इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार के बोधगया स्थित महाबोधि महाविहार मंदिर के प्रबंधन को बौद्ध समुदाय को सौंपने की मांग को लेकर गुजरात और लद्दाख में आंदोलन तेज हो गया है। गुजरात के विभिन्न जिलों में स्वयम् सैनिक दल (SSD) के स्वयंसेवकों ने सड़कों पर उतरकर विरोध प्रदर्शन किया, जबकि लद्दाख में बौद्ध समुदाय ने मंदिर के प्रबंधन में बदलाव की मांग को लेकर अपनी आवाज बुलंद की है।
गुजरात में SSD का विरोध प्रदर्शन
गुजरात के पोरबंदर, भरूच, वाव-थराद, गांधीनगर, बड़ौदा, अमरेली, पाटन समेत विभिन्न जिलों में SSD के स्वयंसेवकों ने जिला कलेक्टरों के माध्यम से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गुजरात के मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपे हैं। इन ज्ञापनों में मांग की गई है कि महाबोधि महाविहार मंदिर का प्रबंधन गैर-बौद्धों के नियंत्रण से मुक्त कर बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए। आंदोलनकारियों का कहना है कि मंदिर बौद्ध धर्म की पवित्र धरोहर है और इसका प्रबंधन बौद्धों के हाथों में होना चाहिए।
लद्दाख में बौद्ध समुदाय की मांग
लद्दाख में भी बौद्ध समुदाय ने महाबोधि महाविहार मंदिर के प्रबंधन को लेकर अपनी चिंताओं को व्यक्त किया है। उन्होंने मांग की है कि मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्ध समुदाय को सौंपा जाए, ताकि मंदिर की पवित्रता और परंपराओं का संरक्षण हो सके। बौद्ध नेताओं का कहना है कि वे इस मुद्दे पर सरकार से तत्काल कार्रवाई की अपेक्षा रखते हैं।
आंदोलन का विस्तार और समर्थन
महाबोधि महाविहार मुक्ति आंदोलन को देशभर में समर्थन मिल रहा है। भीम आर्मी सहित कई संगठनों ने बोधगया में विशाल धरना प्रदर्शन किया है, जिसमें मंदिर का प्रबंधन बौद्ध समुदाय को सौंपने और 1949 के बोधगया टेंपल एक्ट को निरस्त करने की मांग की गई है।
आंदोलन की पृष्ठभूमि
महाबोधि महाविहार मंदिर वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया था, और यह बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। हालांकि, 1949 के बोधगया टेंपल एक्ट के तहत, मंदिर का प्रबंधन एक नौ सदस्यीय समिति को सौंपा गया है, जिसमें पांच गैर-बौद्ध और चार बौद्ध सदस्य शामिल हैं। बौद्ध समुदाय का आरोप है कि इस व्यवस्था के कारण मंदिर की पवित्रता और परंपराओं को नुकसान पहुंच रहा है, और वे चाहते हैं कि मंदिर का प्रबंधन पूरी तरह से बौद्धों के हाथों में हो।
गुजरात और लद्दाख में बौद्ध समुदाय के इन संयुक्त प्रदर्शनों से यह स्पष्ट है कि महाबोधि महाविहार मंदिर के प्रबंधन को लेकर उनकी मांगें गंभीर हैं। अब देखना होगा कि सरकार इन मांगों पर क्या कदम उठाती है।