जातिगत जनगणना पर केंद्र सरकार की घोषणा — आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. जयंत जिज्ञासु से इंसाफ़ टाइम्स की खास बातचीत।

डॉक्टर जयंत जिज्ञासु राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं,उन्होंने जवाहर लाल नेहरु विश्विद्यालय से पीएचडी किया और समाजवादी नेता लालू प्रसाद यादव के जीवन पर “द किंग मेकर” नाम से चर्चित पुस्तक भी लिखी
केंद्र की एनडीए सरकार द्वारा जातिगत जनगणना का ऐलान कराए जाने को लेकर इंसाफ़ टाइम्स हिंदी के ब्यूरो चीफ़ अब्दुल रकीब नोमानी ने उन से इंटरव्यू लिया और विभिन्न बिंदुओं को समझने की कोशिश किया है

सवाल: केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया है। इसे आपकी पार्टी किस नज़रिए से देखती है? क्या यह एक देर से लिया गया सही फैसला है या इसके पीछे कोई राजनीतिक मजबूरी है?

जवाब – यह तो हमेशा से समाजवादियों का एक महत्वपूर्ण एजेंडा रहा है. और यह हमारा एक राजनीतिक लक्ष्य रहा है कि हम अम्बेडकर जी के उस विचार को साकार करें जिसमें वे कहते थे कि राजनीतिक लोकतंत्र से सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना हो। और यह राजनीतिक लोकतंत्र, सामाजिक लोकतंत्र में रूपांतरित हो सके इसके लिए बहुत ज़रूरी है कि हम समाज के हर हिस्से की उन्नति के लिए एक लोकतांत्रिक गणराज्य में काम कर सकें। अब तक हमने देखा कि सरकारों ने इस मुद्दे पर एक तरह से शुतुरमुर्ग-सिंड्रोम अपनाया या तो मुँह चुराया या बार-बार कुतर्क पेश कर टालमटोल करते रहे। लेकिन हमारे वैचारिक और राजनीतिक प्रणेता डॉक्टर लोहिया, डॉक्टर अम्बेडकर, एसएम जोशी और बाद के दिनों में प्रधानमंत्री बने विश्वनाथ प्रताप सिंह, लालू प्रसाद यादव, शरद यादव, मुलायम सिंह यादव जी इन सभी ने इस माँग को हमेशा उठाया।
बिहार में कर्पूरी ठाकुर जी ने पहली बार आरक्षण लागू किया था. तब भी इन लोगों ने उसका विरोध किया था। इसलिए हमारी पार्टी का स्पष्ट मत है कि हम समाज के हर वर्ग का उत्थान चाहते हैं. और यह किसी वर्ग के विरोध में नहीं है। हम इस बात को लगातार रेखांकित करना चाहते हैं।

सवाल- आपकी पार्टी आरजेडी ने जातिगत जनगणना की लंबे समय से मांग की है। अब सरकार ने इसे स्वीकार किया है, तो क्या आप इसे वैचारिक जीत मानते हैं या राजनीतिक अवसर?

जवाब – सरकार को हमारे संघर्षों के आगे झुकना पड़ा है, लेकिन हम इसे सिर्फ एक राजनीतिक मुद्दा नहीं मानते। हां, इसे राजनीति के ज़रिए हल जरूर किया जा सकता है। और यह चुनावी मुद्दा भी नहीं है. यह राष्ट्र निर्माण से जुड़ा एक बुनियादी सवाल है। बिहार में जातिगत जनगणना कराने का प्रस्ताव माननीय तेजस्वी प्रसाद यादव जी का ही था। नेता विपक्ष ने यह प्रस्ताव बिहार के मुख्यमंत्री के सामने रखा और फिर तय हुआ कि यह काम पूरे देश में होना चाहिए, और यह विषय केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है। लेकिन जब केंद्र सरकार ने इसे करने से इनकार कर दिया. तब कोई और विकल्प नहीं था हमने तय किया कि बिहार सरकार अपने संसाधनों से इसे कराएगी। तेजस्वी यादव जी को निःसंदेह श्रेय जाता है। उन्होंने न सिर्फ इसे आगे बढ़ाया, बल्कि देशभर के लगभग सभी राजनीतिक दलों के अध्यक्षों को इस विषय में पत्र लिखकर समर्थन मांगा।

सवाल- आपकी नजर में जातिगत जनगणना के जरिए समाज के किन हिस्सों को लाभ होगा और किन हिस्सों में इससे चिंता या असमंजस की स्थिति पैदा हो सकती है?

