तमिलनाडु में मदुरै मुरुगन सम्मेलन में भड़काऊ भाषण, बीजेपी और हिंदू संगठनों के नेताओं पर आपराधिक मामला दर्ज

इंसाफ़ टाइम्स डेस्क

तमिलनाडु के मदुरै में आयोजित मुरुगन भक्त सम्मेलन में दिए गए कथित भड़काऊ और साम्प्रदायिक भाषणों को लेकर पुलिस ने भारतीय जनता पार्टी (BJP), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और हिंदू मुन्‍नानी से जुड़े कई वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया है। इसमें तमिलनाडु के पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के. अन्नामलाई का नाम प्रमुख रूप से शामिल है।

22 जून को मदुरै में आयोजित मुरुगन भक्तरगण मणाडु को लेकर मद्रास हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश जारी किए थे कि यह आयोजन पूर्णतः धार्मिक होगा और इसमें कोई भी राजनीतिक या साम्प्रदायिक भाषण नहीं दिया जाएगा। कोर्ट की 52 शर्तों के तहत इस आयोजन को सशर्त अनुमति दी गई थी।

लेकिन पुलिस की प्रारंभिक जांच और स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की शिकायतों के अनुसार, सम्मेलन के दौरान कुछ नेताओं ने साम्प्रदायिक तनाव फैलाने वाले भाषण दिए, जिससे समुदायों के बीच वैमनस्य फैलने की आशंका पैदा हुई।

मदुरै के अन्नानगर थाने में दर्ज की गई एफआईआर (संख्या 497/2025) में के. अन्नामलाई – भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष,केदेस्वरा सुब्रमण्यम – हिंदू मुन्‍नानी के प्रदेश अध्यक्ष,सेल्वकुमार – हिंदू मुन्‍नानी कार्यकर्ता अन्य आरएसएस और हिंदू संगठनों के अज्ञात सदस्यों के नाम शामिल हैं

एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की जगह अब लागू भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराओं 196(1)(a), 299, 302 और 353(1)(b)(2) के तहत मामले दर्ज किए गए हैं।

आयोजन में दिए गए भाषणों में कथित रूप से गैर-हिंदू धर्मों के विरुद्ध टिप्पणी की गई और हिंदू समुदाय को “एकजुट होकर विरोधियों के ख़िलाफ़ खड़े होने” का आह्वान किया गया। रिपोर्ट्स के अनुसार, इस सम्मेलन में छह प्रस्ताव पारित किए गए, जिनमें “गैर-हिंदू राजनीतिक दलों का बहिष्कार” और “हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण” जैसी अपीलें शामिल थीं।

सीपीएम सांसद पी. शण्मुगेम और DMK नेताओं ने सम्मेलन की आलोचना करते हुए कहा कि यह आयोजन अदालत के आदेशों का सीधा उल्लंघन था और इससे साम्प्रदायिक तनाव बढ़ने की आशंका है।

मदुरै पीपुल्स फोरम फॉर कम्युनल हार्मनी सहित कई सामाजिक संगठनों ने आयोजनकर्ताओं और वक्ताओं के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग करते हुए पुलिस आयुक्त को औपचारिक शिकायत भी दी है।

मद्रास हाईकोर्ट ने आयोजन के लिए अनुमति देते समय यह शर्त रखी थी कि “आयोजन पूरी तरह धार्मिक होगा, न तो राजनीतिक भाषण होंगे और न ही किसी धर्म या समुदाय विशेष के खिलाफ कोई टिप्पणी।”

अब अदालत की शर्तों का उल्लंघन होने पर आयोजकों और वक्ताओं की भूमिका को लेकर कानूनी कार्रवाई का मार्ग प्रशस्त होता दिख रहा है।

धार्मिक आयोजनों का राजनीतिकरण और मंचों का साम्प्रदायिक भाषणों के लिए इस्तेमाल लोकतंत्र, संविधान और सामाजिक सौहार्द के मूल्यों पर सीधा हमला है। जब अदालतें भी स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करती हैं, फिर भी उनका उल्लंघन होता है, तो यह चिंताजनक संकेत है।

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