है। मानवाधिकार संगठन पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने मिड़ियामी की गिरफ़्तारी की निंदा करते हुए कहा कि एमबीएम पिछले तीन वर्षों से बस्तर में शांतिपूर्ण धरना प्रदर्शनों का नेतृत्व कर रहा है।
यह गिरफ़्तारी बस्तर क्षेत्र में आदिवासी अधिकारों और सरकारी नीतियों के बीच बढ़ते तनाव को दर्शाती है। अब देखना होगा कि न्यायिक प्रक्रिया में मिड़ियामी के खिलाफ लगाए गए आरोप कितने ठोस साबित होते हैं।