इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में पहला ‘डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आधुनिक मदरसा’ स्थापित होने जा रहा है, जो राज्य-समर्थित इस्लामी शिक्षण संस्थानों के पुनर्गठन की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है। इस नए मदरसा मॉडल के तहत भगवान राम और भगवान कृष्ण के आदर्शों पर पाठ पढ़ाया जाएगा, कक्षाओं की शुरुआत राष्ट्रगान से होगी, और सेवानिवृत्त रक्षा कर्मियों को अनुशासन और शारीरिक फिटनेस के लिए नियुक्त किया जाएगा।
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड की नई गाइडलाइंस
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड ने मदरसों के आधुनिकीकरण के तहत कई नए नियम लागू किए हैं। इन नियमों में यह अनिवार्य किया गया है कि:
-रामायण और महाभारत के कथानकों को मदरसा पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा।
-भगवान राम और भगवान कृष्ण के आदर्शों पर विशेष पाठ पढ़ाए जाएंगे।
-कक्षाओं की शुरुआत राष्ट्रगान से होगी।
-सेवानिवृत्त सैनिकों को मदरसों में अनुशासन और फिटनेस को बढ़ावा देने के लिए नियुक्त किया जाएगा।
इसके अलावा, बोर्ड ने इन मदरसों में उत्तराखंड से बाहर के छात्रों के नामांकन पर रोक लगा दी है।
यह मदरसा देहरादून रेलवे स्टेशन के पास मुस्लिम बहुल क्षेत्र में स्थापित किया जाएगा। इस पहल को सरकार की आधिकारिक मंजूरी मिल चुकी है, और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसे मुस्लिम छात्रों की शिक्षा में सुधार के लिए एक “ड्रीम प्रोजेक्ट” करार दिया है।
मदरसों की पहचान खत्म करने की कोशिश? धार्मिक नेताओं का विरोध
हालांकि, इस फैसले का मुस्लिम धार्मिक नेताओं और मदरसा प्रशासकों ने विरोध किया है। उनका कहना है कि यह इस्लामी शिक्षण संस्थानों की पारंपरिक पहचान और उद्देश्य को कमजोर करने की कोशिश है। कई धार्मिक संगठनों ने इसे “धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ” और “मदरसों के मूल स्वरूप को बदलने की साजिश” बताया है।
वक्फ बोर्ड का बचाव: “राम और कृष्ण सबके लिए आदर्श”
उत्तराखंड वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष शादाब शम्स ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि भगवान राम और कृष्ण के मूल्य केवल हिंदुओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे सभी के लिए प्रेरणास्रोत हैं। उन्होंने बताया कि मार्च 2025 से चार आधुनिक मदरसों में यह शिक्षा शुरू कर दी जाएगी, जिसे बाद में सभी 117 मदरसों तक विस्तारित किया जाएगा।
Observer Post की रिपोर्ट में क्या कहा गया?
अंतरराष्ट्रीय मीडिया प्लेटफॉर्म The Observer Post की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड सरकार मदरसों को आधुनिक बनाने के नाम पर उनके पारंपरिक स्वरूप में बदलाव कर रही है, जो राज्य की मुस्लिम पहचान और धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रभाव डाल सकता है। रिपोर्ट में कहा गया कि यह बदलाव राज्य सरकार की वैचारिक सोच को भी दर्शाता है।
क्या मुस्लिम समुदाय इस बदलाव को स्वीकार करेगा?
इस फैसले के बाद राज्य में एक नई बहस शुरू हो गई है। क्या मुस्लिम समुदाय इस बदलाव को स्वीकार करेगा, या फिर इसे धार्मिक पहचान पर हमला मानते हुए विरोध तेज करेगा? यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में इस पहल पर राज्य में क्या राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव पड़ते हैं।