ज़वाब – कोई भी मुल्क अपने विभिन्न सामाजिक समूहों के बारे में वैज्ञानिक आंकड़े जुटाए बिना किसी भी तरह की नीति नहीं बना सकता है। कोई भी देश अपने नागरिकों की जानकारी इकट्ठा करने से कैसे मना कर सकता है, ये भी समझ से परे है।
मैं जातिवार जनगणना की बात करूँ इससे पहले आप भी जानते हैं कि हर दस साल में जनगणना होती है। उसको भी कोरोना की आड़ में पिछले पाँच वर्षों से लटका रखा गया है। जबकि दुनिया के 81 फ़ीसद मुल्कों ने अपने यहाँ जनगणना पूरी करा ली है।
इस बात को हम बार-बार देश की आम-आवाम से कहते रहे हैं जातिवार जनगणना किसी के भी ख़िलाफ़ नहीं है। इसलिए जो लोग भी आशंका पैदा करना चाहते हैं, दरअसल वे देश में शांतिपूर्वक रह रहे नागरिकों के हित में ठीक नहीं कर रहे हैं।

महात्मा गांधी ने 1931 की जनगणना जो अंतिम जातिवार जनगणना थी के समय कहा था कि जैसे हमें शरीर की पड़ताल के लिए समय-समय पर मेडिकल परीक्षण कराना पड़ता है, वैसे ही यह जातिवार जनगणना किसी भी राष्ट्र का महत्वपूर्ण परीक्षण होती है। और जब हमारे पास कोई अद्यतन जानकारी ही नहीं है, तो हम नीति कैसे बना सकेंगे? अभी तक तो सब कुछ अंदाज़े पर होता रहा है। और इस बार के बजट में सिर्फ 575 करोड़ रुपये इस काम के लिए दिए गए हैं। 575 करोड़ में तो जनगणना कराना संभव ही नहीं है। चाहे वह द्वितीय विश्व युद्ध हो या 1971-72 का भारत-पाक युद्ध उन कठिन समयों में भी भारत में जनगणना हुई थी।

मेरा मानना है कि सरकार की नीयत में खोट है। आप जानते ही हैं कि उपभोक्ता सर्वेक्षण हो, परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण हो, श्रम बल सर्वेक्षण हो या खाद्य सुरक्षा और सामाजिक सहायता जैसी योजनाएँ — ये सभी जनगणना के आंकड़ों पर निर्भर करती हैं। जब हमारे पास अद्यतन आंकड़े ही नहीं हैं तो हम हवा में कोई बात कर रहे हैं। हमारी पार्टी शुरू से मानती है कि 1948 का जनगणना कानून इस देश में है और उसी के आलोक में भारत का जनगणना आयोग इसको कराए।
लेकिन मैं यह भी समझता हूँ कि इंटेलेक्चुअल क्लास ने भी ईमानदारी से कलम नहीं चलाई।

सवाल – आपने इंटेलेक्चुअल वर्ग पर कहा कि उन्होंने जातिगत जनगणना पर सही तरीके से अपने विचार नहीं रखे, क्या आप इस पर विस्तार से बता सकते हैं कि उनका रुख क्या था और आपके विचार में उनका तर्क क्यों गलत था?

