नीतीश कुमार को लेकर फिर चुप्पी, फिर संकेत: अमित शाह का बयान क्या कहता है बिहार की सियासत के बारे में?

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

बिहार की राजनीति में ऊहापोह लगातार जारी है। हाल ही में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपने बयान से इस सियासी घमासान को और हवा दे दी है। उन्होंने कहा, “बिहार का मुख्यमंत्री कौन होगा, यह समय तय करेगा। लेकिन यह तय है कि हम चुनाव नीतीश कुमार के मुख्यमंत्री रहते हुए ही लड़ेंगे।” इस बयान ने जदयू-भाजपा गठबंधन की आगामी रणनीति और रिश्तों को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

यह कोई पहली बार नहीं है जब अमित शाह ने नीतीश कुमार के भविष्य पर स्पष्ट जवाब देने से परहेज़ किया है। इससे पहले भी कई मौकों पर वे या तो चुप्पी साधते रहे हैं या बेहद कूटनीतिक जवाब देकर निकल जाते रहे हैं।

2024 लोकसभा चुनावों के दौरान भी जब पत्रकारों ने उनसे पूछा कि क्या 2025 में नीतीश कुमार ही एनडीए के मुख्यमंत्री चेहरा होंगे, तब भी अमित शाह ने टालमटोल करते हुए कहा था कि “इस पर समय आने पर विचार होगा”। उसी तरह जे.पी. नड्डा ने भी कई बार यह साफ करने से बचते रहे हैं कि गठबंधन में मुख्यमंत्री पद को लेकर क्या स्पष्टता है।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा अब धीरे-धीरे नीतीश कुमार से ‘मुख्यमंत्री चेहरा’ की जिम्मेदारी हटाकर खुद आगे बढ़ने की जमीन तैयार कर रही है। अमित शाह का हालिया बयान उसी रणनीति का हिस्सा लगता है जिसमें वे नीतीश को अस्थायी सहयोगी मानकर “वेट एंड वॉच” की नीति पर चल रहे हैं।

भाजपा के इस रवैये से जदयू के अंदरूनी हलकों में भी बेचैनी बढ़ती दिख रही है। जदयू नेताओं को यह चिंता सता रही है कि भाजपा कब, किस मोड़ पर, क्या रुख अपना ले—इसका भरोसा नहीं रह गया है। वहीं राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और महागठबंधन के अन्य दल इसे “विश्वासघात की तैयारी” करार दे रहे हैं।

राजद प्रवक्ता मनोज झा ने कहा “भाजपा को गठबंधन की नैतिकता से कुछ लेना-देना नहीं है। नीतीश कुमार अब उनके लिए सिर्फ एक चुनावी चेहरा हैं, जो वक़्त आने पर हटा दिए जाएंगे।”

नीतीश कुमार की छवि एक ‘मुख्यमंत्री मशीन’ की रही है, लेकिन भाजपा की तरफ से बार-बार ‘मुख्यमंत्री कौन होगा, ये समय बताएगा’ जैसे बयान जनता में भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं। सवाल यह है कि क्या एनडीए के पास कोई साझा विजन और नेतृत्व है, या फिर भाजपा केवल रणनीति के तहत गठबंधन चला रही है?

अमित शाह की यह लगातार चुप्पी और अस्पष्ट बयानबाज़ी संकेत देती है कि भाजपा नीतीश कुमार को लेकर अब पूरी तरह भरोसे में नहीं है। आगामी विधानसभा चुनावों से पहले बिहार की राजनीति में नई करवटें तय मानी जा रही हैं।

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