
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
जम्मू-कश्मीर की अदालत ने पीएचडी स्कॉलर अब्दुल आला फाजिली को तीन साल बाद जमानत दे दी है। फाजिली को 2022 में ‘द कश्मीर वाला’ में लिखे एक लेख के आधार पर देशद्रोह और भड़काऊ सामग्री फैलाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
फाजिली का लेख, ‘द शैकल्स ऑफ स्लेवरी विल ब्रेक’, 2011 में प्रकाशित हुआ था। राज्य जांच एजेंसी (SIA) ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए मामला दर्ज किया था। लेकिन अदालत ने जमानत देते हुए पाया कि फाजिली के खिलाफ सबूत कमजोर हैं और उनका लंबे समय तक जेल में रहना न्यायोचित नहीं है।
तीसरे अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मदन लाल ने अपने आदेश में कहा, “अगर आवेदक को मुकदमे के अंत में बरी कर दिया जाता है, तो उसकी हिरासत की अवधि का कोई मुआवजा नहीं हो सकता। इसलिए, मौजूदा सबूतों को देखते हुए, आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाना सही होगा।”
अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि लेख के प्रकाशित होने के 11 साल बाद 2022 में अचानक मामला दर्ज किया गया। न्यायाधीश ने कहा कि इतने लंबे समय तक लेख पर कोई कार्रवाई न होना दिखाता है कि इससे कानून-व्यवस्था या उग्रवाद पर कोई असर नहीं पड़ा।
फाजिली के सह-आरोपी और ‘द कश्मीर वाला’ के संपादक फहद शाह को पहले ही जमानत मिल चुकी है। अदालत ने यह भी नोट किया कि फाजिली के खिलाफ कोई अन्य मामला दर्ज नहीं है और वह पहली बार अपराध के आरोप में गिरफ्तार हुए थे।
जमानत मिलने के बाद, अब्दुल आला फाजिली को रिहा कर दिया गया है। यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कानून के दुरुपयोग को लेकर बहस का विषय बना हुआ है।