जवाब – जरूर… चाहे अभय दुबे हों, बद्रीनारायण हों, स्व. प्रताप वैदिक हों, संजय कुमार हों, संकेत उपाध्याय हों, रमेश मिश्रा हों. इन तमाम लोगों ने जो जातीय जनगणना को लेकर तर्क पेश किए थे वो सही नहीं थे। बद्रीनारायण जी ने ‘दैनिक जागरण’ में लिखा “सियासी शस्त्र ना बने जातीय जनगणना”। अभय दुबे ने ‘दैनिक भास्कर’ में लिखते गुण की “जातिगत जनगणना के गहन व बुनियादी प्रभाव न तो समर्थकों को समझ आ रहे हैं, न विरोधियों को”। नव भारत टाइम्स में स्व. प्रताप वैदिक जी लिखते हैं कि “आरक्षण में कोटा बढ़वाना हो तो क्यों ना याद आए जाति”।
वही संकेत उपाध्याय ने लिखा “राजनीति का एटमी बम क्यों है आरक्षण”, “मुख्य जनगणना के साथ जाति की जनगणना मुश्किल”।
इन लेखों से लोगों के मन में भ्रम का वातावरण तैयार किया गया।

हम मंडल कमीशन को हम बार-बार उद्धृत करते हैं। बी. पी. मंडल ने रजनी कोठारी को उद्धृत करते हुए लिखा था “भारत में जो लोग राजनीति में जातिवाद की शिकायत करते हैं, वे ऐसी राजनीति की तलाश करते हैं जिसका समाज में कोई आधार ही नहीं है।” हमारा समाज विविधताओं से भरा हुआ है। लेकिन जो आज सत्ता में हैं, उन्होंने हमेशा इस मुद्दे की गलत व्याख्या की और भ्रम फैलाया। देश के प्रधानमंत्री ने कहा — “मेरे लिए देश की सबसे बड़ी चार जातियाँ हैं — गरीब, युवा, महिलाएं, किसान”।
आरएसएस ने कहा “जातिगत जनगणना समाज की एकता और अखंडता के लिए ख़तरा है”।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा “जाति, क्षेत्र, भाषा के नाम पर समाज को बांटने वालों में रावण और दुर्योधन का डीएनए है”। नितिन गडकरी ने कहा “जो करेगा जात की बात, उसको मारूंगा कस के लात”।
अटल जी की सरकार में शिक्षा राज्यमंत्री रहे संजय पासवान ने कहा “जातीय जनगणना नहीं, गरीबी की गणना होनी चाहिए”। ये सब इसी तरह की बातें कर रहे थे। वहीं लालू प्रसाद जी गवर्नर हाउस तक मार्च कर रहे थे क्योंकि वित्त मंत्री जेटली ने कहा था कि UPA के समय में कराया गया SECC रिपोर्ट सांस्कृतिक विवाद पैदा करने वाला है, इसलिए जारी नहीं किया जा सकता। तब लालू प्रसाद जी ने कहा था “मोदी जी चाहे हमारे खिलाफ यूएन जाकर पिटीशन डाल दें, हम इसको करा कर आरक्षण बढ़ा कर रहेंगे”। वही हमारी पार्टी का स्टैंड है। लालू जी ने पिछले वर्ष 3 सितंबर 2024 को भी कहा “इन आरएसएस और बीजेपी वालों का कान पकड़कर दंड बैठक करा के इनसे हम जातिगत जनगणना करवाएंगे। इनकी क्या औकात है जो ये जातिगत जनगणना नहीं कराएंगे? इनको हम इतना मजबूर करेंगे कि कराना ही पड़ेगा”।
दलित, पिछड़ा, आदिवासी की एकता दिखाने का समय आ गया है। यही हमारी पार्टी का स्टैंड है। और हम जानते हैं कि इस देश का एक भी मुसलमान जातिगत जनगणना के खिलाफ़ नहीं रहा है। तो कौन लोग हैं जो इसके खिलाफ़ हैं? जो नहीं चाहते कि समाज का हर हिस्सा तरक्की की ओर जाए, हर परिवार के बच्चे तालीम हासिल करें, सब एक इज़्ज़त की ज़िंदगी जिएं, और इंसान-इंसान के बीच भेदभाव न हो। यह किसी जाति की बात नहीं है। खुद रामभद्राचार्य ने कहा कि ब्राह्मणों में भी कुछ ‘नीच ब्राह्मण’ होते हैं। बताइए इस तरह से तो देश नहीं चलेगा। देश साइंटिफिक टेम्पर से चलेगा। देश इक्वालिटी, लिबर्टी की भावना से चलेगा।
इसलिए हमारी पार्टी और हमारे नेता की साफ़ मांग है कि ये सिर्फ एक शुरुआत है। इसको समय पर और बिना गड़बड़ी के किया जाए, और ये सिर्फ एक जुमलेबाज़ी बनकर ना रह जाए।

