अब्दुल रकीब नोमानी

दिल्ली विधानसभा चुनाव में ना सिर्फ आम आदमी पार्टी को करारी हार मिली, बल्कि पार्टी के शीर्ष नेता अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन, सौरभ भारद्वाज और दुर्गेश पाठक भी अपनी सीट को बचाने में नाकाम रहे। जिसकी कल्पना शायद ही आम आदमी पार्टी ने की हो। दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी 48 सीट जीतने के साथ 27 साल बाद सत्ता में वापसी करने में क़ामयाब रही। जबकि बीजेपी 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शिखर पर होने के बाद भी लगातार दिल्ली चुनाव हार रही थी। इस हार के साथ ही चर्चा शुरू हो गई है कि आम आदमी पार्टी के लिए आगे की राह अब आसान नहीं होने वाली है। दिल्ली चुनाव रिजल्ट का पूरा प्रभाव आप की राजनीति के साथ पंजाब की राजनीति पर भी देखने को मिलेगी, जहां पर अभी आम आदमी पार्टी की सरकार है। आइए, विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं कि आम आदमी पार्टी की डगर अब आसान क्यों नहीं होने वाली है?
*(1) दिल्ली में सत्ता से बेदखली का असर।
आम आदमी पार्टी की सबसे बड़ी ताकत दिल्ली थी, जहां से इन्होंने 2012 में अपने राजनीति की शुरुआत की, जिसमें थोड़े समय में ही वो 2013 में 28 सीट लाकर दिल्ली में कॉंग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब रही थी। फिर इन्होंने 2015 और 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अकेले ऐतिहासिक जीत हासिल की थी। अब 2025 के दिल्ली विधानसभा चुनाव हार ने आम आदमी पार्टी को एक तरह से बड़ी मुश्किल में डाल दिया है। क्योंकि अरविंद केजरीवाल दिल्ली मॉडल का ही हवाला देकर गोवा, गुजरात और जम्मू कश्मीर जैसे दूसरे राज्यों में जनाधार हासिल करने में क़ामयाब हो रहे थे। इसी मॉडल के सहारे अरविंद केजरीवाल पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव में कॉंग्रेस से सरकार छीनने में क़ामयाब रही थी। ऐसे में दिल्ली हार के बाद इसका पूरा असर आम आदमी पार्टी के राजनीति पर देखने को मिलेगा। क्योंकि पार्टी का सबसे बड़ी किला जिनका उदाहरण देकर अरविंद केजरीवाल हिन्दुस्तान की राजनीति में पैठ बना रही थी, इनको आम आदमी पार्टी अब खो चुकी है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल के लिए आगे की राजनीति आसान नहीं होगी।
*(2)पंजाब की सरकार को बचाए रखने की चुनौती।
दिल्ली चुनाव परिणाम के साथ ही पंजाब की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। इसका व्यापक असर पंजाब की राजनीति में देखने को मिल रहा है। कांग्रेस और बीजेपी की तरफ से कहा जा रहा है कि भगवंत मान की सरकार ज्यादा दिन चलने वाली नहीं है। भगवंत मान की सरकार पर पहले से दिल्ली से सरकार चलने के आरोप लगते रहे हैं। वहीं नेता विपक्ष और पंजाब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रताप सिंह बाजवा ने मुख्यमंत्री भगवंत मान पर गृह मंत्रालय से संपर्क में होने का आरोप लगाया। साथ ही उन्होंने दावा किया कि आम आदमी पार्टी के 30 विधायक उनके संपर्क में हैं। इन सबके बीच आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान समेत सभी मंत्री और विधायकों को 11 फरवरी को दिल्ली बैठक के लिए बुलाया है। पंजाब में मचे हलचल के बीच आम आदमी पार्टी का कहना है कि पंजाब की आप सरकार पांच साल तक चलेगी। लेकिन दावों के बीच अरविंद केजरीवाल के सामने पंजाब सरकार को एकजुट बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि अब आम आदमी पार्टी के पास सिर्फ पंजाब की सत्ता बची हुई है, जहां 2027 में उन्हें बड़ी परीक्षा देनी होगी। पंजाब में कांग्रेस भी अब पूरी तरह से आक्रामक हो गई है। कांग्रेस की पंजाब इकाई चाहती थी कि दिल्ली चुनाव में आप और कांग्रेस के बीच कोई गठबंधन न हो, जिस पर आलाकमान ने सहमति भी जताई। पंजाब कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी नेतृत्व को समझाने में सफलता पाई कि उनका सबसे बड़ा प्रतिद्वंदी अब बीजेपी नहीं, बल्कि आम आदमी पार्टी है। जिसने पहले दिल्ली और फिर पंजाब में कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया। इसी वजह से दिल्ली चुनाव में कांग्रेस पूरी आक्रामकता के साथ आप के खिलाफ उतरी। अब पंजाब कांग्रेस इस हार को अपने लिए फायदे के रूप में देख रही है, क्योंकि उनका मानना है कि इससे आप पार्टी के बिखरने का खतरा बढ़ गया है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल के सामने पंजाब सरकार को एकजुट रखने और 2027 के चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती होगी।
