इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
ई. अबूबकर (E. Abubacker)—एक ऐसा नाम जो दक्षिण भारत से लेकर राष्ट्रीय मुस्लिम मंचों तक सामाजिक, धार्मिक और बौद्धिक नेतृत्व का पर्याय रहा है। 73 वर्षीय अबूबकर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के संस्थापक अध्यक्ष होने के साथ-साथ ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के संस्थापक सदस्य और ऑल इंडिया मिली काउंसिल के वरिष्ठ नेता भी हैं।
वो दशकों से सामाजिक न्याय, अल्पसंख्यकों के अधिकार और संविधानिक मूल्यों की पैरवी करते आ रहे हैं। एक विचारक, लेखक और वक्ता के रूप में उन्होंने मुस्लिम समुदाय के भीतर शिक्षा, मानवाधिकार और राजनीतिक चेतना को लेकर लंबे समय तक काम किया।
लेकिन आज यही बुजुर्ग नेता दिल्ली की तिहाड़ जेल में एक बीमार और भुला दिए गए अंडरट्रायल कैदी के रूप में अपने जीवन के सबसे कठिन दौर से गुजर रहे हैं। उन्हें जेल में 1000 दिन पूरे हो चुके हैं, और उनकी पत्नी आमिना ने उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को लेकर गहरी चिंता जताई है!
22 सितंबर 2022 को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने ई. अबूबकर साहब को तड़के सुबह केरल के उनके घर से गिरफ्तार किया था, जब वे गले के कैंसर की सर्जरी के बाद स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे। उसी दिन एनआईए ने देश के 10 राज्यों में बड़ी कार्रवाई करते हुए PFI से जुड़े करीब 100 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार या हिरासत में लिया था।
एक सप्ताह बाद, भारत सरकार ने PFI और उससे जुड़े आठ अन्य संगठनों जैसे कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, रिहैब इंडिया फाउंडेशन, ऑल इंडिया इमाम्स काउंसिल, नेशनल विमेन्स फ्रंट आदि पर पांच साल का प्रतिबंध लगा दिया।
अबूबकर साहब ओसोफैगॉफेरिंजियल कार्सिनोमा (गले का कैंसर) के मरीज हैं, जिसकी सर्जरी 2020 में हुई थी। इसके अतिरिक्त वे डायबिटीज, हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर, पार्किंसन, रेटिनोपैथी और प्रोस्टेट की बीमारी जैसी कई जटिल बीमारियों से पीड़ित हैं।
उनकी पत्नी आमिना के अनुसार, “उनकी हालत जेल में दिन-ब-दिन खराब हो रही है। उन्हें विशेष खानपान की जरूरत है, लेकिन वहां न तो उनकी देखभाल हो रही है और न ही कोई उचित चिकित्सा सुविधा मिल रही है।”
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर AIIMS दिल्ली में 10 डॉक्टरों की टीम ने उनका मेडिकल परीक्षण किया, लेकिन परिजनों का दावा है कि रिपोर्ट में वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाया गया। आमिना का कहना है कि “केंद्रीय एजेंसियों के हस्तक्षेप की वजह से मेडिकल रिपोर्ट निष्पक्ष नहीं रही, और इसी के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी।”
इसके बाद अबूबकर ने AIIMS पर भरोसा नहीं होने का हवाला देते हुए जेल प्रशासन को पत्र लिखकर किसी निजी अस्पताल में इलाज की अनुमति मांगी है।
अबूबकर की पत्नी ने भावुक अपील करते हुए कहा, “हम डरते हैं कि मेरे पति को भी वही हश्र न भुगतना पड़े जो फादर स्टेन स्वामी को झेलना पड़ा था — जिन्हें बीमारी और उम्र के बावजूद जेल में रखा गया और वहीं उनकी मौत हो गई।”
उन्होंने आगे जोड़ा, “मेरी सिर्फ यही अपील है कि उन्हें उम्र और बीमारियों को देखते हुए इंसानियत के नाते रिहा किया जाए। यह सिर्फ न्याय का सवाल नहीं, मानवाधिकारों का भी प्रश्न है।”
ई. अबूबकर साहब जैसे वरिष्ठ और बौद्धिक मुस्लिम नेता की जेल में स्थिति पर आज मुस्लिम समाज के प्रमुख संगठनों और नेताओं की चुप्पी भी कई सवाल खड़े करती है। क्या एक बीमार, वृद्ध विचारक को भी मौलिक अधिकारों से वंचित किया जाना न्यायसंगत है?