इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
चुनाव आयोग द्वारा पूरे देश में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) कराने की योजना को लेकर राजनीतिक हलकों में हलचल तेज हो गई है। सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) ने इस कदम को लेकर गंभीर आशंकाएं व्यक्त की हैं और कहा है कि यह प्रक्रिया लाखों नागरिकों को मताधिकार से वंचित कर सकती है।
SDPI के राष्ट्रीय महासचिव एलियास मोहम्मद तुम्बे ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि 10 सितंबर को हुई चुनाव आयोग की बैठक में देशभर में SIR की रूपरेखा तैयार की गई। उन्होंने कहा कि बिहार में हाल ही में हुए इसी तरह के प्रयोग से बड़े पैमाने पर मतदाता सूचियों से नाम हटाए गए थे और अब वही मॉडल अन्य राज्यों में लागू किया जाना चिंता का विषय है।
बयान के अनुसार, बिहार में SIR के दौरान वोटर लिस्ट में नाम दर्ज कराने के लिए 11 दस्तावेजों की शर्त रखी गई थी, जिसमें आधार और राशन कार्ड को स्वीकार नहीं किया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद आधार कार्ड को शामिल किया गया, लेकिन तब तक बड़ी संख्या में नाम सूचियों से गायब हो चुके थे।
‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए SDPI ने दावा किया कि संशोधित मतदाता सूचियों में कई गंभीर गड़बड़ियां पाई गईं। इनमें युवाओं की “मृत्यु आधारित हटाई गई प्रविष्टियां”, महिलाओं को “स्थायी रूप से शिफ्ट” दिखाना, और सीमावर्ती जिलों में मुस्लिम समुदाय के नामों की असामान्य दर से कटौती शामिल है। रिपोर्ट के अनुसार, मुस्लिम मतदाताओं के नाम हटाए जाने की दर 18.4 प्रतिशत रही।
पार्टी ने आरोप लगाया कि यह गड़बड़ियां केवल प्रशासनिक लापरवाही नहीं, बल्कि जानबूझकर किए गए प्रयासों का नतीजा प्रतीत होती हैं। SDPI ने कहा कि पश्चिम बंगाल, असम और केरल जैसे राज्यों में होने वाले आगामी चुनावों से पहले यदि इस प्रक्रिया को जल्दबाजी में लागू किया गया तो गंभीर लोकतांत्रिक संकट खड़ा हो सकता है।
SDPI ने सभी राजनीतिक दलों और लोकतंत्र समर्थक संगठनों से अपील की है कि वे इस मुद्दे को गंभीरता से लें और सुनिश्चित करें कि कोई भी नागरिक अपने मताधिकार से वंचित न हो। पार्टी ने चुनाव आयोग से भी अपील की है कि वह पारदर्शिता बनाए रखे और सभी शिकायतों का निष्पक्ष निपटारा करे।