इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
आज बिहार दिवस है यह केवल एक उत्सव का दिन नहीं है, बल्कि यह आत्ममंथन और संकल्प का अवसर है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारा अतीत कितना गौरवशाली था और भविष्य को बेहतर बनाने के लिए हमें क्या कदम उठाने चाहिए। आज ही के दिन 1912 को बिहार ने बंगाल से अलग होकर एक स्वतंत्र राज्य का दर्जा प्राप्त किया था, और तभी से यह दिन बिहार की अस्मिता और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक बन गया।
बिहार की भूमि प्राचीन काल से ही ज्ञान, राजनीति, धर्म और संस्कृति की जननी रही है। नालंदा और विक्रमशिला जैसे विश्वविद्यालयों से लेकर गौतम बुद्ध, महावीर, चाणक्य, आर्यभट्ट और सम्राट अशोक तक, बिहार की धरती ने हमेशा से भारत और दुनिया को मार्गदर्शन दिया है। लेकिन क्या हम केवल अतीत की गौरवगाथा गाकर अपने वर्तमान और भविष्य की चुनौतियों से मुंह मोड़ सकते हैं? बिहार को आगे बढ़ाने के लिए हमें आत्ममंथन करना होगा और ठोस योजनाओं पर काम करना होगा।
बिहार का इतिहास केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए प्रेरणा का स्रोत है। यह राज्य बौद्ध और जैन धर्म का उद्गम स्थल रहा है। नालंदा विश्वविद्यालय, जो दुनिया की सबसे प्राचीन और प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं में से एक था, बिहार में ही स्थित था। सम्राट अशोक ने यहीं से अहिंसा और धर्म के सिद्धांतों का प्रचार किया। चाणक्य की नीतियां और आर्यभट्ट की गणितीय खोजें का केंद्र भी बिहार ही रहा है।
बिहार की सांस्कृतिक धरोहर भी समृद्ध रही है। यह क्षेत्र मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका और सुरजापुरी जैसी भाषाओं का घर है, जो इसकी विविधता को दर्शाती हैं। छठ पूजा, सोनपुर मेला, मधुबनी पेंटिंग और लोकसंगीत जैसी परंपराएं बिहार की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करती हैं।
इन सब के बावजूद आज भी बिहार कई सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है। नीति आयोग के आंकड़ों के अनुसार बिहार में लगभग 33.74% लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, जो राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है। बिहार की साक्षरता दर मात्र 61.8% है, जो राष्ट्रीय औसत (77.7%) से काफी नीचे है। बिहार की बेरोजगारी दर 10.2% है, जो राष्ट्रीय औसत (7.6%) से अधिक है। हर साल लाखों बिहारी रोजगार और बेहतर जीवन की तलाश में दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं।
ये आंकड़े केवल संख्याएं नहीं हैं, बल्कि बिहार की मौजूदा स्थिति और इसकी जनता की पीड़ा की कहानी कहते हैं। यह स्पष्ट संकेत है कि हमें अब केवल अतीत के गौरव पर नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य को संवारने पर ध्यान देना होगा।
बिहार के विकास में सबसे बड़ी बाधा शिक्षा और रोजगार की कमी है। प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में सुधार के प्रयास हुए हैं, लेकिन उच्च शिक्षा में अभी भी गुणवत्तापूर्ण संस्थानों की भारी कमी है। इसके कारण राज्य के युवा उच्च शिक्षा और रोजगार के लिए अन्य राज्यों की ओर रुख करने को मजबूर हैं।
बिहार की राजनीति लंबे समय से जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों में उलझी रही है। हाल के वर्षों में सड़क, बिजली, स्वास्थ्य और कृषि क्षेत्र में कुछ सुधार हुए हैं, लेकिन अभी भी प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता की कमी बनी हुई है।
बिहार को दीर्घकालिक विकास योजनाओं की जरूरत है। सरकारी योजनाओं का लाभ आम लोगों तक नहीं पहुंच पाता। अपराध दर अभी भी एक बड़ी चिंता का विषय है। यदि बिहार को एक विकसित राज्य बनाना है, तो पारदर्शी प्रशासन और उत्तरदायी राजनीति की जरूरत है।
बिहार की सामाजिक संरचना जातिगत और पारंपरिक ढांचे में बंधी हुई है। हालांकि, शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से इस स्थिति में सुधार हो रहा है, लेकिन अभी भी बाल विवाह, दहेज प्रथा, महिला उत्पीड़न, नशाखोरी और जातिगत भेदभाव जैसी समस्याएं बनी हुई हैं।
महिलाओं की शिक्षा और सशक्तिकरण पर ध्यान देने से सामाजिक ढांचे को मजबूत किया जा सकता है। इसके अलावा, बिहार की सांस्कृतिक पहचान को पुनर्जीवित करना भी जरूरी है। लोकगीतों, पारंपरिक कलाओं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों को बढ़ावा देकर बिहार की सांस्कृतिक धरोहर को संजोया जा सकता है।
बिहार की 75% से अधिक आबादी कृषि पर निर्भर है। लेकिन बाढ़ और सूखा जैसी प्राकृतिक आपदाएं किसानों को आर्थिक संकट में डाल देती हैं। उन्नत तकनीकों की कमी के कारण कृषि उत्पादन कम रहता है साथ ही बाजार तक पहुंच न होने के कारण किसान अपने उत्पादों का सही मूल्य नहीं प्राप्त कर पाते।
इस समस्या के समाधान के लिए किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों से जोड़ने, सहकारी खेती को बढ़ावा देने और सरकारी योजनाओं को प्रभावी तरीके से लागू करने की जरूरत है।
बिहार के गौरवशाली इतिहास को लौटाने और विकसित बनाने के लिए सबसे पहले उच्च शिक्षा के लिए गुणवत्तापूर्ण संस्थानों की स्थापना ज़रूरी है। स्टार्टअप्स और कृषि आधारित व्यवसायों को बढ़ावा देना होगाl
प्रशासन में पारदर्शिता लानी होगी ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाया जा सके। बिहार की पारंपरिक कलाओं और लोकसंस्कृति को बढ़ावा देना होगा।
महिला सशक्तिकरण, जातिगत भेदभाव और नशाखोरी के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने होंगे साथ ही किसानों को उन्नत तकनीकों और बाजार से जोड़ा जाना होगा।
बिहार दिवस हमें याद दिलाता है कि हमारा अतीत गौरवशाली रहा है, लेकिन हमें अपने वर्तमान को सुधारने और भविष्य को बेहतर बनाने के लिए सामूहिक प्रयास करने होंगे। यह दिन हमें संकल्प लेने का अवसर देता है कि हम बिहार को एक विकसित, आत्मनिर्भर और समृद्ध राज्य बनाएंगे।
बिहार की यात्रा अभी पूरी नहीं हुई है। यह राज्य अपनी संभावनाओं को पूरा करने के लिए तैयार है, और यह हम सभी का कर्तव्य है कि हम इसके विकास में योगदान दें। बिहार दिवस पर आइए, हम सब मिलकर एक नए बिहार के निर्माण का संकल्प लें!
(ये स्टोरी मुहम्मद फैज़ान ने तैयार किया है)