इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार के बेगूसराय ज़िले में स्वतंत्र पत्रकार और यूट्यूब चैनल संचालक अजीत अंजुम के ख़िलाफ़ FIR दर्ज की गई है। यह कार्रवाई राज्य में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिविज़न (SIR) प्रक्रिया के दौरान मतदाता सूची में कथित गड़बड़ियों पर की गई उनकी रिपोर्टिंग को लेकर की गई है। इस प्रकरण ने प्रेस की स्वतंत्रता और सरकारी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर एक नई बहस छेड़ दी है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, यह प्राथमिकी 13 जुलाई को बेगूसराय के बलिया थाना में एक बूथ स्तरीय अधिकारी (BLO) मोहम्मद अंसारुल हक़ की शिकायत पर दर्ज की गई। शिकायत में कहा गया है कि अजीत अंजुम ने बिना अनुमति मतदान केंद्र परिसर में प्रवेश किया, सरकारी कामकाज में बाधा डाली और सोशल मीडिया पर ऐसा वीडियो प्रसारित किया जिससे सांप्रदायिक सौहार्द्र प्रभावित हो सकता था।
इस पर प्रतिक्रिया देते हुए अजीत अंजुम ने सोशल मीडिया के माध्यम से कहा “सवालों के जवाब देने की बजाय अब पत्रकारों को डराने-धमकाने की कोशिश शुरू हो गई है। मैं डरूंगा नहीं, सिर्फ़ सच दिखाऊंगा।”
उन्होंने स्पष्ट किया कि उनकी रिपोर्टिंग का उद्देश्य किसी समुदाय को निशाना बनाना नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी प्रक्रिया — मतदाता सूची — में हो रही अनियमितताओं को उजागर करना था।
उल्लेखनीय है कि अजीत अंजुम ने हाल के दिनों में बिहार के विभिन्न इलाकों में जाकर SIR प्रक्रिया पर ग्राउंड रिपोर्टिंग की थी। इन रिपोर्टों में यह आरोप सामने आया था कि दलित, पिछड़े, गरीब और अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मतदाता सूची से बाहर किया जा रहा है।
इस कार्रवाई के बाद देशभर के पत्रकार संगठनों और संपादकों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी कर कहा “यह स्वतंत्र पत्रकारिता पर सीधा हमला है। सत्ता की जवाबदेही तय करने वाले पत्रकारों को डराने की कोशिश लोकतंत्र को कमजोर करती है।”
DigiPub न्यूज इंडिया फाउंडेशन ने भी FIR को वापस लेने की मांग करते हुए कहा कि “पत्रकारों के ख़िलाफ़ ऐसे आधारहीन आरोप प्रेस की स्वतंत्रता को कुचलने का माध्यम बनते जा रहे हैं। यह बेहद चिंताजनक है।”
वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट कर कहा “FIR केवल इसलिए क्योंकि अजीत अंजुम ने SIR की गड़बड़ियों को सामने लाया? यह क्लासिक मामला है ‘shooting the messenger’ का।”
साथ ही, Alt News के संस्थापक प्रतीक सिन्हा और पत्रकार मोहम्मद जुबैर ने भी इसे प्रेस की आज़ादी पर हमला बताते हुए समर्थन जताया है।
उधर, चुनाव आयोग ने बताया है कि बिहार में SIR के तहत लगभग 86 फ़ीसदी घरों से फॉर्म जमा हो चुके हैं, और 25 जुलाई तक नाम जोड़ने की प्रक्रिया जारी रहेगी। लेकिन विपक्षी दल कांग्रेस, राजद, आम आदमी पार्टी और वाम दल इस प्रक्रिया को ‘पक्षपातपूर्ण और भेदभावपूर्ण’ बताकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे चुके हैं।
वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट ने प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाई है, लेकिन आयोग को निर्देश दिया है कि आधार कार्ड, वोटर आईडी या राशन कार्ड जैसे प्रामाणिक दस्तावेज़ों को नाम जोड़ने के लिए वैध माना जाए।
अजीत अंजुम ने स्पष्ट किया है कि वे कानूनी प्रक्रिया के तहत अपनी बात रखेंगे और पत्रकारिता के अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हटेंगे। उन्होंने FIR को एक “राजनीतिक दबाव में की गई कार्रवाई” बताया है।
यह मामला अब न सिर्फ़ पत्रकारिता की स्वतंत्रता का मुद्दा बन गया है, बल्कि SIR प्रक्रिया की पारदर्शिता, निष्पक्षता और संवैधानिक वैधता पर भी कई सवाल खड़े कर रहा है।