इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
अशोका यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और जाने-माने लेखक डॉ. अली खान महमूदाबाद को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार, 21 मई को अंतरिम जमानत दे दी। उन्हें 18 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर किए गए सोशल मीडिया पोस्ट के मामले में हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था। गिरफ्तारी के बाद से वे पुलिस हिरासत में थे।
हालांकि, अदालत ने इस मामले की जांच पर रोक नहीं लगाई है। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा पुलिस महानिदेशक (DGP) को 24 घंटे के भीतर एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने का निर्देश दिया है। यह SIT हरियाणा और दिल्ली के बाहर के वरिष्ठ IPS अधिकारियों की टीम होगी, जिसमें कम से कम एक महिला अधिकारी अनिवार्य रूप से शामिल होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यह अंतरिम जमानत केवल जांच को सुगम बनाने के उद्देश्य से दी गई है। कोर्ट ने अली खान महमूदाबाद को निर्देश दिया है कि वे इस मामले से जुड़ी कोई नई पोस्ट, लेख या सार्वजनिक टिप्पणी नहीं करेंगे — खासकर आतंकवादी हमलों और भारत की प्रतिक्रिया से संबंधित विषयों पर।
इसके अलावा, उन्हें जांच में पूर्ण सहयोग देना अनिवार्य होगा। अदालत ने कहा कि SIT का कार्य न केवल तकनीकी जांच करना होगा, बल्कि यह भी समझना होगा कि प्रोफेसर महमूदाबाद की पोस्ट का वास्तविक आशय क्या था।
अली खान महमूदाबाद ने कथित रूप से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संदर्भ में सोशल मीडिया पर कुछ टिप्पणियां की थीं, जिसे कुछ यूजर्स और अधिकारियों ने “राष्ट्रविरोधी” बताया। इसके बाद हरियाणा पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। सोशल मीडिया पर इस गिरफ्तारी को लेकर काफी बहस और विरोध भी देखने को मिला था, जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी के मुद्दे को प्रमुखता से उठाया गया।
देश भर के शिक्षाविदों, लेखकों और छात्र संगठनों ने इस गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। अशोका यूनिवर्सिटी के छात्रों ने एकजुट होकर महमूदाबाद की रिहाई की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला एक महत्वपूर्ण संकेत है कि गंभीर मामलों में भी न्यायपालिका स्वतंत्र विचार की रक्षा के लिए खड़ी हो सकती है, साथ ही यह सुनिश्चित कर सकती है कि जांच निष्पक्ष, पारदर्शी और पेशेवर तरीके से हो।