
इंसाफ़ टाइम्स डेस्क
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पारू थाना क्षेत्र के मझौलिया पारू गांव के रहने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मोहम्मद शम्सुल हुदा ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनका जन्म 1921 में एक समृद्ध परिवार में हुआ था। उनके पिता शेख मोहम्मद इस्माइल डाक विभाग में कार्यरत थे। प्रसिद्ध इतिहासकार आफाक आजम ने अपनी पुस्तक “मुजफ्फरपुर” में उनकी वीरता और योगदान का जिक्र किया है।
*1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में अहम भूमिका
आफाक आजम के अनुसार, मोहम्मद शम्सुल हुदा बचपन से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय थे। 18 अगस्त 1942 को, पारू थाना पर तिरंगा फहराने के लिए आयोजित आंदोलन में वे भी शामिल थे, इस आंदोलन की अगुवाई सुरेश्वर शर्मा कर रहे थे। मोहम्मद शम्सुल हुदा घोड़े पर सवार होकर तिरंगा फहराने थाना पहुंचे थे।
लेकिन, अंग्रेजी हुकूमत ने इस आंदोलन को दबाने के लिए सख्त कदम उठाए। मुजफ्फरपुर के कलेक्टर एम. ज़ेड. खान और एसपी ने आंदोलनकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया। इस फायरिंग में अनुराग सिंह, युधिष्ठिर सिंह और छकोरी लाल साह शहीद हो गए। घटनास्थल पर अफरातफरी मच गई, कई आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि मोहम्मद शम्सुल हुदा और अन्य सेनानी बचकर निकल गए।
*छोटे भाई नजमुल हुदा भी आंदोलन में शामिल
इस आंदोलन में मोहम्मद शम्सुल हुदा के छोटे भाई नजमुल हुदा भी शामिल थे, जो उस समय पारू मिडिल स्कूल के छात्र थे। उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया।
*आजादी के बाद सामाजिक कार्यों में योगदान
स्वतंत्रता के बाद, जब बिहार विधानसभा (काउंसिल) के चुनाव हो रहे थे, तब पारू थाना क्षेत्र में भी मतदान केंद्र बनाया गया था। मोहम्मद शम्सुल हुदा ने कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थन में लाल मोहम्मद के साथ घोड़े पर सवार होकर प्रचार किया। वे पारू अस्पताल चौक से पारू चौक तक लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करते रहे।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी वे सामाजिक कार्यों में सक्रिय रहे। स्थानीय नेता विधायक नवल किशोर सिंह, शिवशरण सिंह और शियाराम कुमार सिंह के साथ उनके अच्छे संबंध थे। वे 1980 तक अपने गांव के उप मुखिया और कार्यवाहक मुखिया के पद पर कार्यरत रहे।
*कम्युनिस्ट नेताओं के साथ भी थे करीबी संबंध
मोहम्मद शम्सुल हुदा का संबंध कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े कई नेताओं से भी रहा। वे सामाजिक न्याय, समानता और किसानों के हक के लिए संघर्षरत रहे। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कई कम्युनिस्ट नेताओं के साथ मिलकर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन किया।
*2002 में हुआ निधन
16 जून 2002 को मोहम्मद शम्सुल हुदा का निधन हुआ। वे एक सच्चे स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में बहादुरी दिखाई और स्वतंत्रता के बाद भी समाज की सेवा करते रहे। उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा।
(ये रिसर्च स्वतंत्र पत्रकारों वजाहत और बशारत रफी ने उपलब्ध कराया है)