इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
जामिआ इस्लामिया मुजफ्फरपुर ज़करिया कॉलोनी सअदपुरा के प्रांगण में एक भव्य आम जलसे का आयोजन किया गया, जिसमें मशहूर आलिम-ए-दीन, फ़िक़्ह अकेडमी इंडिया के सेक्रेटरी और जामिआ अरबिया हथौड़ा (बांदा, यूपी) के शैख़ुल हदीस मुफ़्ती मोहम्मद उबैदुल्लाह असअदी ने अपने ज्ञानवर्धक संबोधन में कहा कि आज यह बात आम तौर पर कही जाती है कि मुसलमानों की तरक़्क़ी में सबसे बड़ी रुकावट तालीम की कमी है। यह बात कुछ हद तक सही है, लेकिन पूरी सच्चाई नहीं है।
मुफ़्ती असअदी ने कहा कि सहाबा-ए-किराम रज़ि. को जो असाधारण तरक़्क़ी हासिल हुई, वह सिर्फ़ डिग्रियों या दुनियावी तालीम की वजह से नहीं थी, बल्कि उनकी कामयाबी का असली राज़ ईमान, तक़वा और क़ुरआन व सुन्नत की अमली पैरवी में छुपा था। उन्होंने कहा कि सहाबा हर मैदान में माहिर थे और चंद सालों में उन्होंने पूरी दुनिया पर हुकूमत की।
उन्होंने सूरह नूर की एक आयत का हवाला देते हुए कहा कि अल्लाह तआला ने वादा किया है कि जो लोग ईमान लाएंगे और अच्छे अमल करेंगे, उन्हें ज़मीन में ख़िलाफ़त अता करेगा, दीन को ग़ालिब करेगा और ख़ौफ़ की जगह अमन देगा — बशर्ते वे अल्लाह की इबादत करें और शिर्क से बचे रहें।
उन्होंने कहा कि आज भी तरक़्क़ी का असली रास्ता ईमान से होकर ही जाता है। एक मोमिन दुनिया और आख़िरत दोनों में कामयाब होता है, क्योंकि वह अल्लाह पर मुकम्मल भरोसा करता है।
क़ुरआन की सही समझ पर ज़ोर देते हुए मुफ़्ती असअदी ने कहा कि सिर्फ़ क़ुरआन के लफ़्ज़ पढ़ लेने से दीन की सही समझ नहीं आती, जब तक कि उसके मआनी और मक़ासिद तक पहुंच हासिल न हो। उन्होंने वालिदैन और सरपरस्तों से अपील की कि बच्चों की दीनी तरबियत सिर्फ़ ट्यूशन या स्कूलों के हवाले न करें, बल्कि उन्हें दीनी मदारिस और मकातिब से जोड़ें ताकि उनका अक़ीदा, इबादात और किरदार मज़बूत बुनियादों पर क़ायम हो सके।
इस मौके पर जामिआ के बानी व मोहतमिम मुफ़्ती मोहम्मद जमाल अकबर मुज़फ़्फ़रपुरी ने कहा कि आज के फ़ितनों और गुमराही के दौर में अपने ईमान और अक़ीदे की हिफ़ाज़त हर मुसलमान पर फ़र्ज़ है। उन्होंने कहा कि हमें हमेशा मुस्तनद उलमा से राब्ता बनाए रखना चाहिए और उन्हीं की रहनुमाई में दीनी मसाइल को समझना चाहिए। उन्होंने आगाह किया कि ग़ैर-मुतबर ज़राए से दीन सीखने का चलन उम्मत को फ़िक्री इन्फ़िराक़ में डाल रहा है।
कार्यक्रम की शुरुआत छात्र मोहम्मद फ़ैयाज़ चंपारणी की तिलावत-ए-क़ुरआन से हुई। निज़ामत का फ़रीज़ा असलम रहमानी ने अदा किया, जबकि अध्यक्षता मुफ़्ती उबैदुल्लाह असअदी ने की।
इस मौके पर मौलाना मसऊद असअदी, मौलाना अब्दुर्रऊफ़, मौलाना कफील अनवर क़ासमी, मौलाना तनवीर क़ासमी, मुफ़्ती अफ़सर अली क़ासमी, मौलाना एहतिशाम अहमद क़ासमी, क़ारी इश्तियाक़ अहमद क़ासमी, मौलाना सादिक़ क़ासमी, हाफ़िज़ अब्दुस्समी, क़ारी मतीउर्रहमान रहमानी, मास्टर मुस्तफ़ा आलम, शरीफ़ुद्दीन मोहम्मद क़ासमी उर्फ़ लल्लू भाई, मौलाना मसऊद, मोहम्मद क़ैसर, अल्हाज मोहम्मद शुऐब, हाजी मोहम्मद उबैद कर्नल, मुफ़्ती साकिब जावेद और मौलाना फ़ैयाज़ क़ासमी समेत कई अहम शख्सियतें मौजूद रहीं।
कार्यक्रम का समापन मुफ़्ती उबैदुल्लाह असअदी की पुरअसर दुआ पर हुआ। जलसे में बड़ी तादाद में लोग शरीक हुए और उलमा के पैग़ाम को सराहा।