इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के होनहार छात्र और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके पहलवान पारस मोहम्मद ने अपने निष्कासन को “मनमाना, अन्यायपूर्ण और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन” करार देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कार्रवाई करते हुए यूनिवर्सिटी द्वारा जारी निष्कासन आदेश को रद्द करने की मांग की है।
क्या है मामला?
अलीगढ़ ज़िले के पाली रज़ापुर के निवासी पारस मोहम्मद ने 2021 में एएमयू से इतिहास में स्नातक और 2024 में परास्नातक की पढ़ाई पूरी की। 21 अप्रैल 2025 को उन्होंने पीएचडी प्रवेश प्रक्रिया में हिस्सा लेने के लिए इंटरव्यू सेंटर पर रिपोर्ट किया, लेकिन उन्हें भाग लेने से रोक दिया गया और कुलपति कार्यालय जाने का निर्देश दिया गया। जब वे कुलपति से मिलने पहुँचे, तो उन्हें मिलने से इनकार कर दिया गया।
उनके खिलाफ़ 22 नवंबर 2024 को विश्वविद्यालय के सुरक्षा अधिकारी की शिकायत पर एक एफआईआर दर्ज की गई थे, जिसमें आरोप लगाया गया कि पारस ने प्रशासनिक भवन में घुसपैठ की, अधिकारियों के कार्यालय में पहुंच को अवरुद्ध किया और माहौल बिगाड़ा। इस घटना के तुरंत बाद एएमयू के प्रॉक्टर प्रो. मोहम्मद वसीम अली ने पारस को 2025-26 से शुरू होने वाले पाँच शैक्षणिक सत्रों तक विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध संस्थानों में किसी भी पाठ्यक्रम में प्रवेश से वंचित कर दिया।
“नोटिस तक नहीं दिया गया”
पारस का आरोप है कि न तो उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया, न ही उनके पक्ष को सुनने के लिए कोई अनुशासनात्मक समिति गठित की गई। उन्होंने हाईकोर्ट में कहा है कि “बिना सुनवाई का अवसर दिए सजा देना प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन है।”
*प्रॉक्टर पर पूर्वाग्रह का आरोप
पारस ने आरोप लगाया कि एमए की पढ़ाई के दौरान भी प्रॉक्टर वसीम अली द्वारा उन्हें कई बार मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। कई छात्रों ने मौखिक रूप से कुलपति से इस बारे में शिकायत की थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। याचिका में दावा किया गया है कि “प्रॉक्टर ने निजी रंजिश के चलते अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए मुझे झूठे मामले में फंसा दिया।”
सीसीटीवी फुटेज और सबूत नहीं दिए गए
याचिका में कहा गया कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने पारस को न तो सीसीटीवी फुटेज दिखाया, न ही कोई गवाहों के बयान या अन्य सबूत साझा किए, जिससे उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर ही नहीं मिला।
चौंकाने वाली बात यह है कि एफआईआर निष्कासन आदेश के बाद दर्ज की गई, जो याचिका के अनुसार “गैरकानूनी और पूर्वाग्रह से ग्रस्त” है।
खेल जीवन भी खतरे में
पारस मोहम्मद ने 2024 में कज़ाख़स्तान के अस्ताना में आयोजित यूनाइटेड वर्ल्ड रेसलिंग ग्रैपलिंग चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया था और 16वां स्थान हासिल किया था। वे कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह एफआईआर और निष्कासन आदेश उनके खेल जीवन को भी बर्बाद कर सकता है।
“सिर्फ एक व्यक्ति के फैसले पर निष्कासन”
याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि यह निष्कासन केवल एक व्यक्ति – प्रॉक्टर – के निर्णय पर आधारित था, और विश्वविद्यालय प्रशासन ने तथ्यों की पुष्टि किए बिना कठोर सजा दे दी।
“सिर्फ आरोपों के आधार पर इतनी बड़ी सजा देना कानून और तर्क दोनों के खिलाफ है,” याचिका में कहा गया।
कुलपति ने नहीं सुनी अपील
पारस ने एएमयू अधिनियम, 1920 की धारा 36-बी के तहत अपील दाखिल की थी, लेकिन कुलपति ने उस पर कोई कार्रवाई नहीं की। इससे यह सवाल उठता है कि क्या विश्वविद्यालय प्रशासन निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया का पालन कर रहा है?
पारस मोहम्मद का मामला न केवल छात्र अधिकारों से जुड़ा है, बल्कि यह इस बात को लेकर भी चिंता पैदा करता है कि विश्वविद्यालय जैसे शैक्षणिक संस्थानों में निष्पक्षता, जवाबदेही और न्याय के सिद्धांतों का पालन हो रहा है या नहीं। यह देखना दिलचस्प होगा कि हाईकोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाता है।