इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
भाकपा (माले) महासचिव का. दीपंकर भट्टाचार्य ने सोमवार को पटना में संवाददाता सम्मेलन कर चुनाव आयोग पर बड़ा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि आयोग सुप्रीम कोर्ट तक को गुमराह कर रहा है और एसआईआर प्रक्रिया के नाम पर मतदाताओं के अधिकार छीने जा रहे हैं।
दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा कि 22 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान आयोग ने दावा किया कि राजनीतिक दलों के बूथ लेवल एजेंट (बीएलए) सक्रिय नहीं हैं। जबकि हकीकत यह है कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद ही 18 अगस्त को राजनीतिक दलों को कारण सहित विलोपन सूची मिली थी। “चार दिन में सक्रियता पर सवाल उठाना सरासर झूठ है,” उन्होंने कहा।
माले नेता ने भाजपा पर सीधा निशाना साधा। उन्होंने कहा, “सबसे ज्यादा करीब 60,000 बीएलए भाजपा के हैं। अगर 65 लाख नाम मतदाता सूची से हटाए गए, तो भाजपा को इनमें से एक भी नाम आपत्तिजनक क्यों नहीं लगा? या फिर मान लिया जाए कि एसआईआर प्रक्रिया भाजपा को ही फायदा पहुंचाने की कवायद है?”
उन्होंने बताया कि माले के बीएलए की संख्या चुनाव आयोग 1,500 बता रहा है, जबकि मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी के डैशबोर्ड पर यह संख्या 2,500 दर्ज है। करीब 1,000 बीएलए अब भी ‘पेंडिंग’ हैं और उन्हें मान्यता नहीं मिली है। वहीं माले की ओर से दर्ज आपत्तियों को भी आयोग सही ढंग से दर्ज नहीं कर रहा।
दीपंकर ने यह भी सवाल उठाया कि “स्थायी रूप से शिफ्टेड” श्रेणी में हटाए गए नामों में महिलाओं की संख्या पुरुषों से सात लाख अधिक है। उन्होंने कहा, “क्या महिलाओं का माइग्रेशन पुरुषों से ज्यादा हो गया है? या फिर शादी के बाद दोनों जगह नाम कट गए? चुनाव आयोग को इसका जवाब देना चाहिए।”
माले महासचिव ने आगे कहा कि 98 प्रतिशत दस्तावेज मिलना आंदोलन की जीत है, लेकिन अभी भी 2 प्रतिशत यानी लगभग 15 लाख मतदाताओं के दस्तावेज अधूरे हैं। इसके अलावा आयोग का यह नियम कि एक बीएलए रोजाना सिर्फ 10 और अधिकतम 30 आपत्तियाँ दर्ज कर सकता है, उन बूथों के लिए पर्याप्त नहीं है जहाँ विसंगतियों की संख्या इससे कहीं अधिक है।
उन्होंने आपत्तियाँ दर्ज कराने की अंतिम तिथि 31 अगस्त को “अपर्याप्त” बताते हुए इसे बढ़ाने की मांग की। दीपंकर ने कहा कि प्रवासी मजदूर और दूरदराज के लोग इस छोटी समयसीमा में अपनी आपत्तियाँ दर्ज नहीं करा पाएंगे।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में माले राज्य सचिव कुणाल, पोलित ब्यूरो सदस्य धीरेन्द्र झा, एमएलसी शशि यादव और समकालीन लोकयुद्ध के संपादक संतोष सहर भी मौजूद थे।
अंत में दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा, “बिहार से लेकर पूरे देश में अब एक ही नारा गूंज रहा है — ‘वोट चोर गद्दी छोड़।’ हमें हर कदम पर सजग रहकर इस लड़ाई को आगे बढ़ाना होगा।”