इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
फरवरी 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों के दौरान सांप्रदायिक नफरत फैलाने के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने शनिवार को लोकेश कुमार सोलंकी को दोषी करार देते हुए तीन वर्ष की साधारण कारावास की सजा सुनाई। सोलंकी उन लोगों में शामिल था जिन्होंने ‘कट्टर हिंदू एकता’ नामक व्हाट्सऐप ग्रुप के माध्यम से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ भड़काऊ और हिंसक संदेश साझा किए थे।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश परवीन सिंह ने फैसले में कहा कि अभियुक्त का आचरण “पहले से ही सुलग रही सामाजिक परिस्थितियों में घी डालने जैसा” था। उन्होंने कहा कि सोलंकी ने ऐसे समय में, जब दिल्ली सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में थी, शांति बनाए रखने के बजाय उकसावे वाले संदेश फैलाकर हालात को और गंभीर बना दिया।
अदालत के अनुसार, सोलंकी ने व्हाट्सऐप ग्रुप में 25 फरवरी 2020 को यह संदेश पोस्ट किया था कि उसने और उसके साथियों ने “दो मुसलमानों को मारकर भगीरथी विहार क्षेत्र में नाले में फेंक दिया है”। अभियोजन के अनुसार, यह संदेश न सिर्फ अत्यधिक उकसाने वाला था बल्कि इससे अन्य लोगों को भी हिंसा के लिए प्रेरित किया गया।
सोलंकी को भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धार्मिक समुदायों के बीच शत्रुता फैलाना) और धारा 505 (सार्वजनिक शांति भंग करने वाले वक्तव्य) के तहत दोषी ठहराया गया। अदालत ने प्रत्येक अपराध के लिए ₹25,000 का जुर्माना भी लगाया है!
हालांकि, सोलंकी 2020 से ही हिरासत में था और उसने पहले ही तीन वर्षों से अधिक समय जेल में बिता दिया है। अदालत ने कहा कि यह अवधि सजा की अधिकतम सीमा के बराबर है, इसलिए सोलंकी को जुर्माना अदा करने की शर्त पर रिहा किया जा सकता है।
फैसले में कहा गया, “अपराध गंभीर है, क्योंकि यह ऐसे समय में किया गया जब साम्प्रदायिक हिंसा चरम पर थी और लोगों के मन में असुरक्षा तथा भय व्याप्त था। अभियुक्त के संदेशों ने स्थिति को शांत करने के बजाय और भड़काया।”
जांच एजेंसियों और स्वतंत्र रिपोर्टों के अनुसार, ‘कट्टर हिंदू एकता’ नामक व्हाट्सऐप ग्रुप को फरवरी 2020 के दंगों के दौरान बनाया गया था। इसमें 100 से अधिक सदस्य शामिल थे और इसका उपयोग मुस्लिम समुदाय के खिलाफ हमलों की रणनीति साझा करने, हथियारों के चित्र भेजने और हिंसा के दावे करने के लिए किया गया।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए इस दंगे में 53 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से 38 मुस्लिम समुदाय से थे। यह दंगा नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के विरोध में चल रहे प्रदर्शनों के दौरान भड़का था!
दिल्ली की विभिन्न अदालतों में इस व्हाट्सऐप ग्रुप से जुड़े अन्य आरोपियों के खिलाफ भी मामले दर्ज हुए थे, हालांकि, कई मामलों में अदालतों ने यह पाया कि व्हाट्सऐप चैट्स अकेले में पर्याप्त सबूत नहीं माने जा सकते। अप्रैल 2025 में एक अन्य अदालत ने इसी ग्रुप के 12 सदस्यों को हत्या और दंगा फैलाने के मामले में बरी कर दिया था, क्योंकि अभियोजन ठोस साक्ष्य पेश नहीं कर सका।
लोकेश सोलंकी को दोषी ठहराना इस बात का स्पष्ट संकेत है कि डिजिटल माध्यमों से फैलाई गई नफरत को अदालतें गंभीरता से ले रही हैं। यह मामला उन सभी के लिए चेतावनी है जो सोशल मीडिया को साम्प्रदायिक जहर फैलाने का मंच समझते हैं!