सवाल – आप चाहते हैं कि केंद्र सरकार की ओर से जातिगत जनगणना कराए जाने को लेकर एक टाइमलाइन होनी चाहिए?

ज़वाब – निश्चित तौर पर। लालू प्रसाद यादव जी, शरद यादव जी और मुलायम सिंह यादव जी इन तीनों ने इसके लिए ज़बरदस्त संघर्ष किया है। इन्होंने इसे केवल एक राजनीतिक मुद्दा नहीं बल्कि एक सामाजिक आंदोलन की तरह लड़ा है। यह समाजवादियों का एजेंडा रहा है, जिसे अब तक पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया है। हमारे संघर्ष की ताक़त के सामने संघी लोग अब “जनगणना शरणं गच्छामि” की स्थिति में आ गए हैं। हम यह लड़ाई तेजस्वी यादव जी के नेतृत्व में पूरी ताक़त से लड़ रहे हैं।
हमारी मुख्य माँग है कि निजी क्षेत्र में आरक्षण लागू किया जाए. चाहे वो नौकरियों में हो या निजी शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले में। इसके साथ ही न्यायपालिका में भी आरक्षण होना चाहिए। हम मंडल आयोग की शेष सिफारिशों को भी लागू करेंगे।
जब हमारी सरकार आयेगी तो हम जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देंगे। हम ठेकेदारी में भी आरक्षण की वकालत करने वाले लोग हैं। इसके साथ ही हम वंचित समुदायों के लिए जनसंख्या के अनुपात में आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र सुनिश्चित करने की दिशा में काम करेंगे और उसे अंजाम तक पहुँचाएंगे।

हम चाहते हैं बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिले। जब जातिगत जनगणना होगी तब समग्रता में यह पता चलेगा कि किस क्षेत्र में कितने ज़रूरतमंद लोग हैं और किनकी बातें अब तक नहीं सुनी गई हैं। कौन भीख माँगने वाले हैं? कौन ठेला लगाने वाले हैं? कौन रिक्शा चलाने वाले हैं? इन सबका डेटा सामने आएगा। इससे यह भी स्पष्ट होगा कि बिहार की आज की प्रति व्यक्ति आय (per capita income) देश के अन्य राज्यों की तुलना में अब भी सबसे कम है। पटना में जहाँ कुछ लोगों की आमदनी है, वहीं ग्रामीण या पिछड़े इलाक़ों में उसके मुकाबले आमदनी कम है। आपको यहाँ असली असंतुलन दिखाई देगा, जिसे हम दुरुस्त करेंगे। इसके लिए जरूरी है कि बिहार को स्पेशल पैकेज मिले।