*(3)राष्ट्रीय विस्तार पर दिखेगा असर।
आम आदमी पार्टी हिंदुस्तान की ऐसी राजनीतिक पार्टी रही है, जिसने बेहद कम समय में राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल कर लिया। पार्टी बनते ही सत्ता में आई, और कभी विपक्ष में नहीं रही। दिल्ली के अपने कामों के सहारे ही यह दूसरे राज्यों में अपनी पकड़ बना रही थी, जिसमें पंजाब में सरकार बनाने तक सफल भी हुई।
फिलहाल आम आदमी पार्टी के गोवा में 2, गुजरात में 5 और जम्मू-कश्मीर में 1 विधायक हैं। लेकिन दिल्ली में मिली करारी हार का असर अब राष्ट्रीय राजनीति में भी दिखेगा। दिल्ली को एक मॉडल बनाकर आम आदमी पार्टी अन्य राज्यों में विस्तार कर रही थी, लेकिन इस हार के बाद पार्टी में असमंजस और अस्थिरता बढ़ सकती है। साथ ही टूट-फूट का खतरा भी गहरा सकता है। क्योंकि विपक्ष की राह कभी आसान नहीं होती—यह हमेशा संघर्ष और चुनौतियों से भरी होती है। अब देखना होगा कि आम आदमी पार्टी के कितने कार्यकर्ता और नेता इस मुश्किल सफर में पार्टी के साथ बने रहते हैं और कितने रास्ता बदलते हैं। क्योंकि कोई भी आज़ के दौर में संघर्ष के रास्ते तपाना नहीं चाहते। क्योंकि भारतीय राजनीति में आजकल लोग अपने विचारों पर अडिग नहीं रह पा रहे हैं।
*(4)केजरीवाल और पार्टी नेतृत्व पर असर।
अरविंद केजरीवाल आम आदमी पार्टी के बड़े चेहरे में से हैं, अभी मौजूदा समय में वो पार्टी के संयोजक हैं। लेकिन दिल्ली हार से उनकी छवि को भी झटका लगा है। जिसमें वो खुद ही अपनी नई दिल्ली की विधानसभा सीट को बचाने में नाकाम रहे। बीजेपी के प्रवेश साहिब सिंह के हाथों वो 4089 वोट से चुनाव हार गए। चुनाव से पहले वो शराब घोटाले में जेल गए थे, ज़मानत पर रिहाई के बाद उन्होंने कहा कि वो चुनाव के माध्यम से अब जनता की अदालत में जायेंगे। दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के साथ भ्रष्टाचार के मामले में जेल जाने वाले मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन भी चुनाव हार गए। लिहाजा जेल जाने वाले तीनों नेता जनता के अदालत में फेल हो गए। इस हार के बाद से ही आम आदमी पार्टी के नेतृत्व और राजनीति पर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि इस हार से अरविंद केजरीवाल का भगवंत मान सरकार पर पकड़ भी कमज़ोर पड़ेगी। जिनके बारे में कहा जाता रहा है कि पंजाब की सरकार दिल्ली से चलती है। ऐसे में भगवंत मान अब थोड़े खुद को आजाद महसूस कर सकेंगे। ऐसे में अगर आने वाले समय में अरविंद केजरीवाल पार्टी के भीतर चीजों को व्यवस्थित नहीं रख पाए तो उनके खिलाफ पार्टी नेतृत्व को लेकर उनके विरोध में स्वर तेज हो जाएंगे।
*(5)दिल्ली हार से इंडिया गठबंधन में आप की स्थिति कमजोर।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद यह बहस छिड़ गई है कि आम आदमी पार्टी इन्डिया गठबंधन में अब बनी रहेगी या नहीं? जब पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह से इस पर सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि इसका फैसला पार्टी आलाकमान को करना है, और अभी इस पर कोई चर्चा नहीं हुई है। वही राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली की 14-15 सीटों पर कांग्रेस के उम्मीदवार के कारण आम आदमी पार्टी को नुकसान हुआ है। खासकर अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और सौरभ भारद्वाज जैसे बड़े नेता जितने वोटों से हारे, उससे ज्यादा वोट कांग्रेस को मिले हैं। जिनसे दोनों पार्टी के बीच दरार पैदा होने वाली है। अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस साथ चुनाव लड़ते, तो शायद बीजेपी को रोकना संभव होता। अब इस हार के बाद इन्डिया गठबंधन में आम आदमी पार्टी की स्थिति कमजोर हो जायेगी। जो अहमियत पहले मिल रही थी शायद ही वो अब मिले। क्योंकि आम आदमी पार्टी अपने तरकश के तीर दिल्ली को अब खो चुकी हैं। इनके साथ ही पार्टी में अब असंतोष और टूट का खतरा बढ़ सकता है। अगर आम आदमी पार्टी गठबंधन में बनी भी रहती है, तो कांग्रेस और अन्य दलों के साथ उसके रिश्ते तनावपूर्ण रहेंगे, क्योंकि चुनाव के दौरान दोनों पार्टियों के बीच खूब तीखी बयानबाजी हुई थी। कुल मिलाकर यह हार अरविंद केजरीवाल की राजनीति पर गहरा असर डालेगी। अब आने वाले दिनों में दिनों में दिखेगा की अरविंद केजरीवाल अपने कार्यकर्ताओं, नेताओं, इन्डिया गठबंधन और पंजाब की सरकार को कैसे संभालते हैं?
(ये स्टोरी अब्दुल रकीब नोमानी ने तैयार किया है)