इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार सरकार ने राज्य के स्कूलों में 15,000 पदों पर बहाली का ऐलान किया है, और खास बात यह है कि इन भर्तियों में डोमिसाइल नीति लागू की जाएगी। इसका मतलब है कि इन नौकरियों में केवल बिहार के स्थायी निवासियों को वरीयता दी जाएगी। सरकार के इस फैसले को विपक्षी दलों के जनदबाव और राजनीतिक आंदोलन की बड़ी सफलता के तौर पर देखा जा रहा है।
शिक्षा विभाग के तहत पुस्तकालयाध्यक्ष (लाइब्रेरियन) के – 6,500 पद, स्कूल क्लर्क के– 6,421 पद और परिचारी (चपरासी/सहायक स्टाफ) के 2,000 पद भरे जाएंगे
इन सभी पदों पर नियुक्ति के लिए उम्मीदवार का बिहार का स्थायी निवासी होना अनिवार्य होगा।
राजद, कांग्रेस, भाकपा (माले) और जनसुराज पार्टी सहित महागठबंधन की पार्टियां पिछले कई महीनों से डोमिसाइल नीति को लागू करने की मांग को लेकर अभियान चला रही थीं। हाल के दिनों में कांग्रेस ने राज्यव्यापी जनसंपर्क अभियान के ज़रिए यह मुद्दा जनता तक पहुँचाया।
सरकार द्वारा इन भर्तियों में डोमिसाइल नीति लागू किया जाना विपक्ष के लगातार दबाव और युवाओं की सक्रिय भागीदारी का नतीजा माना जा रहा है।
राज्यभर में छात्रों और युवाओं ने इस नीति के पक्ष में कई बार प्रदर्शन किए। सोशल मीडिया पर भी यह मुद्दा जोर-शोर से उठाया गया। कुछ जगहों पर पुलिस से झड़प की घटनाएं भी सामने आईं।
छात्र संगठनों का कहना है कि यदि डोमिसाइल नीति को सभी सरकारी भर्तियों में लागू नहीं किया गया, तो राज्य के स्थानीय युवाओं को पूर्ण न्याय नहीं मिल पाएगा।
हालांकि सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है, लेकिन यह अभी स्पष्ट नहीं है कि यह नीति अन्य विभागों जैसे शिक्षक, पुलिस, पंचायत सेवक, सचिवालय इत्यादि में भी लागू की जाएगी या नहीं।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम सरकार ने आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए उठाया है, क्योंकि डोमिसाइल की मांग अब युवाओं के बीच एक बड़ा जन आंदोलन बन चुकी है।
बिहार सरकार की यह घोषणा राज्य के युवाओं के लिए एक सकारात्मक और उत्साहवर्धक पहल है, और इसे विपक्षी दलों की रणनीतिक जीत भी माना जा सकता है। लेकिन जब तक डोमिसाइल नीति को सभी सरकारी नौकरियों में स्थायी रूप से लागू नहीं किया जाता, तब तक यह फैसला आंशिक और अस्थायी राहत ही रहेगा।