सवाल – आपके पार्टी पर आरोप लगता रहा है कि जातिवाद की राजनीत को बढ़ावा देते हैं

जवाब – जो लोग पहले हमें “जातिवादी” कहते थे, अब वही लोग हमारे एजेंडे में शामिल हो गए हैं। हमने उन्हें मजबूर किया है, क्योंकि अब इस मुद्दे को और टाला नहीं जा सकता। यह लड़ाई आसान नहीं रही है। अब कुछ लोग यह कहेंगे कि उन्होंने किया। लेकिन इतिहास इस तरह मूल्यांकन नहीं करता। इतिहास हर बात को दर्ज करता है। 1977 में लालू प्रसाद पहली बार सांसद बने और जनता पार्टी के अंदर जब दोहरी सदस्यता को लेकर संघर्ष तेज़ हुआ कि जिस जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हो चुका है, उसके लोग एक साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के भी सदस्य नहीं रह सकते। इस तरह मोरारजी की सरकार गई और चरण सिंह जी प्रधानमंत्री बने, उन्हें प्रधानमंत्री बनाने वालों में एक वोट लालू प्रसाद जी का भी था। चरण सिंह चाहते थे कि 1981 की जनगणना जातिवार हो। लेकिन सरकार बीच में ही चली गई।

 

1989 में जब लालू प्रसाद जी दूसरी बार सांसद बने तब वीपी सिंह जी प्रधानमंत्री बने और उन्होंने 1991 की जनगणना जातिवार करानी चाही, पर जैसे ही उन्होंने मंडल लगाया, भाजपा के नेता लालकृष्ण आडवाणी कमंडल लेकर निकल पड़े जिन्हें लालू प्रसाद ने गिरफ़्तार किया, और भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया, सरकार गिर गई और जातिवार जनगणना का काम एक बार फिर से लटक गया। 1996 में जब यूनाइटेड फ्रंट की सरकार बनी और देवगौड़ा जी प्रधानमंत्री बने, उस वक़्त लालू प्रसाद यादव अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और उनका बड़ा योगदान था।देवेगौड़ा और गुजराल के मंत्रिमंडल में संसदीय कार्य मंत्री रहे उड़ीसा से श्रीकांत जेना जी एक बार हमें बिहार निवास में मिले, उस समय देवेगौड़ा की सरकार में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री रहे देवेंद्र यादव जी भी वहाँ मौजूद थे। उन्होंने बताया कि अगर देवगौड़ा जी को प्रधानमंत्री बनाने का श्रेय किसी एक व्यक्ति को दिया जाए, तो वो लालू प्रसाद यादव हैं। उसी रात यह तय हुआ था कि देवगौड़ा जी ही प्रधानमंत्री बनेंगे। देवगौड़ा जी के नेतृत्व में यह निर्णय लिया गया कि 2001 में जातिगत जनगणना कराई जाएगी। लेकिन उसके बाद जब वाजपेयी जी की सरकार आई, तो उन्होंने इस प्रक्रिया को रोक दिया। जातिगत जनगणना हमारे संघर्ष का मूल एजेंडा रहा है, और हम इसे अपनी जीत के रूप में देखते हैं।

सवाल – आपकी पार्टी जातिगत जनगणना के आंकड़े आने के बाद आरक्षण 50% से ऊपर बढ़ाने के पक्ष में है या आपकी पार्टी चाहती है कि कोई नई सामाजिक नीति बने?

ज़वाब – हमारी पार्टी पूरी मजबूती के साथ आरक्षण को बढ़ाने के पक्ष में है। आपने देखा होगा कि 1978 के बाद पहली बार बिहार में आरक्षण बढ़ाने का ऐतिहासिक फैसला लालू प्रसाद यादव जी ने लिया था। उन्होंने अति पिछड़ों के लिए आरक्षण को 12% किया और फिर राबड़ी देवी जी ने इसे बढ़ाकर 14% किया। उनके बाद कई साल तक आरक्षण में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई। जब तेजस्वी यादव जी उपमुख्यमंत्री बने तो उन्होंने जातिगत जनगणना कराई, उसका डाटा सार्वजनिक किया गया। उस आंकड़े के आधार पर जरूरत महसूस हुई और फिर आरक्षण की सीमा को बढ़ाया गया। अति पिछड़ों का कोटा 18% से बढ़ाकर 25%, पिछड़ों का 12% से 18%, दलितों का 16% से 20% और आदिवासियों का 1% से बढ़ाकर 2% किया गया। इस डाटा से यह भी सामने आया कि जिन जातियों को ओबीसी और ईबीसी में रखा गया है, उनके पास नौकरी के मौके न के बराबर हैं—कहीं 2%, कहीं 2.5%, कहीं 1.5%। इससे वो झूठा नैरेटिव भी खत्म हो गया जो फाइनेंस कास्ट या ओबीसी की दलितों पर हावी होने की बात करता था।

