

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने और वक्फ संशोधन बिल 2024 के खिलाफ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) और अन्य मुस्लिम संगठनों ने कड़ा विरोध जताया है। बोर्ड ने इन दोनों क़दमों को देश की लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ बताया है और इन्हें पूरी तरह से अस्वीकार्य करार दिया है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नेताओं ने एक संयुक्त बयान में कहा कि उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता का लागू होना देश के मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन है। उनका कहना है कि यह कानून संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करता है। बोर्ड ने यह भी कहा कि शरिया अधिनियम 1937 के तहत मुस्लिम व्यक्तिगत कानून एक अभिन्न हिस्सा है, जिसे किसी भी राज्य द्वारा बदलने का अधिकार नहीं है।
बोर्ड ने स्पष्ट किया कि समान नागरिक संहिता को लेकर उनकी राय बिल्कुल साफ है और उन्होंने इस कानून को अदालत में चुनौती देने का निर्णय लिया है। AIMPLB के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा, “हम इस कानून के खिलाफ पूरी तरह से खड़े हैं और इसे किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करेंगे। यह पूरी तरह से असंवैधानिक और निंदनीय है।”
वक्फ संशोधन बिल 2024 पर भी बोर्ड ने विरोध दर्ज किया है। उनका आरोप है कि जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी (JPC) ने इस बिल को पारित करते समय लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की अनदेखी की और मुस्लिम समुदाय के आपत्तियों को नजरअंदाज किया। बोर्ड ने इस बिल को वक्फ संपत्तियों की हड़पने की साजिश बताया और कहा कि वे इसके खिलाफ हर स्तर पर लोकतांत्रिक तरीके से संघर्ष करेंगे।
बोर्ड ने विपक्षी दलों से अपील की कि वे इस बिल के खिलाफ एकजुट होकर संसद में विरोध करें। साथ ही, उन्होंने यह चेतावनी दी कि यदि यह बिल वापस नहीं लिया गया तो मुस्लिम संगठन देशभर में इसका विरोध करेंगे और यदि जरूरत पड़ी तो वे सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे।
इस बयान में मुस्लिम संगठनों ने एकजुट होकर देशभर में लोकतांत्रिक और संवैधानिक तरीके से संघर्ष करने की प्रतिबद्धता जताई है और यह भी कहा कि अगर उनके अधिकारों का उल्लंघन किया गया तो वे संघर्ष के लिए तैयार हैं।