मुजफ्फरपुर में पुलिस कस्टडी में युवक की मौत,आक्रोशित ग्रामीणों ने कांटी थाने में किया हंगामा!थानाध्यक्ष सहित 04 अधिकारी निलंबित

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

मुजफ्फरपुर के कांटी थाना क्षेत्र में पुलिस हिरासत में एक युवक की मौत के बाद बवाल मच गया। गुरुवार (6 फरवरी) को मृतक शिवम झा के परिजनों और आक्रोशित ग्रामीणों ने कांटी थाने में जमकर हंगामा किया और तोड़फोड़ की। परिजनों का आरोप है कि शिवम की हत्या की गई है।

वहीं घटना पर संज्ञान लेते हुए मुजफ्फरपुर के एसएसपी सुशील कुमार ने तत्काल कार्रवाई करते हुए थानाध्यक्ष, ओडी ऑफिसर, चौकीदार और एक सिपाही को सस्पेंड कर दिया है।
एसएसपी सुशील कुमार के अनुसार, रात 3:30 बजे के सीसीटीवी फुटेज से प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि हाजत में बंद शिवम झा ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। हालांकि, परिजनों ने पुलिस पर पिटाई कर हत्या करने का आरोप लगाया है।
एसएसपी के अनुसार एसएफएल टीम को बुलाया गया है। साथ घटनास्थल की वीडियोग्राफी करवाई जा रही है।
मृतक के पोस्टमार्टम के लिए तीन डॉक्टरों का विशेष मेडिकल बोर्ड बनाया गया है, जिसकी वीडियोग्राफी भी होगी। न्यायिक जांच के लिए डिस्ट्रिक्ट जज को पत्र भेजा गया है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) को भी घटना की सूचना दी गई है।

क्या कहता है कानून?

भारत में पुलिस हिरासत में मौत (Custodial Death) के मामलों में कड़े कानूनी प्रावधान हैं:
भारतीय संविधान अनुच्छेद 21जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की गारंटी देता है। अनुच्छेद 22 गिरफ्तार व्यक्ति के अधिकार सुनिश्चित करता है।
भारतीय दंड संहिता धारा 302 अगर पुलिस हिरासत में हत्या हुई, तो हत्या का मामला दर्ज होगा। धारा 304 के तहत अगर मौत पुलिस की लापरवाही से हुई, तो गैर-इरादतन हत्या का केस बनेगा।
धारा 306 के तहत अगर आत्महत्या के लिए उकसाया गया, तो संबंधित पुलिसकर्मी दोषी होगा।
धारा 330 और 331 पुलिस प्रताड़ना के मामलों में कड़ी सजा का प्रावधान है।

आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) के
धारा 176 के तहत हिरासत में मौत की अनिवार्य न्यायिक जांच, धारा 41B के तहत गिरफ्तारी में पारदर्शिता और प्रक्रिया का पालन जरूरी।

सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश (DK Basu केस, 1997)
गिरफ्तारी के समय सूचना देना, मेडिकल जांच और वकील से मिलने का अधिकार।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशानिर्देश के अनुसार
पुलिस को हर कस्टोडियल डेथ की सूचना 24 घंटे के भीतर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को देनी होती है।

अब सभी रिपोर्ट्स और जांच के नतीजों के आधार पर दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अगर पुलिस की लापरवाही साबित होती है, तो आरोपी अधिकारियों पर हत्या या गैर-इरादतन हत्या का मुकदमा दर्ज हो सकता है।

(ये स्टोरी मानू छात्रसंघ अध्यक्ष मुहम्मद फैजान ने लिखी है)

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