इसमें डरने जैसी कोई बात नहीं है। जैसे कोई इंसान तभी स्वस्थ रह सकता है जब उसके शरीर का हर अंग स्वस्थ हो, वैसे ही समाज भी तभी आगे बढ़ सकता है जब हर वर्ग को बराबरी का अधिकार और अवसर मिले। हम यह नहीं चाहेंगे कि एक वर्ग सुख में हो और दूसरा गुरबत में।
आज 90% से ज़्यादा नौकरियां प्राइवेट सेक्टर में हैं। इसलिए हम सामाजिक न्याय की मांग करते हैं, ताकि इसका असर शिक्षा, रोजगार और जीवन के हर क्षेत्र में दिखे। हम चाहते हैं कि प्राइवेट सेक्टर की नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और कंपनियों में भी आरक्षण लागू किया जाए। यह सब मंडल कमीशन की सिफारिशों में शामिल है। तेजस्वी यादव जी ने स्पष्ट कहा है कि हम मंडल कमीशन की सभी सिफारिशों को लागू करेंगे। यही हमारी प्रतिबद्धता है और उसी दिशा में हम लगातार आगे बढ़ रहे हैं।

सवाल – : बहुत से लोग, खासकर बीजेपी पार्टी सवाल उठा रहे हैं कि जातिगत जनगणना को लेकर इन्डिया गठबंधन की मंशा ठीक नहीं रही है. इसे ये सिर्फ वोटबैंक के रूप देखते हैं?

जवाब: देखिए, इनकी मंशा कभी जातिगत जनगणना कराने की रही ही नहीं। यह तो हमारे एजेंडे का हिस्सा रहा है। यह हमारी राजनीतिक सोच, हमारी फिलॉसफी और हमारे सामाजिक बदलाव के लक्ष्य का अहम हिस्सा है। हम चाहते हैं कि जातिगत जनगणना के जरिए हर वर्ग का उत्थान हो, एक समतामूलक समाज की स्थापना हो। आरएसएस और बीजेपी का तो ‘समरसता’ वाला मॉडल है – मतलब जो जैसा है, उसे वैसे ही चलने दो। उसमें कोई डॉमिनेंट करेगा, कोई दबा रहेगा, और सब कुछ परंपरा और रिवायत के नाम पर चलता रहेगा। हम यह मानते हैं कि जब दुनिया तरक्की कर रही है तो हमें पीछे नहीं धकेला जाना चाहिए। हमने तो कभी ऊंच-नीच की व्यवस्था नहीं बनाई। हम तो यही चाहते हैं कि समाज में भाईचारा हो – सिर्फ खाने-पीने तक नहीं बल्कि आर्थिक और सामाजिक समानता के स्तर पर भी हो।

लोहिया जी कहते थे कि समाज का मतलब दरिद्रता का बंटवारा नहीं, समृद्धि का बंटवारा है। जब सब लोग समृद्ध होंगे, तभी देश आगे बढ़ेगा।
मैं इस मौके पर अपने उन पुरखों को याद करना चाहता हूं जो अब हमारे बीच नहीं हैं – संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर, समाजवादी चिंतक डॉ. लोहिया, जननायक कर्पूरी ठाकुर, बिहार के लेनिन जगदेव बाबू, किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह, संशोपा के अध्यक्ष एसएम जोशी साहब,  मंडल कमीशन के चेयरमैन बीपी मंडल जी, बीपी सिंह जी, लालू प्रसाद यादव जी, मंडल मसीहा शरद यादव जी, और धरतीपुत्र मुलायम सिंह यादव जी मंडल कमीशन के चेयरमैन बीपी मंडल जी, मान्यवर कांशीराम जी। रामविलास पासवान जी भी अपने समय में इस मुद्दे पर संघर्ष करते रहे. ये बात अलग है कि आज उनके सुपुत्र दूसरी दिशा में गंगा बहाते दिख रहे हैं। हमारे दिल में इन सबके लिए सम्मान है। आज तेजस्वी यादव जी उन्हीं की लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं एक समदर्शी नेता, जिनके अंदर न्याय की गहरी समझ है। यही समाजवादियों का एजेंडा रहा है, और हम इसे अपनी जीत मानते हैं। ये लड़ाई अभी भी जारी है. और आगे भी जारी रहेगी।

