इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
रेलवे बोर्ड ने एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों के आधार पर यह स्पष्ट कर दिया है कि ड्यूटी के दौरान लोको पायलटों को भोजन और शौच के लिए विश्राम देने की मांग “परिचालन की दृष्टि से संभव नहीं” है। यह निर्णय लंबे समय से लंबित मांगों को खारिज करता है, जिससे लोको पायलटों के संघों में नाराज़गी देखी जा रही है।
संघों की तीखी प्रतिक्रिया
ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन (AILRSA) ने इस निर्णय को “ग़ैर-व्यावहारिक और अमानवीय” बताया है। संघ के महासचिव के. सी. जेम्स ने रेलवे बोर्ड के सीईओ को पत्र लिखकर कहा कि समिति ने स्पीड लिमिट बढ़ाकर 130 किमी/घंटा करने से पायलटों पर पड़ने वाले मानसिक और शारीरिक दबाव का सही मूल्यांकन नहीं किया है।
महिला पायलटों की स्थिति और कठिनाई
AILRSA के केंद्रीय संगठन सचिव वी. बालाचंद्रन के अनुसार, कई सुपरफास्ट ट्रेनें बिना रुके 6–7 घंटे चलती हैं। उदाहरण के तौर पर विजयवाड़ा से चेन्नई तक चलने वाली तमिलनाडु एक्सप्रेस रात 11:10 से सुबह 6:35 तक बिना ठहराव के चलती है। इस दौरान लोको पायलटों को न तो भोजन करने का समय मिलता है और न ही शौचालय जाने का। महिला पायलटों के लिए यह स्थिति और भी चुनौतीपूर्ण है।
निजता का उल्लंघन?
संघों ने लोको केबिन में लगाए जा रहे क्रू वॉयस और वीडियो रिकॉर्डिंग सिस्टम (CVVRS) का भी विरोध किया है। उनका कहना है कि इससे क्रू की निजता का उल्लंघन होता है। हालांकि, रेलवे बोर्ड का तर्क है कि यह प्रणाली सुरक्षा जांच और विश्लेषण में मदद करेगी और इससे कर्मचारियों पर कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।
समिति की अन्य सिफारिशें
समिति ने हाई-स्पीड ट्रेनों की परिभाषा में बदलाव कर उसे 110 किमी/घंटा से बढ़ाकर 130 किमी/घंटा करने की सिफारिश की है। साथ ही कुछ परिस्थितियों में सहायक लोको पायलट की तैनाती की अनुमति भी दी है।