इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तर प्रदेश में 44 वर्ष पूर्व हुए दिहुली नरसंहार मामले में विशेष डकैती अदालत ने तीन आरोपियों को दोषी करार दिया है। 18 नवंबर 1981 को फिरोजाबाद जिले के जसराना थाना क्षेत्र के दिहुली गांव में 24 दलितों की निर्मम हत्या की गई थी। मामले में सजा का ऐलान 18 मार्च को होगा।
घटना का पृष्ठभूमि
1981 में दिहुली गांव में राधेश्याम (राधे) और संतोष के नेतृत्व में एक गिरोह ने पुलिस मुठभेड़ के बाद गांव के कुछ लोगों को मुखबिर समझकर बदला लेने के उद्देश्य से हमला किया था। इस हमले में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों सहित 24 दलितों की हत्या कर दी गई थी।
न्याय की लंबी लड़ाई
मामले में कुल 17 आरोपियों में से 13 की मृत्यु हो चुकी है, जबकि एक आरोपी अभी भी फरार है। तीन जीवित आरोपियों में से एक पहले से ही जेल में है, जबकि दो अन्य को अदालत के आदेश पर हिरासत में लिया गया है।
पीड़ित परिवारों की प्रतिक्रिया
दोषियों के खिलाफ फैसले के बाद पीड़ित परिवारों ने संतोष व्यक्त किया है। उनका कहना है कि इतने वर्षों के बाद न्याय मिलना उनके लिए राहत की बात है, लेकिन इस लंबे इंतजार ने उनके घावों को और गहरा कर दिया है।
आगामी कार्रवाई
अदालत ने सजा के ऐलान के लिए 18 मार्च की तारीख निर्धारित की है। इस फैसले से यह संदेश जाता है कि न्याय में देरी हो सकती है, लेकिन अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वालों को अंततः न्याय मिलता है।
यह मामला भारतीय न्याय प्रणाली के समक्ष लंबित मामलों की धीमी गति और पीड़ितों के लिए त्वरित न्याय की आवश्यकता को उजागर करता है। 44 वर्षों के बाद आया यह फैसला न्याय की जीत है, लेकिन यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या इतने लंबे इंतजार के बाद मिला न्याय वास्तव में प्रभावी है?