सवाल – बिहार में जातिगत आंकड़े सामने हैं, और कई समुदाय अब भी उपेक्षित हैं। क्या आपकी पार्टी इनके उत्थान के लिए कोई विशेष योजना या रोडमैप लेकर आएगी?

जवाब – जो भी पिछड़े लोग और अति वंचित समुदाय हैं, जो अत्यधिक शोषित हैं, उनका उत्थान हमारी प्राथमिकता है। हमारी पार्टी का हमेशा से एक स्पष्ट दृष्टिकोण रहा है. चाहे वह राजनीतिक न्याय हो, आर्थिक न्याय हो, या सामाजिक न्याय। सामाजिक सुरक्षा के अंतर्गत हम उन कमजोर वर्गों, विशेषकर महिलाओं, वृद्धजनों और ग़रीबों के लिए सहायता राशि बढ़ाने का वचन दिए हुए हैं। हम महिलाओं के लिए ‘माता बहन योजना’ लाकर उनके खाते में ₹2500 डालने की योजना बना रहे हैं, ताकि उनका सामाजिक और आर्थिक उत्थान हो सके। यह तो केवल एक कदम है, सर्वाइवल के लिए। लेकिन हम उन्हें शिक्षा से जोड़ने के लिए भी काम करेंगे। यह हमारा उद्देश्य है कि बिहार के हर वर्ग के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य, और छोटे व मझोले उद्योगों का सृजन किया जाए। विशेष रूप से बुनकर समाज और हस्तशिल्प से जुड़े लोग, जिनके लिए बाजार के अवसर सीमित हैं, हमें उनका समर्थन करने के लिए कदम उठाने होंगे।
जहां तक मछली पालन और कृषि की बात है, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे राज्य में उत्पादित मछली और कृषि उत्पादों को सही बाजार मिले। नीतीश कुमार जी द्वारा मंडी कानून खत्म करने के बाद, हम उस पर दबाव बना रहे हैं, ताकि किसानों के लिए अच्छा बाजार मिल सके।
हमारी पार्टी का यह भी मानना है कि हर कमिश्नरी में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज खोलने की आवश्यकता है। यह हमारी 2020 के विधानसभा चुनाव में घोषित योजनाओं में था। इसके अलावा पिछड़े क्षेत्रों के लिए विकास परिषद बनाने का विचार है, ताकि वहां के लोगों की समस्याओं का समाधान हो सके और रोजगार के अवसर पैदा हो सकें।

हमारी कोशिश यही है कि हम बिहार को विकास की दिशा में आगे बढ़ाएं, ताकि इसे एक अव्वल दर्जे का राज्य बनाया जा सके। इसके अलावा, अनुमंडल और ब्लॉक स्तर पर भी डिग्री कॉलेज खोले जाएं। जैसे कि जब हमारी सरकार थी, तब डिप्टी सीएम तेजस्वी प्रसाद यादव जी की अगुवाई में पांच नए मेडिकल कॉलेज खोले गए थे। हालांकि जब सरकार बदलने के बाद इन कॉलेजों की स्थिति खराब हुई, लेकिन हमारी पार्टी सरकार में आते ही इनकी स्थिति को सुधारने की पूरी कोशिश करेगी।
हमारी प्राथमिकता उन वंचित समुदायों के लिए काम करना है, जो बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जैसे कि सस्ते और अच्छे इलाज की सुविधा।

सवाल – बिहार की 57% आबादी युवा है। चुनाव में आरजेडी युवाओं के लिए क्या ठोस योजना लेकर आ रही है?

