इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
भारत और पाकिस्तान के बीच हाल ही में घोषित सीजफायर पर जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख नेताओं ने प्रतिक्रियाएं दी हैं। श्रीनगर से लोकसभा सांसद अग़ा सैयद रूहुल्लाह मेहदी और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस फैसले का स्वागत तो किया है, लेकिन इसके साथ गहरी राजनीतिक चेतावनियां भी दी हैं।
“सीजफायर समाधान नहीं, लेकिन संवाद का अवसर है” – अग़ा रूहुल्लाह
लोकसभा सदस्य अग़ा सैयद रूहुल्लाह मेहदी ने आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए कहा”मैं भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर के ऐलान का स्वागत करता हूं। हमारी अवाम ने हर टकराव की सबसे बड़ी कीमत चुकाई है। सीजफायर खुद में कोई समाधान नहीं है, लेकिन यह एक ऐसा पल है जिसका उपयोग सोचने, तनाव कम करने और विनाश की बजाय संवाद की ओर लौटने के लिए किया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि इस विराम को स्थायी शांति में तब्दील करने की कोशिश होनी चाहिए। उन्होंने पाकिस्तान से अपेक्षा जताई कि वह संयुक्त राष्ट्र द्वारा चिन्हित आतंकवादी संगठनों को अपने ज़मीन से खत्म करे। साथ ही भारत सरकार से जम्मू-कश्मीर के लोगों के साथ ईमानदार और समावेशी संवाद शुरू करने की अपील की।
उन्होंने कहा “जम्मू-कश्मीर की जनता जो वर्षों से संघर्ष और क्रॉसफायर का शिकार रही है, उन्हें केवल इशारे और अस्थायी राहत नहीं चाहिए। उन्हें चाहिए इज़्ज़त के साथ अमन, पीड़ा से मुक्त सुरक्षा और बिना शर्त लोकतंत्र।”
“2-3 दिन पहले होता तो जानें बच जातीं” – उमर अब्दुल्ला
पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी सीजफायर पर प्रतिक्रिया देते हुए एक ट्वीट में लिखा “भारत और पाकिस्तान के बीच हुए सीजफायर के ऐलान का मैं स्वागत करता हूं। अगर 2-3 दिन पहले ये हुआ होता तो हमने जो कीमती जानें गवाईं, वो नहीं होतीं।”
उनकी यह टिप्पणी हालिया संघर्षों में सीमावर्ती इलाकों में मारे गए नागरिकों की मौत पर केंद्रित रही। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताया कि देर से लिया गया निर्णय कई निर्दोष जानों को नहीं बचा सका।
स्थायी अमन की चुनौती
दोनों नेताओं के बयानों से साफ है कि जम्मू-कश्मीर के राजनेता केवल संघर्षविराम पर खुश नहीं हैं, बल्कि वे इससे आगे जाकर स्थायी राजनीतिक समाधान की अपेक्षा कर रहे हैं। उनका मानना है कि शांति केवल घोषणा से नहीं, बल्कि ज़मीनी स्तर पर ईमानदार राजनीतिक प्रयासों से आएगी।