चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर उठे सवाल, लोकतंत्र की नींव डगमगाने का खतरा: एसडीपीआई

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एडवोकेट शरफ़ुद्दीन अहमद ने एक प्रेस बयान जारी करते हुए चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं। उन्होंने कहा कि भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की बुनियाद पारदर्शी और निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया पर टिकी हुई है, और इसकी रक्षा करना चुनाव आयोग की संवैधानिक जिम्मेदारी है।

शरफ़ुद्दीन ने लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा हाल ही में प्रकाशित लेख “महाराष्ट्र में मैच फिक्सिंग” का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने 2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भारी गड़बड़ियों, अनियमितताओं और प्रशासनिक विफलताओं का आरोप लगाया है। राहुल गांधी ने वोटर लिस्ट में संदिग्ध नामों की बढ़ोत्तरी, मतदान के अंतिम चरण में असामान्य वृद्धि और अचानक वोटर संख्या में इजाफा जैसे मामलों को उजागर किया, जिससे बीजेपी-शिंदे शिवसेना गठबंधन को लाभ मिला।

एसडीपीआई नेता ने चुनाव आयोग के उस बयान को भी खारिज किया, जिसमें आयोग ने कहा कि विपक्ष की प्रमुख पार्टियों ने उनसे इस मुद्दे पर कभी संपर्क नहीं किया। शरफ़ुद्दीन अहमद ने कहा कि कई राष्ट्रीय दलों ने चुनावों की निष्पक्षता को लेकर दस्तावेज़ों और तथ्यों के आधार पर गंभीर आपत्तियां दर्ज की हैं, जिन्हें बार-बार नजरअंदाज किया गया है।

उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में हालिया बदलावों ने आयोग की स्वायत्तता को कमजोर किया है। सुप्रीम कोर्ट की यह स्पष्ट हिदायत थी कि चयन समिति में भारत के मुख्य न्यायाधीश को शामिल किया जाए, लेकिन मोदी सरकार ने इसे अनदेखा किया। इससे यह आशंका और गहराई है कि आयोग अब कार्यपालिका के दबाव में काम कर रहा है।

इसके साथ ही, ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को लेकर जनता के बीच फैले संदेह अब भी दूर नहीं हो पाए हैं। विपक्ष लगातार VVPAT पर्चियों की अनिवार्य गिनती की मांग करता आ रहा है, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं हुई।

शरफ़ुद्दीन अहमद ने यह भी आरोप लगाया कि कई स्थानों पर वास्तविक मतदाताओं के नाम सिर्फ इसलिए वोटर लिस्ट से काट दिए जाते हैं कि वे ‘अजनबी’ हैं। यह प्रक्रिया विशेष रूप से मुस्लिम, दलित और आदिवासी समुदायों के लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि इन परिस्थितियों में यह आवश्यक हो गया है कि सरकार और चुनाव आयोग पारदर्शिता सुनिश्चित करें और जनता के सवालों का जवाब दें, ताकि भारत के लोकतंत्र पर जनता का विश्वास बना रह सके।

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