इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
असम की भाजपा सरकार द्वारा करीमगंज जिले का नाम बदलकर “श्रीभूमि” रखने के फैसले ने राज्य में नए सिरे से तनाव खड़ा कर दिया है। शनिवार को विरोध प्रदर्शन के दौरान कई जगह हिंसा भड़क उठी, जिसके बाद पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच झड़प हुई।
सरकारी फैसले के खिलाफ छात्रों, शिक्षकों और स्थानीय नागरिकों ने 12 घंटे का बंद बुलाया था। इस दौरान सिलचर और करीमगंज (अब श्रीभूमि) में सैकड़ों लोग सड़कों पर उतर आए, राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध किया, टायर जलाए और नारेबाज़ी की।
स्थिति बिगड़ने पर पुलिस ने लाठीचार्ज और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। झड़प में कई लोग घायल हुए जिनमें पुलिसकर्मी और पत्रकार भी शामिल हैं। प्रशासन ने अब तक 110 से अधिक लोगों को हिरासत में लिया है, जिनमें कॉलेज के छात्र और कुछ प्रोफ़ेसर भी बताए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने 19 नवंबर 2024 को घोषणा की थी कि करीमगंज का नाम बदलकर “श्रीभूमि” रखा जाएगा। उनका कहना है कि यह नाम रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा 1919 में इस्तेमाल किए गए शब्द का सम्मान है और इससे क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान को नया गौरव मिलेगा।
लेकिन स्थानीय लोगों का मानना है कि “करीमगंज” नाम ऐतिहासिक और मुस्लिम समुदाय की पहचान से जुड़ा हुआ है। उनका आरोप है कि सरकार जानबूझकर समुदाय-विशेष की सांस्कृतिक विरासत को मिटाने की कोशिश कर रही है।
करीमगंज के स्कूल शिक्षक मोहम्मद इरफ़ान ने कहा —
“यह सिर्फ एक नाम नहीं है; यह हमारी पहचान और हमारा इतिहास है। नाम बदलकर सरकार हमारी विरासत से खिलवाड़ कर रही है।”
कांग्रेस और वामपंथी दलों ने भी इस कदम को “सांप्रदायिक एजेंडा” करार देते हुए सरकार से निर्णय वापस लेने की मांग की है।
तनाव को देखते हुए प्रशासन ने सुरक्षा बलों की अतिरिक्त तैनाती की है। कई इलाकों में धारा 144 लागू कर दी गई है और संवेदनशील जगहों पर इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाई गई है।
नाम परिवर्तन को लेकर शुरू हुआ यह विवाद अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। विरोधियों का कहना है कि सरकार ने स्थानीय जनता से बिना परामर्श किए फैसला लिया, जबकि सरकार इसे “ऐतिहासिक पुनर्स्थापना” बताती है। आने वाले दिनों में यह विवाद और तेज़ हो सकता है।