जवाब – हमारी पार्टी ने हमेशा युवाओं के उत्थान के लिए एक स्पष्ट दृष्टिकोण अपनाया है। तेजस्वी यादव जी जो एक दूरदर्शी नेता हैं. ने हमेशा यह सुनिश्चित किया है कि बिहार के युवाओं को ज्यादा से ज्यादा अवसर मिलें, चाहे वह राजनीति हो या अन्य क्षेत्रों में। उन्होंने खुद को साबित भी किया है, दो बार मुख्यमंत्री और दो बार नेता प्रतिपक्ष के रूप में, जहां उन्होंने मर्यादित और प्रभावशाली राजनीति की है। तेजस्वी यादव जी की प्राथमिकता रही है कि बिहार के युवाओं को बिहार में ही स्थिर और स्थायी रोजगार मिले। उनका मानना है कि बिहार में रोजगार के अवसर बढ़ाने के साथ-साथ, जो युवा राजनीति में हैं उन्हें भी समुचित मंच मिलना चाहिए। उन्होंने इस दिशा में कई अहम कदम उठाए हैं, जैसे नई स्पोर्ट्स पॉलिसी, टूरिज्म पॉलिसी और आईटी पॉलिसी। ये तीनों नीतियां आरजेडी के सरकार में शामिल रहते हुए बनी है, और खासकर स्पोर्ट्स मंत्रालय को तेजस्वी यादव जी खुद देख रहे थे।इन नीतियों के माध्यम से हमारा उद्देश्य यह है कि बिहार में पलायन को रोका जा सके और युवाओं को अपने राज्य में ही बेहतर भविष्य मिले। हमारी पार्टी यह सुनिश्चित करेगी कि बिहार के प्रत्येक युवा को एक खुशहाल और सशक्त जीवन मिल सके, और हम इस दिशा में काम करते रहेंगे।

सवाल – अगर किसी कारणवश यह प्रक्रिया रोक दी जाती है या आंकड़े जारी नहीं होते तो क्या आरजेडी जन आंदोलन का रास्ता अपनाएगी या संवैधानिक लड़ाई लड़ेगी?

जवाब – जब इस तरह की स्थिति आएगी तो हम हर तरह के कदम उठाने के लिए तैयार हैं। आंदोलन का रास्ता तो अपनाया ही जाता है जब सरकार सुनने और समझने को तैयार नहीं होती। और यह एक लोकतांत्रिक तरीका है, जिसे हमेशा अपनाया जाता रहा है। बहुत सारे लोग इस आंदोलन का हिस्सा रहे हैं, खासकर जातिगत जनगणना को लेकर। राज नारायण जी जैसे नेता हैं, जो 2007-08 से इस मुहिम को चला रहे हैं। जब मैं दिल्ली गया था तब पहली बार कांस्टीट्यूशन क्लब में उनके कार्यक्रम में शामिल हुआ था। उस कार्यक्रम में शरद यादव जी से लेकर कई अलग-अलग पार्टियों के नुमाइंदे शामिल होते रहे थे। मैं राज नारायण जी को साधुवाद देना चाहता हूं, क्योंकि वह बहुत ही संघर्षशील और प्रतिबद्ध व्यक्ति हैं, जिन्होंने जातिगत जनगणना की मुहिम में बड़ा योगदान दिया है। हमारी पार्टी आरजेडी एक जिम्मेदार पार्टी है, और हम चाहते हैं कि जो वादे सरकार ने किए हैं, उन्हें ईमानदारी से पूरा किया जाए। अगर सरकार पीछे हटती है, तो हमारे पास लोकतंत्र में आंदोलन और संवैधानिक लड़ाई जैसे कई रास्ते हैं। हम उन सभी विकल्पों को अपनाएंगे। आंदोलन का रास्ता हमारे लिए हमेशा खुला रहा है और रहेगा भी।

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