इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
सुप्रीम कोर्ट ने उच्च शिक्षण संस्थानों में जाति आधारित भेदभाव और छात्रों की आत्महत्याओं की बढ़ती घटनाओं पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को उसके प्रस्तावित “समानता को बढ़ावा देने संबंधी विनियम, 2025” को अंतिम रूप देने और अधिसूचित करने की अनुमति दे दी है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश रोहित वेमुला और पायल तडवी की माताओं द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने दलील दी कि पिछले 14 महीनों में देशभर में 18 छात्रों ने जातीय भेदभाव के कारण आत्महत्या की है, जो तत्काल हस्तक्षेप की मांग करता है।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि UGC के नए नियम राष्ट्रीय टास्क फोर्स (NTF) की सिफारिशों के अतिरिक्त कार्य करेंगे। यह टास्क फोर्स उच्च शिक्षण संस्थानों में आत्महत्याओं की जांच और भेदभाव की प्रकृति को समझने के लिए बनाई गई है।
UGC ने अदालत को बताया कि उसने ड्राफ्ट रेगुलेशन को सार्वजनिक किया है और विभिन्न हितधारकों से सुझाव प्राप्त किए हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि UGC इन सुझावों पर विचार करे और टास्क फोर्स की सिफारिशों के अनुसार आवश्यक संशोधन करे।
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने यह भी चिंता जताई कि प्रस्तावित नियमों में रैगिंग, यौन उत्पीड़न और जातीय भेदभाव जैसे मुद्दों को एक साथ जोड़ा गया है, जिससे विशेष समस्याओं को अलग-अलग संबोधित करना मुश्किल हो सकता है। उन्होंने आग्रह किया कि इन मुद्दों के लिए अलग और स्पष्ट दिशानिर्देश बनाए जाने चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता और अन्य संबंधित पक्ष टास्क फोर्स के समक्ष अपने सुझाव प्रस्तुत कर सकते हैं और उन पर विचार किया जाएगा।
यह निर्णय उच्च शिक्षण संस्थानों में जातीय भेदभाव को समाप्त करने और छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। UGC के नए नियमों से उम्मीद है कि शैक्षणिक परिसरों में समानता और समावेशिता को बढ़ावा मिलेगा।