इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), जामिया मिलिया इस्लामिया (JMI) और मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (MANUU) द्वारा टर्की के शैक्षणिक संस्थानों के साथ अपने अकादमिक समझौते (MoUs) को रद्द या निलंबित करने के फैसले के खिलाफ देशभर में विरोध शुरू हो गया है। इन विश्वविद्यालयों के पूर्व छात्रों, शिक्षाविदों और छात्र संगठनों ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है और इसे शैक्षणिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है।
AUSF-MANUU (आज़ाद यूनाइटेड स्टूडेंट्स फेडरेशन– MANUU) ने एक बयान जारी करते हुए कहा है कि भारत की ज्ञान परंपरा और सभ्यतागत धरोहर हमेशा संवाद, विविधता और वैश्विक ज्ञान आदान-प्रदान की समर्थक रही है। ऐसे में किसी देश के खिलाफ राजनीतिक मतभेद या आतंकवाद के आरोपों को आधार बनाकर शैक्षणिक सहयोग समाप्त करना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है, बल्कि यह भारत की वैश्विक अकादमिक छवि को भी नुकसान पहुंचाने वाला कदम है।
बयान में कहा गया है “आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को अकादमिक स्वतंत्रता के खिलाफ युद्ध नहीं बनने दिया जा सकता। अगर विश्वविद्यालयों में केवल सत्ता की विचारधारा को ही स्थान मिलेगा, तो ये ज्ञान के केंद्र नहीं बल्कि प्रचार तंत्र की शाखाएं बन जाएंगी।”
AUSF-MANUU ने मांग की है कि टर्की के साथ हुए शैक्षणिक समझौतों को तुरंत बहाल किया जाए और विश्वविद्यालयों को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखा जाए।
बयान में यह भी चेताया गया कि “यदि यह सिलसिला चलता रहा तो भारत के विश्वविद्यालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग पड़ सकते हैं और देश की अकादमिक गरिमा को गहरा धक्का लगेगा।”
शैक्षणिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि वैश्विक सहयोग से ही छात्रों और शोधार्थियों को नई संभावनाएं मिलती हैं। ऐसे में भू-राजनीतिक तनावों को विश्वविद्यालयों में घुसपैठ करने देना एक खतरनाक प्रवृत्ति है।