इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बुधवार को समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और रामपुर के पूर्व सांसद आज़म ख़ान को डूंगरपुर कॉलोनी में कथित जबरन बेदखली मामले में जमानत दे दी। न्यायमूर्ति समीर जैन ने उनकी जमानत अर्जी मंज़ूर की, हालांकि यह आदेश उनकी अपील लंबित रहने तक प्रभावी रहेगा। आज़म ख़ान के साथ ठेकेदार बरकत अली को भी जमानत मिली है।
यह मामला वर्ष 2016 का है, जब रामपुर की डूंगरपुर कॉलोनी में कई घरों को कथित रूप से तोड़ा गया और निवासियों को जबरन बेदखल किया गया। शिकायतकर्ता अब्रार ने आरोप लगाया कि आज़म ख़ान, सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी अले हसन ख़ान और ठेकेदार बरकत अली ने उसे धमकी दी, उसकी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और जान से मारने की धमकी दी। इस मामले में कुल 12 एफआईआर दर्ज की गई थीं, जिनमें लूट, चोरी और हमले जैसे आरोप शामिल थे।
30 मई 2024 को रामपुर की एमपी/एमएलए कोर्ट ने आज़म ख़ान को 10 साल और बरकत अली को 7 साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद दोनों नेताओं ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की थी।
हालांकि आज़म ख़ान को डूंगरपुर मामले में जमानत मिल गई है, लेकिन वह अभी भी जेल में हैं। उनकी रिहाई अन्य मामलों में लंबित जमानत अर्जी पर निर्भर करेगी। उन्हें रामपुर के क्वालिटी बार भूमि आवंटन मामले में भी आरोपी बनाया गया है, जिसमें उनकी पत्नी तजीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आज़म को पहले ही जमानत मिल चुकी है। आज़म ख़ान की जमानत अर्जी इस मामले में भी लंबित है।
आज़म ख़ान की जमानत को राजनीतिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण माना जा रहा है। समाजवादी पार्टी के नेता इसे राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा मानते हैं, जबकि विपक्ष इसे कानून के शासन की जीत मानता है। हालांकि, कानूनी दृष्टिकोण से यह जमानत एक प्रक्रिया का हिस्सा है और अंतिम निर्णय हाईकोर्ट की अपील पर निर्भर करेगा।
इस मामले में आगे की कानूनी प्रक्रिया और उच्च न्यायालय के निर्णय पर सभी की निगाहें बनी रहेंगी।